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कानून में संशोधन संभव:जीएसटी काउंसिल में हो सकता है अनरजिस्टर्ड ब्रांडेड आटे, चावल, गेहूं व खाद्य सामग्री पर कर लगाने का निर्णय

मौजूदा प्रावधान में 104 वस्तुओं पर कोई जीएसटी देय नहीं - Dainik Bhaskar

मौजूदा प्रावधान में 104 वस्तुओं पर कोई जीएसटी देय नहीं
  • त्रिपुरा हाई कोर्ट के आदेश के बाद यह प्रस्ताव जीएसटी काउंसिल को ग्रुप ऑफ मिनिस्टर द्वारा दिया गया
  • अनरजिस्टर्ड ब्रांडेड आइटम पर जीएसटी लागू हो तो उसकी दर 5% की जगह 2% रहे- एक्सपर्ट

जीएसटी काउंसिल अगली बैठक में अनरजिस्टर्ड ब्रांडेड पदार्थों के लिए कर से बचने का कानूनी प्रावधान समाप्त कर सकती है। ऐसा हुआ तो हर ब्रांडेड खाद्य पदार्थ, जो 5% जीएसटी के दायरे में आता है, उसे कर देना पड़ेगा। इससे उनके दामों पर असर पड़ेगा। दरअसल, खाने-पीने की कई साधारण चीजें बाजार में ब्रांड के रूप में बिना कर चुकाए बिक रही हैं, जैसे चावल, दाल, आटा, मैदा, पनीर आदि।

इनके निर्माता कानून के एक ऐसे प्रावधान का उपयोग करते हैं, जिससे ब्रांडेड सामान बिना कर चुकाए बेचा जा सकता है। जीएसटी काउंसिल इस प्रावधान को समाप्त करने पर विचार कर सकती है। कानून में संशोधन कर 5% का कर लगा सकती है। हाल में जारी त्रिपुरा हाई कोर्ट के आदेश के बाद यह प्रस्ताव जीएसटी काउंसिल को ग्रुप ऑफ मिनिस्टर द्वारा दिया गया है।

अनरजिस्टर्ड ब्रांडेड आइटम पर जीएसटी लागू हो तो उसकी दर 5% की जगह 2% रहे- एक्सपर्ट

कर सलाहकार आरएस गोयल का कहना है अनरजिस्टर्ड ब्रांडेड आइटम पर जीएसटी लागू होता है तो दर 5% की बजाय 2% होना चाहिए, ताकि उपभोक्ताओं पर अधिक बोझ न पड़े। जैसे ही यह वस्तुएं कर योग्य होंगी, व्यवसायियों को इनपुट टैक्स क्रेडिट प्राप्त होना शुरू हो जाएगा।

मौजूदा प्रावधान में 104 वस्तुओं पर कोई जीएसटी देय नहीं

दाल, चावल, आटे जैसी 104 खाने-पीने की वस्तुओं पर कोई जीएसटी देय नहीं होता है। इनमें से लगभग 24 ऐसी वस्तुएं हैं, जिन पर केवल उस स्थिति में शून्य कर देय होता है, जब वो खुल्ली बेची जा रही हों। मतलब यदि ये वस्तुएं ब्रांड के नाम से बिक रही हों तो उनपर 5% कर देय होगा। इन 24 खाद्य सामग्रियों में शामिल हैं गेहूं, गेहूं का आटा, मैदा, रवा, सूजी, चावल, चना, मूंग, उड़द, तुअर आदि।

त्रिपुरा हाई कोर्ट ने दिया आदेश, ब्रांड के नाम पर बेचने पर भरना होगा कर

त्रिपुरा हाई कोर्ट के समक्ष एक कंपनी ने यह कहते हुए कर चुकाने से इनकार किया था कि उस कंपनी के ब्रांड के चावल पर कंपनी द्वारा किसी भी तरह का एकाधिकार नहीं जताया जा रहा है और न ही उस कंपनी के ब्रांड का नाम दूसरी कंपनियों द्वारा इस्तेमाल करने पर कोई आपत्ति ली जा रही है। ऐसे में उस ब्रांड पर कर लागू नहीं होना चाहिए, लेकिन हाईकोर्ट ने माना कि कंपनी द्वारा विभाग को शपथपत्र पर यह सूचना नहीं दी गई थी कि उनके द्वारा ब्रांड पर एकाधिकार का स्वेच्छा से परित्याग किया गया है। ऐसे में उक्त ब्रांड पर 5% का कर देयता बनती है और कंपनी को कर देना होगा।

क्या है कर से बचने का कानूनी प्रावधान?

इस प्रावधान के अनुसार उन ब्रांडेड वस्तुओं पर कर देय नहीं होगा, जिनके निर्माताओं ने ऐसी घोषणा अपने पैकेट पर की हो कि उनका उस ब्रांड पर कोई एकाधिकार नहीं है, इसके लिए उन्होंने विभाग को शपथ पत्र दिया हो और अपने बिल में भी ऐसा स्पष्ट लिखा हो। शपथ पत्र में, पैकेट पर और बिल में यह स्पष्ट लिखना होगा कि उनके ब्रांड नाम पर उनका कोई अधिकार नहीं है और यदि कोई भी उक्त नाम से उत्पाद बनाता है तो उस पर वह कोई कार्रवाई नहीं करेंगे। ऐसी घोषणा देने पर ही, कर देयता को समाप्त किया जा सकता है। देश के कई उच्च क्वालिटी के चावल आदि खाद्यान्न वस्तु निर्माताओं द्वारा इसका दुरुपयोग कर अपने ब्रांडेड उत्पादों पर टैक्स नहीं भरा जा रहा था। इस दुरुपयोग को रोकने के लिए कर्नाटक के मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में हुई ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स की बैठक में यह प्रस्ताव पारित किया गया कि ऐसी वस्तुओं पर कर देयता हो।

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