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तेज़ी से बदलती दुनिया में टिके रहने का एक ही उपाय है आगे बढ़ते रहना

  • तेज़ी से बदलती दुनिया में कुछ भी स्थायी नहीं है। आज का अनिवार्य कौशल कल अनावश्यक हो सकता है। लेकिन निराश न हों। लगातार सीखते रहें, नए कौशल अर्जित करें और ख़ुद को निखारते रहें। अब टिके रहने का एकमात्र उपाय है आगे बढ़ते रहना।

1952 में अल्बर्ट आइंस्टीन प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में अध्यापन कर रहे थे। एक दिन वे अपने सहायक के साथ कक्षा से लौट रहे थे। सहायक के हाथ में वे सभी प्रश्नपत्र थे जो उस दिन छात्रों को दिए गए थे। भौतिकी की कक्षा के छात्रों ने उन प्रश्नों को हल किया था।

सहायक ने तनिक झिझक के साथ पूछा, ‘माफ़ करें, क्या यह वही प्रश्नपत्र नहीं है जो आपने भौतिकी के छात्रों को पिछले साल दिया था?’

आइंस्टीन ने कहा, ‘हम्म! वही प्रश्न फिर से पूछे गए हैं।’

सहायक ने फिर से सकुचाते हुए कहा, ‘पर आप उन्हीं छात्रों को लगातार दो साल तक एक ही प्रश्नपत्र कैसे दे सकते हैं?’

उसे उत्तर मिला, ‘मैं ऐसा इसलिए कर सकता हूं क्योंकि अब जवाब बदल गए हैं।’ उस समय भौतिकी जगत में नई प्रगति, नई तकनीकों, सिद्धांतों और खोजों का दौर चल रहा था। रोज़ नए आविष्कार सामने आ रहे थे। जो जवाब एक साल पहले सही माने जाते थे, उनमें से बहुत सारे अब ग़लत हो चुके थे क्योंकि वह क्षेत्र तेज़ी से प्रगति कर रहा था।

आपकी परिस्थिति भी यही है। आपके जीवन के अनेक क्षेत्रों में आपके जवाब बदल गए हैं। जो एक साल पहले सच था, हो सकता है कि अब वह पूरी तरह से या आंशिक तौर पर बदल गया हो अथवा समाप्त ही हो गया हो। हो सकता है कि आज के बाज़ार में उस उपाय या विचार का कोई मोल ही न रहा हो।

सबसे अहम ख़ूबी क्या?

1995 में न्यूयॉर्क के मैनिनजर संस्थान ने एक अध्ययन किया, जिसमें यह देखा जाना था कि इक्कीसवीं सदी में सफल होने वाले व्यवसायों में सबसे अहम ख़ूबियां क्या रहीं। अंत में उसने निष्कर्ष निकाला कि किसी भी काम में ‘लचीलेपन’ को ही सबसे बड़ी और अहम विशेषता माना जा सकता है।

परिवर्तन से जुड़े सभी क्षेत्रों में तेज़ी से प्रतिक्रिया व प्रत्युत्तर देने की योग्यता ही लचीलापन है। यहां आपको इस बात के लिए हामी भरनी होती है कि अब उत्तर बदल गए हैं। इस तरह व्यक्ति या संस्थान को अपने कट्‌टर या अ-लचीले प्रतिस्पर्धियों की तुलना में कहीं अधिक लाभ मिल सकता है।

बदलाव तेज़, बहुत तेज़ हैं

हम सब बहुत तेज़ी से बदल रही दुनिया और मनुष्य के इतिहास में सबसे अधिक उथल-पुथल से भरे दौर में जी रहे हैं, जिसमें आने वाला कल, अगला सप्ताह और आने वाला अगला साल शामिल नहीं है। बीसवीं सदी के मध्य तक, कोई इंसान अपनी पढ़ाई पूरी करके किसी कम्पनी में नौकरी करता और फिर विवाह करके चैन से जीवन बसर करता।

वर्तमान में, चालीस प्रतिशत वयस्क स्वतंत्र रूप से काम करने वाले लोग हैं जो आजीवन अलग-अलग कम्पनियों से जुड़कर काम करते हैं। उनमें से अनेक तो ऐसे हैं जो कभी किसी कम्पनी से स्थायी तौर पर नहीं जुड़ेंगे।

80/20 का नियम और आय

लोगों के पास जो भी कौशल थे, उनमें से अधिकांश अब चलन से बाहर हैं और बहुत से ऐसे लोग सामने हैं जो उनसे कहीं बेहतर कौशल रखते हैं। नोबल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री गैरी बेकर ने वॉल स्ट्रीट जर्नल में एक अध्ययन का हवाला देते हुए कहा कि शिकागो यूनिवर्सिटी में अध्ययन करके पता लगाया गया कि अस्सी प्रतिशत लोगों की वार्षिक औसत आय में प्रतिवर्ष तीन प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई, जो कि मुद्रास्फीति की दर से थोड़ी-सी आगे या उसके बराबर थी।

जबकि शीर्ष बीस प्रतिशत लोगों की आय में प्रतिवर्ष औसतन 11 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। इस तरह वे छह-सात साल के भीतर अपनी आय को दोगुना करनेे में सफल रहे।

बीस और अस्सी प्रतिशत लोगों के बीच प्रमुख अंतर क्या था? यह निरंतर सीखने और कौशलों को निखारने की वचनबद्धता थी। बीस प्रतिशत लोगों ने किताबें पढ़ीं, सत्रों में हिस्सा लिया, ऑडियो प्रोग्राम सुने और अपनी नौकरी को बेहतर बनाने के सारे उपाय तलाशते रहे।

सीखते रहें या बाहर हो जाएं

अस्सी प्रतिशत के निचले तल में रहने वाले लोग इसके ठीक विपरीत थे। उन्होंने कभी कोई पुस्तक नहीं पढ़ी, किसी सत्र का हिस्सा नहीं बने, काेई कोर्स नहीं किया, अपने कौशल या हुनर को निखारने की दिशा में भी कोई क़दम नहीं उठाया। उन्होंने अपना समय ऐसी गतिविधियों में बिताना पसंद किया जो लक्ष्य की ओर ले जाने के बजाय केवल तनाव घटाने का काम करती थीं। नतीजन, वे जानबूझकर ही पीछे, और पीछे होते चले गए।

अंतत: उन्होंने अपनी नौकरियां खो दीं। उन्होंने कभी लगातार कुछ सीखने या अपने कौशल को बढ़ाने पर ध्यान नहीं दिया था इसलिए अब उनके लिए इस बाहरी दुनिया में जगह नहीं थी। उनका काम यही था कि वे घर बैठें और टीवी देखें। नतीजतन वे कई माह और वर्षांे तक बेरोज़गार बने रहे।

आज भी आय के सभी स्तरों और कॅरियर की सभी श्रेणियों के बीच, बहुत से ऐसे लोग हैं जो यह नहीं जानते कि उनके लिए अपने कौशल या हुनर को निखारना कितना महत्व रखता है। बास्केटबॉल कोच पैट रिले के शब्दों में, ‘अगर आप बेहतर नहीं हो रहे तो निश्चित रूप से आप बदतर हो रहे हैं।’

कोई भी एक स्थान पर लम्बे समय तक नहीं टिका रहता। अगर आप लगातार अपने हुनर और कौशल को नहीं निखारते तो आप भी वहीं नहीं टिके रहेंगे। दरअसल, आप नीचे की ओर गिरने लगेंगे। जो लोग लगातार सीखते हुए अपने हुनर को चमका रहे हैं, केवल वही आगे जाएंगे।


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