Header Ads Widget

Responsive Advertisement

पार्टियों के लिए योग्यता के मायने क्या हैं:दोनों दलों के 13 फीसदी पार्षद प्रत्याशियों पर पुलिस केस, 19% आठवीं या उससे कम पढ़े-लिखे; 11% राजनीतिक परिवारों से

वही पारंपरिक चेहरे सामने आ जाते हैं - Dainik Bhaskar

वही पारंपरिक चेहरे सामने आ जाते हैं
  • तीन परिषद के 223 पार्षदों का रिपोर्ट कार्ड, 14% पर भ्रष्टाचार के आरोप, 15% निष्क्रिय रहे
  • इस बार भी दोनों दलों ने ऐसे ही उम्मीदवार उतारे हैं, जिनमें करीब 13 फीसदी पर पुलिस केस दर्ज

चुनाव के पहले राजनीतिक दल साफ छवि के पढ़े-लिखे योग्य उम्मीदवार उतारने के लाख दावे करते हैं, लेकिन जब बारी आती है तो फिर वही पारंपरिक चेहरे सामने आ जाते हैं। इस बार भी दोनों दलों ने ऐसे ही उम्मीदवार उतारे हैं, जिनमें करीब 13 फीसदी पर पुलिस केस दर्ज हैं। यानी 22 उम्मीदवारों पर किसी न किसी तरह के पुलिस केस हैं।

भारी विरोध के बाद भाजपा ने गैंगस्टर युवराज उस्ताद की पत्नी स्वाति का टिकट भले बदल दिया, लेकिन शेष उम्मीदवारों में भी 11 पर पुलिस में मामले दर्ज है। कुछ के परिवारों की आपराधिक पृष्ठभूमि है। हालांकि कांग्रेस भी इससे अछूती नहीं है। उसके भी 11 उम्मीदवारों के पुलिस रिकॉर्ड हैं। पढ़ाई-लिखाई, नेताओं के करीबी और परिजन जैसे मापदंडों पर भी दोनों ही दल खरे नजर नहीं आते हैं।

दोनों प्रमुख दलों के उम्मीदवारों की ये है स्थिति
दोनों प्रमुख दलों के उम्मीदवारों की ये है स्थिति

तीन परिषद के 223 पार्षदों का रिपोर्ट कार्ड, 14% पर भ्रष्टाचार के आरोप, 15% निष्क्रिय रहे

  • अपराधी- 12.50% ऐसे प्रतिनिधि चुने जिन पर आपराधिक केस थे। कुछ समय बाद बरी हो गए या केस खत्म हो गए।
  • भ्रष्टाचार- 14% जनप्रतिनिधि पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे या पुलिस केस दर्ज हुआ। कोर्ट केस चल रहे हैं।
  • अल्पशिक्षा- 15% हायर सेकंडरी, 20% ग्रेजुएट, 17% पोस्ट ग्रेजुएट, 48 % हाईस्कूल या उससे कम पढ़े थे।
  • परिवारवाद- 23% खुद या आरक्षण के हिसाब से तय करते हैं कि वे लड़ेंगे या पत्नी, बहू आदि को लड़ाएंगे।
  • निष्क्रिय- 15% पार्षद नगर निगम के कामकाज में निष्क्रिय रहे अथवा जनता इनके काम से संतुष्ट नहीं रही।
  • नेताओं के करीबी- 38% पार्षद जनप्रतिनिधि या विधायक के बेहद करीबी रहे हैं। इनकी सक्रियता भी कम रही।

पार्षद मापदंडों पर खरे नहीं उतरे तो ये होता है हाल

21.24% आपका पक्ष रखने ही नहीं पहुंचे

पिछली तीन परिषद में 21.24 प्रतिशत पार्षद बैठकों में ही नहीं पहुंचे। इसमें पिछली परिषद में क्षेत्र क्रं. 2 के 15 पार्षद पूरे पांच साल में गिनती के समय ही बैठकों में उपस्थित हुए वे भी निकासी के डर से। इनमें से अधिकांश सिर्फ साइन कर लौट गए। कुछ पार्षद लगातार अनुपस्थित भी रहे, जिससे क्षेत्र की आवाज ही नहीं उठा पाए।

5 साल में 247 प्रश्न पूछे तीन कार्यकाल में 780

पिछली परिषद में पार्षदों द्वारा पांच साल में मात्र 247 प्रश्न पूछे। इसमें भी अधिकतर सवाल कांग्रेस पार्षदों के है। एक पार्षद ने पांच साल में औसत तीन प्रश्न भी नहीं पूछे। सर्वाधिक 40 सवाल नेता प्रतिपक्ष ने पूछे। ज्यादातर सवाल अधिकारियों या ठेकेदार के काम, फर्म की जानकारी या अवैध निर्माण संबंधी थे। तीन परिषद में 780 प्रश्न पूछे गए।

3 कार्यकाल में भ्रष्टाचार के 20 से ज्यादा मामले

यातायात घोटाला, पाइप कांड, बिल्डिंग परमिशन में बिना फीस लिए नक्शा पास करने जैसे मामले सामने आए। बस खरीदी, स्वच्छ भारत मिशन में चुनिंदा कंपनियों को काम, निगम की राशि निजी खाते में जमा करने, बोरिंग बिलों का घोटाला, डीजल घोटाला, कचरा तुलाई घोटाले सामने आए। पहले पेंशन घोटाला, सुगनीदेवी जमीन मामला भी था।

एक्सपर्ट व्यू- गलत लोगों का बहिष्कार जरूरी

राजनीतिक जीवन में कई केस आंदोलन, धरना-प्रदर्शन के होते हैं, उन्हें नजरअंदाज किया जा सकता है, लेकिन यदि अपराधिक केस हो तो वह जनता और प्रजातंत्र दोनों के लिए गलत है। ऐसे लोगों का बहिष्कार जरूरी है।

-के.एल. हार्डिया, सीनियर एडवोकेट

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ