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अगर हम संतान हैं तो ऐसे काम करें, जिनसे माता-पिता को समाज में मान-सम्मान मिले

कहानी:भगवान विष्णु और तारकासुर के बीच युद्ध चल रहा था। बहुत कोशिशों के बाद भी विष्णु जी तारकासुर को मार नहीं पा रहे थे। उस समय सभी देवता ब्रह्मा जी के पास पहुंचे।

ब्रह्मा जी ने देवताओं से कहा, 'तारकासुर ऐसे नहीं मरेगा। इसे मैंने ही वरदान दिया है कि इसकी मृत्यु शिव जी और पार्वती जी के पुत्र के हाथों होगी। मैं कार्तिकेय से निवेदन करता हूं कि वे इस युद्ध में भाग लें। तारकासुर का वध करने के लिए ही कार्तिकेय का जन्म हुआ है। अब कार्तिकेय को तारकासुर से युद्ध करने के लिए मैदान में उतरना पड़ेगा।'

जब कार्तिकेय स्वामी तारकासुर के सामने पहुंचे तो दोनों में युद्ध शुरू हो गया। उस समय नजारा ऐसा था कि हवा चलना बंद हो गई थी। सूर्य की चमक फीकी पड़ गई थी। पूरी पृथ्वी पर कंपन हो रहा था। देवताओं ने कार्तिकेय स्वामी से कहा, 'क्या हम आपकी कुछ मदद कर सकते हैं?'

कार्तिकेय स्वामी बोले, 'आप सभी चिंता न करें। अब मैं मेरे माता-पिता का स्मरण करता हूं और मेरे पास जो शक्ति है, उससे प्रहार करता हूं।'

शक्ति के प्रहार से तारकासुर का वध हो गया। जब ये सूचना शिव-पार्वती को मिली तो वे बहुत प्रसन्न हुए। हिमालय पर कार्तिकेय पहुंचे तो उनका स्वागत किया गया। शिव जी ने उस समय कहा, 'जब संतान को बड़ी उपलब्धि मिलती है तो सबसे ज्यादा माता-पिता को खुशी मिलती है। माता-पिता को चाहिए कि वह अपनी संतान को अच्छे संस्कार दें, ताकि वह संसार के लिए श्रेष्ठ काम कर सके।'

सीख
ये कथा हमें संदेश दे रही है कि अगर हम संतान हैं तो ऐसे काम करें कि माता-पिता को समाज में सम्मान मिले। अगर हम माता-पिता हैं तो बच्चों को ऐसे संस्कार दें कि वह समाज की भलाई के लिए काम करे।

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