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क्या वर्तमान में बच्चे बिना मोबाइल के रह सकते हैं?

क्या वर्तमान में बच्चे बिना मोबाइल के रह सकते हैं? बिलकुल नहीं। अब तो मानो कई बच्चों के शरीर का ही विस्तार बन गया है मोबाइल। इसके नुक़सानों की फ़ेहरिस्त बेहद लंबी है। शरीर ही नहीं, मन को भी बुरी तरह प्रभावित कर रहा है यह।

बच्चों का हर वक़्त मोबाइल पर उंगलियां चलाना, हर समय हाथ में मोबाइल लेकर बैठना, कोई भी काम हो- चाहे खाना खा रहे हों या बाथरूम में नहाते हुए म्यूज़िक सुनना हो- मोबाइल का साथ कहीं नहीं छूटता है। जब बात होमवर्क या प्रोजेक्ट से संबंधित कुछ भी सर्च करने की हो तब वे अपने पैरेंट्स या शिक्षक से मदद लेने के बजाय मोबाइल का मार्गदर्शन पसंद करते हैं। इसलिए मोबाइल कई बच्चों के लिए शरीर का एक नया एक्सटेंशन बन गया है जो चौबीसों घंटे उनके साथ रहता है।

शरीर के इस नए अंग का बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ रहा है, यह भी देखिए-

जल्दी खो रहे धैर्य

हर समय स्क्रीन के सामने बने रहने की लत और हर काम जल्दी से हो जाने की चाहत बच्चों को अधीर बना रही है, जिसके कारण वे चिड़चिड़े हो रहे हैं। अपने माता-पिता, टीचर की थोड़ी-सी भी डांट सहन नहीं कर पाते, ग़ुस्सा भी बहुत जल्दी आ जाता है।

कम होती एकाग्रता

हर पल मोबाइल पर आते नोटिफिकेशंस, अलर्ट और मैसेजेस उनका ध्यान भटकाते रहते हैं। उनकी एकाग्रता कम हो रही है और वे काम को बीच में छोड़कर मोबाइल देखने में लग जाते हैं। ऐसे में कोई लक्ष्य कैसे पूरा होगा?

सम्प्रेषण में कमी

बच्चों ने आपस में मिलना-जुलना, बातचीत करना छोड़ दिया है। वे अभिभावकों और रिश्तेदारों से भी दूर हो गए हैं। माता-पिता से भी संवाद में कमी आ रही है। आभासी दुनिया की मदद से वे अनजान लोगों से कनेक्ट हो रहे हैं और अपने आसपास के लोगों से दूर। शब्दों के बजाय इमोजी और संक्षेपाक्षरों का उपयोग करके भाषा कौशल भी खो रहे हैं। असलियत में लोगों से दूर होने के कारण अकेलेपन का शिकार हो रहे हैं, जिसके कारण आत्मविश्वास की कमी, डिप्रेशन, एंग्ज़ायटी, चिड़चिड़ापन, नींद न आना जैसी समस्याएं बढ़ती जा रही हैं।

काम बीच में ही छोड़ देना

बच्चे जब किसी काम में एक-दो बार असफल होते हैं या उसके पूरा होने में ज़्यादा समय लग रहा होता है तो वे उसे बीच में ही छोड़ देते हैं। हर समस्या का हल वे इंटरनेट पर खोजते हैं और त्वरित हल पाने की उनकी ललक अगर पूरी न हो, तो निराशा और हताशा से भर जाते हैं।

ऑनलाइन गेम्स की लत

बच्चों में ऑनलाइन गेम खेलने की लत बढ़ती जा रही है। कुछ बच्चे लेवल पार करने के लिए माता-पिता का पैसा लगा रहे हैं और हारने पर कुछ आत्महत्या जैसे क़दम तक उठा रहे हैं। झूठ बोलना और वित्तीय धोखाधड़ी भी बढ़ रही है।

त्वरित प्रतिसाद की चाहत

ये पीढ़ी आभासी दुनिया में रहना ज़्यादा पसंद कर रही है जहां सबकुछ फटाफट होता है। वे अपनी तस्वीरें, जोक्स सोशल मीडिया पर पोस्ट करते रहते हैं और बार-बार देखते हैं कि कितने लाइक्स, कमेंट मिले हैं। थोड़ी देर तक कोई कमेंट ना मिले या कम लाइक या कमेंट्स हों तो बेचैन होने लगते हैं। लाइक्स व फॉलोअर्स का यह हिसाब ख़तरनाक खेल भी बन चुका है।

नींद की बढ़ती समस्या

देर रात तक डिजिटल उपकरण के उपयोग के कारण बच्चों को देर तक जागने की आदत बन गई है जो उन्हें हर समय FOMO (Fear Of Missing Out; कुछ छूट जाने का डर) का शिकार भी बना रही है। उनके हर समय स्क्रीन व नीली रोशनी के संपर्क में लगातार रहने से मेलाटोनिन का उत्पादन बाधित होता है। डूमस्क्रॉलिंग, देर रात तक बिंज-वॉचिंग और चैटिंग के कारण नींद का समय और गुणवत्ता बहुत कम हो गई है। नींद में कमी से हो रहा है चिड़चिड़ापन, मूड में उतार-चढ़ाव, ध्यान केंद्रित न कर पाना, ख़राब याददाश्त, संज्ञानात्मक क्षमता में कमी, तनाव में वृद्धि, थकान व उत्पादकता घटना। यह लत मोटापे, अनिद्रा और हृदय संबंधी बीमारियों जैसी समस्याएं बढ़ाती है।

आंखों की दिक़्क़्तें

मोबाइल पर लगातार गेम खेलने या सोशल मीडिया पर ज़्यादा वक़्त बिताने के कारण बच्चों में आंखों की सेहत पर नकारात्मक असर देखने को मिल रहा है। मसलन, डिजिटल आई स्ट्रेन या कंप्यूटर विज़न सिंड्रोम की समस्याएं बढ़ रही हैं। एक अध्ययन के अनुसार, 5 से 15 वर्ष की उम्र के बच्चे औसतन 6-8 घंटे तक स्क्रीन पर बिताते हैं।

ग़ौर कीजिएगा...

लत आपने लगाई, बच्चा कैसे छोड़े? हम दो तरह के समूहों में बंटे हुए हैं-

- एक समूह में वे बड़े और बुज़ुर्ग हैं, जो साल-डेढ़ साल के शिशु के कारनामों के वीडियो बनाते हैं, उनके मोबाइल पर खेल को प्रोत्साहित करते हैं, ख़ासकर मांएं, जो बच्चों को किसी गतिविधि में व्यस्त करने के लिए उन्हें मोबाइल थमा देती हैं। - दूसरे समूह में वे अभिभावक हैं, जो अब 12 साल से ऊपर के बच्चों के हाथों से मोबाइल छीनने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन असफल हैं।

कैसे करें स्क्रीन टाइम पर नियंत्रण

  • सबसे पहले घर में मोबाइल के उपयोग के लिए समय निश्चित करें, जिसका सबको पालन करना होगा। पैरेंट्स बच्चों को 15 साल की उम्र के बाद ही मोबाइल दें।
  • बच्चों को किसी मैदानी खेल से जोड़ें ताकि वो कम से कम दो घंटे रोज़ शारीरिक रूप से सक्रिय रहें। बच्चों के साथ मिलकर खेल खेलें।
  • कभी आउटडोर एक्टिविटी के लिए जाएं, जहां मोबाइल का इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं होगी। उन्हें यादें दर्ज करनी हों, तो लिखकर कराएं।

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