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बोधिसत्व की करुणा को समझने का जरिया बनती हैं जातक कथाएं

सभी उस राजकुमार की कहानी जानते हैं जिसके पिता ने उसे जीवन की समस्त समस्याओं से बचाए रखा। राजकुमार का समृद्ध राज्य और सुखी परिवार था। लेकिन एक दिन उसने अपने राज्य में घूमते समय वृद्ध, बीमार और मरणासन्न लोगों को देखा। राजकुमार को यह जानकर निराशा हुई कि सभी को बुढ़ापे और बीमारी से जाना पड़ता है। वह सोचने लगा कि क्या अपने दुखों से पार पाया जा सकता है?

इसलिए एक रात वह अपने परिवार को छोड़कर महल से निकल चला। जीवन में दुख का कारण ढूंढने वह ऋषियों और जादूगरों के बीच जंगलों में घूमता रहा। कुछ लोगों ने कहा कि जादू से सुख प्राप्त हो सकता है। अन्य लोगों के अनुसार स्वयं को पीड़ा पहुंचाने से प्राप्त हुई आध्यात्मिक शक्ति से हम सुखी बन सकते हैं। सभी मार्गों पर चलने के बावजूद राजकुमार असफल रहा। अंततः, वह पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर जीवन के स्वरूप पर चिंतन करने लगा।

अंततः उसे बोध हुआ कि इच्छाएं ही दुख की वजह हैं। यह समझ पाने पर वह ‘बुद्ध’ बन गया। नागों के राजा वासुकी ने धरती के नीचे से उभरकर अपना फण बुद्ध के सिर के ऊपर फैला दिया। समान रूप से फैला यह फण बुद्ध की बौद्धिक और आध्यात्मिक सफलता का संकेत था। बुद्ध उन्हें प्राप्त हुआ ज्ञान सभी के साथ बांटते हुए जगह-जगह गए।

यह ईसा मसीह के आने से 500 वर्ष पहले और मुहम्मद पैगम्बर के आने से 1200 वर्ष पहले हुआ। लेकिन राजकुमार के बुद्ध बनने के बाद जो हुआ, उसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। लोग सोच में पड़ गए कि विश्व में सभी दुखी लोगों में से केवल इसी राजकुमार को सुख प्राप्त करने का ज्ञान क्यों मिला। कुछ लोगों के अनुसार बुद्ध की नियति अच्छी थी, जो उन्होंने अपने पूर्व जन्मों में करुणामय बनकर सुधारी थी।

इस प्रकार जातक कथाओं का उद्गम हुआ, जिनके माध्यम से बताया गया कि कैसे बुद्ध ने अपने प्रत्येक पूर्व जन्म में करुणामय और उदार बनते हुए शाक्य वंश के सिद्धार्थ गौतम के रूप में पुनर्जन्म लेने के लिए पर्याप्त पुण्य प्राप्त किए थे। अंततः सिद्धार्थ गौतम, ‘गौतम बुद्ध’ बन गए।

एक कहानी में एक बंदर ने अपने पूरे शरीर को नदी के आर-पार तानकर उसके झुंड के सदस्यों को नदी पार करने में मदद की। इससे उसकी पीठ टूट गई। एक और कहानी में एक बड़े पेड़ ने लकड़हारे से विनती की कि वह उसे छोटे भागों में काटें ताकि नीचे गिरने पर अन्य छोटे पेड़ों को हानि न पहुंचे। एक गज की कहानी भी है, जिसने अपने आप को त्यागकर कुछ यात्रियों की भूख मिटा दी।

इन पूर्व जन्मों में बुद्ध को ‘बोधिसत्व’ कहा जाता था, वे जो करुणामय थे और जो भविष्य के जन्म में बुद्ध बने। लोगों को बोधिसत्वों जितना करुणामय और उदार बनने के लिए प्रेरित किया गया, ताकि वे अपने आप के लिए बुद्धत्व प्राप्त कर सकें।

बुद्ध मार्ग दिखाकर पीछे मुड़े बिना चले जाते थे। दूसरी ओर, बोधिसत्वों ने न केवल सभी को मार्ग दिखाया बल्कि वे स्वयं उस मार्ग पर तब तक नहीं चले, जब तक कि अन्य सभी उस पर नहीं चल लिए। बोधिसत्वों ने दूसरों की मदद करने हेतु अपना बुद्धत्व रोके रखा। बोधिसत्वों ने कई आंखें उगाईं, ताकि दुखी जीवों के लिए वे अश्रु बहा सके और कई भुजाएं उगाईं ताकि वे उन्हें गले लगाकर सुरक्षा का अनुभव करवा सके। बोधिसत्वों ने लोगों में अपनी इच्छाओं के लिए अपराधबोध उत्पन्न होने नहीं दिया। इसके बदले, जब लोगों की इच्छाएं पूरी नहीं होती थीं, तब उससे आने वाले दुखों का सामना करने में बोधिसत्वों ने उनकी मदद की।

कई लोग मानते हैं कि जबकि बुद्ध का मदद करने का मार्ग अधिक बौद्धिक था, बोधिसत्वों का मार्ग अधिक भावुक था। बुद्ध को अधिक महत्व देने वाला बौद्ध संप्रदाय थेरवाद अर्थात ‘प्रमुख संप्रदाय’ कहलाया। बोधिसत्वों को अधिक महत्व देने वाला बौद्ध संप्रदाय महायान अर्थात ‘श्रेष्ठ संप्रदाय’ कहलाया। थेरवाद बौद्ध धर्म श्रीलंका, कंबोडिया, थाईलैंड और दक्षिण-पूर्वी एशिया के अन्य भागों में फैला, जबकि महायान बौद्ध धर्म मध्य एशिया से होते हुए चीन और जापान तक फैला।

कला में बोधिसत्वों की कई भुजाएं और कई सिर होते हैं। दूसरी ओर, बुद्ध की दो भुजाएं हैं और वे शांतिपूर्वक आंखें बंद करके बैठे होते हैं। उनके हाथों की मुद्रा से हम समझ सकते हैं कि वे ज्ञानी थे। बोधिसत्वों की दर्जनों भुजाओं और सिरों के कारण हमारा ध्यान उनकी ओर आकर्षित होता है। अवलोकितेश्वर, अमिताभ और मंजुश्री (जिनका भविष्य में धरती पर पुनर्जन्म होगा) सबसे लोकप्रिय बोधिसत्व हैं। चीन में अवलोकितेश्वर को गुआन-यिन नामक महिला का रूप दिया जाता है। गुआन-यिन मानवता के दुख का कारण समझती हैं और करुणा के साथ सबकी इच्छाएं पूरी करती हैं।

बुद्ध का बोधिसत्व में अर्थात शिक्षक का एंजेल में परिवर्तन इस बात का संकेत है कि मनुष्य ज्ञान के बजाय प्रेम पसंद करते हैं।

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