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21 मई को अस्त होगा अगस्त्य तारा:जानिए अगस्त तारे से जुड़ी मान्यताएं, अगस्त ऋषि से जुड़ी इस तारे की पौराणिक कथा

बुधवार, 21 मई को आकाश का एक विशेष तारा अगस्त्य तारा ओझल हो जाएगा। दक्षिण दिशा में दिखाई देने वाला ये चमकीला तारा, जिसे Canopus भी कहा जाता है, विज्ञान के साथ ही धार्मिक दृष्टि से ये अत्यंत महत्वपूर्ण तारा है।

खगोल विज्ञान के मुताबिक, अगस्त्य तारा पृथ्वी से लगभग 180 प्रकाश वर्ष दूर स्थित है। एक प्रकाश वर्ष लगभग 95 अरब किलोमीटर के बराबर होता है। सूर्य से सौ गुना बड़ा यह तारा भारत के दक्षिणी क्षितिज पर जनवरी से अप्रैल के बीच आसानी से देखा जा सकता है। इन महीनों में इस तारे के आस-पास कोई अन्य इतना चमकीला तारा नहीं होता है, जिससे इसे पहचानना आसान हो जाता है। वहीं, दक्षिणी गोलार्ध के अंटार्कटिका में यह तारा सिर के ठीक ऊपर दिखाई देता है।

तारे का अस्त होना और मानसून का आगमन

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, 21 मई को अगस्त्य तारा अस्त हो जाएगा, यह खगोलीय घटना केवल खगोलशास्त्र के लिए ही नहीं, बल्कि मौसम विज्ञान के लिए भी अहम मानी जाती है। मान्यता है कि जब तक यह तारा आकाश में दिखाई देता है, तब तक सूर्य और अगस्त्य तारे की किरणें पृथ्वी के दक्षिणी भाग में वाष्पीकरण को सक्रिय रखती हैं।

अगस्त्य तारे के अस्त होते ही वाष्पीकरण की प्रक्रिया धीमी हो जाती है और यही वह समय होता है, जब वर्षा ऋतु की शुरुआत होती है। आमतौर पर हर साल मई के अंतिम सप्ताह से मानसून केरल में प्रवेश करता है और जून के अंत तक उत्तर भारत पहुंचता है।

सूर्य और अगस्त्य तारे की किरणों से समुद्रों में वाष्पीकरण होता है, जिससे मेघ तैयार होते हैं। यही प्रक्रिया आगे चलकर मानसून की वर्षा में बदलती है।

पौराणिक कथा: जब अगस्त्य मुनि ने पी लिया था समुद्र

अगस्त्य तारे का संबंध केवल विज्ञान से नहीं, बल्कि भारतीय पौराणिक कथाओं से भी जुड़ा हुआ है। एक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में वृत्तासुर नामक राक्षस को देवराज इंद्र ने मार दिया था। लेकिन उसकी सेना समुद्र के भीतर छिप गई और रात होते ही देवताओं पर हमला करती थी। परेशान देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी, जिन्होंने उन्हें अगस्त्य मुनि के पास भेजा।

अगस्त्य मुनि ने देवताओं की सहायता के लिए समस्त समुद्र का जल पी लिया, जिससे असुरों की सेना सामने आ गई और देवताओं ने असुरों का अंत कर दिया। इसी कथा के आधार पर समुद्र से होने वाले वाष्पीकरण को 'अगस्त्य का समुद्र पीना' कहा जाता है।

अगस्त तारे के उदय के साथ शुरू होगा वाष्पीकरण

7 सितंबर को अगस्त्य तारा पुनः आकाश में उदय होगा। इसके साथ ही फिर से समुद्रों में वाष्पीकरण की प्रक्रिया सक्रिय होगी, जो आगे चलकर शीतकालीन मौसम चक्र का हिस्सा बनती है।

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