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अगर आप सिर्फ़ आसन या फिर प्राणायाम को ही योग मानते हैं, तो ये लेख ज़रूर पढ़ें

 योग एक संजीवनी है। यह अंतस की गहराइयों में ले जाने वाला साधन है, जो हमारे जीवन के प्रत्येक क्षण को प्रभावित कर सकता है। जब हम योग को सम्पूर्णता के साथ जीवन में उतारते हैं, तो मन शांत, स्थिर और संतुलित रहता है। मन की यह स्थिरता जीवन के हर पक्ष को संवारती हैे।

योग के संबंध में यह एक भ्रांति ही है कि दिन में आधे से एक घंटा आसन या प्राणायाम कर लेने से योग पूरा हो गया। अधिकांश लोग योग को केवल शारीरिक अभ्यास तक सीमित मानते हैं। योग अपनाएं, तो इसका प्रभाव अभ्यास के एकाध घंटे तक सीमित न रहकर हर समय महसूस किया जा सकता है। वास्तव में, योग एक सम्पूर्ण जीवनशैली है, जिसे हर क्षण जिया जाना चाहिए।

व्यावहारिक जीवन में योग

वर्तमान जीवनशैली में प्रत्येक मनुष्य अत्यधिक तनाव से गुज़र रहा है। भौतिकतावाद एवं अतिमहत्वाकांक्षा के चलते लोग कुंठा, निराशा, क्रोध और अवसाद में जा रहे हैं। हमारे जीवन में छोटी-बड़ी विपरीत परिस्थितियां तो प्रतिदिन आती ही हैं। किंतु विपरीत परिस्थितियों में भी मन को संतुलन में रखना ही योग है। मन की यह स्थिति ही वास्तविक योग है।

यदि पड़ोसी, रिश्तेदार आदि का स्वभाव आपको पसंद नहीं है, तो आप उन्हें बदल नहीं सकते। किंतु आप योग अपनाकर अपने आपको मानसिक रूप से इतना मज़बूत बना सकते हैं कि उनके नकारात्मक व्यवहार से दुष्प्रभावित न होते हुए, मन में क्लेश आदि न पालते हुए, समभाव में बने रहें। योग हमें यह शक्ति प्रदान करता है। सड़क पर किसी के द्वारा ग़लत तरीक़े से गाड़ी को ओवरटेक करने पर क्रोधित होना या कॅरियर को लेकर चिंता होना, इन सबका प्रभाव आपके ही भीतर सतत तनाव और रोगों के रूप में दिखाई देगा। योग इन उतार-चढ़ावों के बीच संतुलित रहकर, शांत चित्त से कर्म करते हुए, जीवन को समभाव से जीना सिखाता है।

योग के लिए कहा गया है कि...

समत्वं योग उच्चयते।।’ सदा अपने मन को संतुलन में बनाए रखना ही योग है! ‘योग: कर्मशु कौशलम्।।’ अपने कर्मों को मन लगाकर, कुशलतापूर्वक करना भी योग है! ‘योगश्चित्तवृत्तिनिरोध:।।’ अपने चित्त की वृत्तियों का निरोध कर यानी उन्हें रोककर सदा वर्तमान में बने रहना ही योग है!

योग के आठ अंग हैं

अष्टांग योग यानी पांच यम (सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य) एवं पांच नियम- (शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर प्राणिधान) का पालन करते हुए आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि की ओर जाना ही वास्तविक योग है।

एकाग्रता के साथ करें आसन

अधिकांश साधक आसन अभ्यास सिर्फ़ शारीरिक स्तर पर ही करते हैं। इस दौरान भी उनका मन अन्यत्र विचारों में लिप्त रहता है। आसनों के दौरान भी यदि हम अपना मन आसन में, आसनों के शरीर पर आ रहे प्रभावों पर लगाए रखें तो ध्यान के पूर्व की एक सीढ़ी यानी ‘एकाग्रता’ का लाभ लिया जा सकता है। और यही एकाग्रता हमें मानसिक रूप से मज़बूत बनाकर प्रतिपल का योगी बनाएगी और विपरीत परिस्थितियों का सामना हंसते हुए करना सिखाएगी।

गहरी सांस से शांत मन

हम पूरे जीवन अपनी श्वसन क्षमता का 20 प्रतिशत ही उपयोग करते हैं। आसनों के पश्चात प्राणायाम हमारे श्वसन को इस तरह प्रशिक्षित कर देता है कि हम पूरे दिन दीर्घ, लंबा, गहरा, नियमित और नियंत्रित श्वसन करना सीख सकें। हमारे श्वसन और मन का बहुत ही गहरा संबंध होता है। जितना हमारा श्वसन दीर्घ और गहरा होगा, मन भी उतना ही अधिक शांत, आनंदित, प्रसन्न और संतुलित रहेगा। हम स्वस्थ्य जीवन जी सकेंगे। जब भी दैनंदिनी कार्यों के दौरान तनाव की स्थिति महसूस हो, नेत्र बंद कर दस सांसों की गिनती कर लें और उसके पश्चात कोई भी प्रतिक्रिया दें तो परिणाम सकारात्मक आएंगे। इससे तनाव, विवाद की स्थिति से बच सकेंगे।

आसन, प्राणायाम के बाद आते हैं प्रत्याहार, धारणा और ध्यान

ध्यान लगाना अभ्यास मांगता है। ध्यानस्थ होकर हम प्रत्याहार के माध्यम से अपनी इंद्रियों को नियंत्रित करना सीखते हैं, तो हमारा मन बाहरी चीज़ों से हटकर भीतर की ओर मुड़ता है। इस अवस्था में मन को किसी एक लक्ष्य पर केंद्रित करना आसान हो जाता है, यही धारणा है। जब यह एकाग्रता व स्थिरता गहराने लगती है, तो हम ध्यान की अवस्था में प्रवेश करते हैं। ध्यान हमें आंतरिक शांति, स्पष्टता और आत्मिक विकास की ओर ले जाता है।

योग को हर क्षण जिएं...

  • सुबह उठते ही 2 मिनट शांत बैठें, श्वास पर ध्यान दें। इससे मन स्थिर होगा। दिनभर मानसिक संतुलन बना रहेगा।
  • घर के काम करते समय ‘मौन’ का अभ्यास करें। दिन की शुरुआत कम से कम विचारों के साथ करें।
  • नाश्ते/खाने के समय भोजन को ध्यानपूर्वक, चबाकर और कृतज्ञता के साथ खाएं। यह भी ध्यान का एक रूप है।
  • कार या बस में सफ़र करते समय गहरी और नियंत्रित सांस लें। यह प्राणायाम का सूक्ष्म अभ्यास बन सकता है।
  • ऑफिस में तनावपूर्ण स्थिति में 10-15 गहरी सांसें लें और सोच-समझकर शांत प्रतिक्रिया दें।
  • किसी से बहस हो जाए तो त्वरित प्रतिक्रिया से बचें। 5 सेकंड मौन रहें, इसके बाद प्रतिसाद दें।
  • सोने से पहले 5 मिनट ‘अनुलोम-विलोम’ या ‘त्राटक’ करें। दिनभर के तनाव से मुक्ति मिलेगी।
  • हर घंटे में 1 मिनट सांस पर ध्यान केंद्रित करें। ‘चित्तवृत्तिनिरोध:’ का सरल अभ्यास करें।

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