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सहकारी बैंक में घोटाला:लोन और ऋण माफी में जाली दस्तखत कर, 9 किसान के खाते से 33 लाख का लेन-देन

सहकारी बैंक में घोटाला - Dainik Bhaskar

सहकारी बैंक में घोटाला
  • जांच में कहा- सहायक समिति प्रबंधक की नियुक्ति नियम विरूद्ध
  • किसानों को पता ही नहीं और उनके नाम पर लोन आवंटित हो गया फिर फर्जी हस्ताक्षर से खाते से निकल गई राशि

जिला सहकारी बैंक में अधिकारियों की मिलीभगत से किसानों के खातों से 33 लाख 30 हजार 222 रुपए का फर्जी लेन-देन हुआ है। यह सारा पैसा समिति प्रबंधक और बैंक अधिकारियों की जेब में गया। किसानों के नाम पर उनके केसीसी खातों में फर्जी लोन आवंटित कर और फिर फर्जी दस्तखत से पैसा निकालकर इस घोटाले को अंजाम दिया गया। अधिकारियोें ने किसानों की जानकारी के बिना ही उन्हें फर्जी तरीके से ऋण स्वीकृत कर दिया और फिर कमलनाथ सरकार में हुई ऋण माफी में कर्ज माफ भी करा लिया।

सेवा सहकारी कृषि साख समिति पलोह में ही 9 किसानों के नाम पर 33 लाख रुपए का फर्जी लेन-देन किया गया। वर्ष 2019 में जय किसान माफी ऋण योजना के दौरान जब कुछ किसानों के नाम पर फर्जी तरीके से लोन दर्शा कर माफ किया गया। तब इस मामले में आम आदमी पार्टी किसान संगठन के जिलाध्यक्ष धनीराम गुप्ता ने जानकारी एकत्रित करना शुरू की और दो साल में 20 आरटीआई लगाकर डेढ़ हजार पेज में विभाग से जानकारी प्राप्त की। तब किसानों के साथ यह धोखाधड़ी और बैंक में चल रहा यह घोटाला उजागर हो सका।

केस - 1- पांच बार में खाते से 2.55 लाख निकाले, स्वीकृति फॉर्म जमा होने से 1 दिन पहले खाते में डाली राशि

किसान भरत लाल पिता कन्छेदी मुखरैया के केसीसी खाते में 12 जून 2013 को 50 हजार रुपए की राशि बैंक द्वारा जमा की गई जबकि स्वीकृति देने वाला ई-फॉर्म एक दिन बाद 13 जून को तैयार किया गया। जिसमें 60 हजार रुपए राशि स्वीकृत की गई। वर्ष 2014 में किसान के खाते से मई से नवम्बर तक सात माह में पांच बार में 2 लाख 55 हजार रुपए निकाल लिए गए। हर विड्राल फॉर्म में किसान के हस्ताक्षर अलग-अलग किस्म के हैं। किसान भरत लाल को पता ही नहीं है कि उसके केसीसी खाते से ढाई लाख रुपए निकाले गए हैं और न ही किसान को ऋण स्वीकृत होने की जानकारी है।

केस -2- उपार्जन व नगद ऋण में 2.59 लाख का लेन-देन
किसान रतन उर्फ सत्यवान पिता अमान सिंह राजपूत के केसीसी खाते से 2013 से 2018 तक पांच साल में 3 लाख 76 हजार 754 रुपए का फर्जी लेन-देन किया गया, जिसकी किसान को जानकारी नहीं है। अधिकारियों ने किसान के खाते में गेहूं उपार्जन के रुपए जमा कर जाली हस्ताक्षर से फर्जी तरीके से निकाल लिए। गेहूं उपार्जन और नगद ऋण के नाम पर 2 लाख 59 हजार 600 रुपए, फसल बीमा के नाम पर 49 हजार 948 रुपए और जय किसान ऋण माफी में 67 हजार 206 रुपए का गबन रतन उर्फ सत्यवान के खाते से किया गया।

केस -3 - विड्रॉल भरने के 1 माह पहले ही खाते से निकल गए 1.65 लाख

किसान हरिशंकर पिता नर्मदा प्रसाद सोनी के खाते से 27 जुलाई 2018 को एक लाख 65 हजार रुपए फर्जी हस्ताक्षर करके निकाल लिए गए और विड्रॉल फॉर्म एक माह बाद 27 अगस्त 2018 की तारीख का लगा दिया। यानी एक माह पहले राशि निकाल ली गई? किसान के खाते से 2013 से 2018 तक पांच सालों में 3 लाख 44 हजार 122 रुपए का गबन किया गया। इसमें उपार्जन खरीदी व लोन के नाम पर 2 लाख 65 हजार रुपए और जय किसान ऋण माफी में 79 हजार 122 रुपए की राशि फर्जी तरीके से निकाली गई। सहकारिता उपायुक्त ने किसान हरिशंकर के ऋण स्वीकृति से संबंधित दस्तावेज जब मांगे तो बैंक अधिकारी एक भी दस्तावेज उपलब्ध नहीं करा सके।​​​​​​​

जांच में कहा- सहायक समिति प्रबंधक की नियुक्ति नियम विरूद्ध

जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि बैंक खाते से फर्जी लेन-देन पाया जाता है तो इसके लिए तत्कालीन बैंक कर्मचारी उत्तरदायी हैं। ऋण वितरण दस्तावेजों पर किसानों के फर्जी हस्ताक्षर पाए जाते हैं तो तत्कालीन सहायक समिति प्रबंधक अवध बिहारी श्रीवास्तव और वर्तमान सहायक समिति प्रबंधक विवेक श्रीवास्तव उत्तरदायी होंगे। जांच में माना है विवेक श्रीवास्तव की सहायक समिति प्रबंधक पद पर की गई नियम विरूद्ध नियुक्ति के लिए तत्कालीन संचालक मंडल एवं अवध बिहारी श्रीवास्तव उत्तरदायी हैं।

एक्सपर्ट से दस्तखत की जांच कराने की मांग

गबन के इस पूरे मामले को लेकर शिकायतकर्ता किसानों का कहना है कि हम तीन वर्ष से इस भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं। उन्होंने उपायुक्त सहकारिता से मांग की है कि ऋण वितरण संबंधी सभी दस्तावेजों में किसानों के हस्ताक्षर की जांच किसी एक्सपर्ट से कराई जाए। जांच जल्द हो और इसमें जो खर्च होगा, वह भी किसान वहन करने के लिए तैयार हैं।

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