गुरु पूर्णिमा पर खंडवा स्थित श्री दादाजी धूनीवाले धाम में लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं। यहां सब कुछ नि:शुल्क मिलता है—भोजन, आवास, चिकित्सा व परिवहन। 1930 से लगातार धूनी प्रज्वलित है, जिसे दादाजी की शक्ति माना जाता है। भक्त सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर दर्शन को पहुंचते हैं।
गुरु पूर्णिमा पर खंडवा स्थित श्री दादाजी धूनीवाले धाम में लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं। यहां सब कुछ नि:शुल्क मिलता है—भोजन, आवास, चिकित्सा व परिवहन। 1930 से लगातार धूनी प्रज्वलित है, जिसे दादाजी की शक्ति माना जाता है। भक्त सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर दर्शन को पहुंचते हैं।
खंडवा में प्रसिद्ध दादा धूनी वाले का धाम स्थित है। यहां मौजूद दादाजी भक्तों के अनुसार श्री दादाजी धूनीवाले एक अवधूत संत थे, जिन्होंने 1930 में यहां समाधि ली थी। गुरु परंपरा को आगे बढ़ाते हुए उनके शिष्य छोटे दादाजी भी यहां 1942 में समाधि लीन हुए थे। दोनों ही संत मां नर्मदा के अनन्य भक्त थे, और धूनी रमाए रहते थे। गुरुपूर्णिमा के दो दिन पहले से ही यहां दर्शनार्थियों का आना शुरू हो जाता है। कई भक्त तो हाथों में झंडा (निशान) लिए सैकड़ों किलोमीटर की पैदल यात्रा करते हुए यहां पहुंचते हैं। इस यात्रा में बच्चे, बूढ़े और महिलाएं सभी होते हैं। इस दौरान सभी की जुबां पर बस एक ही नाम होता है, भज लो दादाजी का नाम। सारी थकान और मुसीबतें यह अपने गुरु पर छोड़ देते हैं। सैकड़ों किलोमीटर पैदल सफर करके आने वाले दादाजी के भक्तों का मानना है कि गुरु की भक्ति करने से उनका जीवन परिवर्तित हो गया है।
1930 से लगातार धूनी हो रही प्रज्वलित
दादाजी धाम में दर्शन करने महारष्ट्र के पांढुर्णा से आए पीयूष मनोहर अलमरकर ने बताया कि दादाजी धूनीवाले एक अवधूत संत थे, और वे अपने आसपास 24 घंटे धूनी रमाए रहते थे। भक्तों की ओर से जो भी उन्हें मिलता वह धूनी में स्वाह कर देते थे। भक्तों की परेशानियों का हल भी वह धूनी के जरिये कर देते थे। इस मंदिर में कोई पंडा-पुजारी व्यवस्था नहीं है। 24 घंटे यह मंदिर खुला रहता है। समाधि के सामने ही अखंड धूनी जलती है, जिसमें सूखे नारियल के साथ वहां सब कुछ न्यौछावर किया जाता है, जो मंदिर में चढ़ावे के लिए आता है। यह धूनी ही दादाजी की शक्ति मानी गई है। 1930 से लगातार यह धुनि ऐसे ही प्रज्ज्वलित हो रही है। इस धुनि की भभूत भक्त प्रसाद के रूप में पाते हैं।
यहां सब कुछ रहता है निःशुल्क
खंडवा के दादाजी भक्त सुनील जैन ने बताया कि खंडवा के दादाजी धूनीवाले का मंदिर संभवत: देश में एकमात्र ऐसा स्थान है, जहां तीन दिनों तक श्रद्धालुओं को जेब में हाथ डालने की जरूरत नहीं पड़ती। यहां पूरा शहर बाहर से आए भक्तों की मेजबानी करता है और चाय, नाश्ता, खाना-पीना, टैम्पो-टेक्सी, दवा-गोली, डाक्टर और धर्मशालाएं सब कुछ यहां नि:शुल्क हो जाती हैं। यहां तक कि कुली भी रेलवे स्टेशन पर श्रद्धालुओं का बोझा नि:शुल्क उठाते हैं। खंडवा को दूसरे शहरों से जोड़ने वाले सभी रास्तों पर निःशुल्क भंडारे खोल दिए जाते हैं, और लजीज भोजन प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।
दादाजी धाम में दर्शन करने महारष्ट्र के पांढुर्णा से आए पीयूष मनोहर अलमरकर ने बताया कि दादाजी धूनीवाले एक अवधूत संत थे, और वे अपने आसपास 24 घंटे धूनी रमाए रहते थे। भक्तों की ओर से जो भी उन्हें मिलता वह धूनी में स्वाह कर देते थे। भक्तों की परेशानियों का हल भी वह धूनी के जरिये कर देते थे। इस मंदिर में कोई पंडा-पुजारी व्यवस्था नहीं है। 24 घंटे यह मंदिर खुला रहता है। समाधि के सामने ही अखंड धूनी जलती है, जिसमें सूखे नारियल के साथ वहां सब कुछ न्यौछावर किया जाता है, जो मंदिर में चढ़ावे के लिए आता है। यह धूनी ही दादाजी की शक्ति मानी गई है। 1930 से लगातार यह धुनि ऐसे ही प्रज्ज्वलित हो रही है। इस धुनि की भभूत भक्त प्रसाद के रूप में पाते हैं।
यहां सब कुछ रहता है निःशुल्क
खंडवा के दादाजी भक्त सुनील जैन ने बताया कि खंडवा के दादाजी धूनीवाले का मंदिर संभवत: देश में एकमात्र ऐसा स्थान है, जहां तीन दिनों तक श्रद्धालुओं को जेब में हाथ डालने की जरूरत नहीं पड़ती। यहां पूरा शहर बाहर से आए भक्तों की मेजबानी करता है और चाय, नाश्ता, खाना-पीना, टैम्पो-टेक्सी, दवा-गोली, डाक्टर और धर्मशालाएं सब कुछ यहां नि:शुल्क हो जाती हैं। यहां तक कि कुली भी रेलवे स्टेशन पर श्रद्धालुओं का बोझा नि:शुल्क उठाते हैं। खंडवा को दूसरे शहरों से जोड़ने वाले सभी रास्तों पर निःशुल्क भंडारे खोल दिए जाते हैं, और लजीज भोजन प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।
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