पारंपरिक हिंदू परिवारों की अगर सबसे बड़ी खासियत देखी जाए तो वो है घर में महिलाओं की मौजूदगी और उनका गहरा आध्यात्मिक जुड़ाव. हमारे समाज में स्त्रियों को हमेशा से ही देवी स्वरूप माना गया है. कहते हैं जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता स्वयं वास करते हैं. इसी सोच के चलते भारतीय घरों में महिलाओं की भूमिका केवल खाना बनाने या घर संभालने तक सीमित नहीं रहती, बल्कि वे पूरे घर की आध्यात्मिक ऊर्जा की धुरी होती हैं. सुबह के समय तुलसी में जल डालना हो, रसोई में पहली रोटी गाय के लिए निकालना हो या घर के दरवाजे पर रंगोली बनाकर नकारात्मक ऊर्जा को दूर रखना हो, यह सब काम महिलाएं बड़े प्रेम और श्रद्धा से करती हैं. इससे ना सिर्फ घर में सकारात्मक वातावरण बना रहता है, बल्कि बच्चों को भी शुरू से अच्छे संस्कार मिलते हैं. सच कहें तो महिलाएं ही अपने घरों में धर्म और परंपराओं को जीवित रखती हैं.
अधिकतर हिंदू घरों में आंगन या छत पर तुलसी का पौधा जरूर मिलता है. तुलसी को मां लक्ष्मी का रूप माना जाता है और इसकी पूजा का महत्व हर कोई जानता है. पारंपरिक घरों में महिलाएं रोज सुबह नहाकर तुलसी में जल चढ़ाती हैं, दीपक जलाती हैं और परिक्रमा करती हैं. ये केवल एक धार्मिक कर्मकांड नहीं, बल्कि इससे पूरे घर में शुद्ध और सकारात्मक वातावरण बना रहता है. बच्चे भी यह देखकर बचपन से ही धार्मिक संस्कारों में रच-बस जाते हैं.
हिंदू परिवारों में महिलाएं हर छोटी-बड़ी पूजा और उपवास का पालन करती हैं. सोमवार का व्रत शिव जी के लिए, गुरुवार को बृहस्पति देव के लिए, और शुक्रवार को मां लक्ष्मी के लिए उपवास करना आम बात है. ये उपवास सिर्फ एक धार्मिक रस्म नहीं, बल्कि इससे घर में अनुशासन, संयम और धैर्य का विकास होता है. महिलाएं इन व्रतों के जरिए अपने घर-परिवार की खुशहाली, पति की लंबी उम्र और बच्चों की सफलता की कामना करती हैं.
कोई भी त्योहार महिलाओं के बिना अधूरा है. चाहे दीपावली की साफ-सफाई हो या रक्षाबंधन के लिए थाल सजाना, हर काम में महिलाओं की मेहनत और श्रद्धा झलकती है. करवा चौथ, तीज, होली, लोहड़ी जैसे कई त्यौहार ऐसे हैं जो विशेष रूप से महिलाओं से ही जुड़े होते हैं. ये न सिर्फ धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण होते हैं, बल्कि परिवार में आपसी प्रेम और जुड़ाव भी बढ़ाते हैं.
पारंपरिक सोच के हिसाब से रसोई को घर का मंदिर माना जाता है और वहां भोजन बनाने वाली स्त्री को अन्नपूर्णा. महिलाएं जब घर में प्यार और श्रद्धा से खाना बनाती हैं, तो वह भोजन भी प्रसाद के समान हो जाता है. यही वजह है कि पुराने समय में महिलाएं भोजन बनाने से पहले भगवान को भोग लगाना नहीं भूलती थीं.
बहुत सी महिलाएं रोज सुबह-शाम भजन-कीर्तन करती हैं या मंदिर में जाकर आरती करती हैं. इससे ना सिर्फ उनके मन को शांति मिलती है, बल्कि पूरे घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है. कहा भी जाता है कि जहां भजन गाए जाते हैं, वहां दुख और दरिद्रता टिक नहीं सकती.
कोई भी त्योहार महिलाओं के बिना अधूरा है. चाहे दीपावली की साफ-सफाई हो या रक्षाबंधन के लिए थाल सजाना, हर काम में महिलाओं की मेहनत और श्रद्धा झलकती है. करवा चौथ, तीज, होली, लोहड़ी जैसे कई त्यौहार ऐसे हैं जो विशेष रूप से महिलाओं से ही जुड़े होते हैं. ये न सिर्फ धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण होते हैं, बल्कि परिवार में आपसी प्रेम और जुड़ाव भी बढ़ाते हैं.
पारंपरिक सोच के हिसाब से रसोई को घर का मंदिर माना जाता है और वहां भोजन बनाने वाली स्त्री को अन्नपूर्णा. महिलाएं जब घर में प्यार और श्रद्धा से खाना बनाती हैं, तो वह भोजन भी प्रसाद के समान हो जाता है. यही वजह है कि पुराने समय में महिलाएं भोजन बनाने से पहले भगवान को भोग लगाना नहीं भूलती थीं.
बहुत सी महिलाएं रोज सुबह-शाम भजन-कीर्तन करती हैं या मंदिर में जाकर आरती करती हैं. इससे ना सिर्फ उनके मन को शांति मिलती है, बल्कि पूरे घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है. कहा भी जाता है कि जहां भजन गाए जाते हैं, वहां दुख और दरिद्रता टिक नहीं सकती.
घर की महिलाओं के पास सबसे बड़ी जिम्मेदारी होती है बच्चों में अच्छे संस्कार डालने की. जब बच्चे अपनी मां, दादी या नानी को पूजा करते, व्रत रखते और भगवान की कहानियां सुनाते देखते हैं, तो उनके मन में भी धार्मिक आस्था और नैतिक मूल्य खुद-ब-खुद आ जाते हैं. यही वजह है कि भारतीय परिवारों में महिलाओं को संस्कारों की जननी कहा गया है.
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