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आपका भाग्य आपके हाथ में ही है, आप जब चाहें इसे बदल सकते हैं

  • अपनी दुनिया को बदलने के लिए हमें सबकुछ नहीं बदल डालना होता। अपने जीवन को ख़ुशहाली और संतुष्टि से भरने के लिए सारी चीज़ों और परिस्थितियों पर क़ाबू नहीं करना होता। ज़िंदगी में जिस एक बात से फ़र्क पड़ता है, ‘इनर इंजीनियरिंग; आनंदमय जीवन के सूत्र’ में उसके बारे में बता रहे हैं सद्‌गुरु...

एक बार की बात है, शंकरन पिल्लै अपने दोस्तों के साथ शराब पीने गए। उन्होंने सोचा कि वे फटाफट शराब पीकर रात आठ बजे तक घर लौट जाएंगे। और उन्होंने ऐसा ही किया। उन्होंने फटाफट एक पैग लिया, फिर दूसरा पैग, फिर एक और पैग। और फिर फटाफट एक और पैग। उन्होंने घड़ी पर नज़र डाली। रात के ढाई बज चुके थे। वे बार के स्टूल से उतरे। बड़ी फुर्ती और कुशलता से उन्होंने ख़ुद को संतुलित किया और घर की तरफ़ चलने लगे। उन्होंने बाग़ीचे से होकर जाने वाला छोटा रास्ता लिया, लेकिन गुलाब की झाड़ियों में औंधे मुंह गिर पड़े। चेहरा बिगड़ गया। उन्होंने किसी तरह ख़ुद को खड़ा किया और अपने रास्ते पर आगे बढ़े। इसी हालत में घर पहुंचे, और वहां चाबी डालने का छेद ढूंढने की कोशिश करने लगे। लेकिन आजकल चाबी के छेद भी कितने छोटे बनते हैं! इसमें 20 मिनट और लग गए। आख़िरकार वे घर के अंदर घुसे और लड़खड़ाते हुए बेडरूम में पहुंचे। सौभाग्य से पत्नी गहरी नींद में थी। वे बाथरूम में गए और आईने में ख़ुद को देखा। उनका चेहरा खरोंचों से भरा हुआ था। उन्होंने दवाई की अलमारी खोली, कुछ दवाइयां निकालीं और बैंड-एड का डिब्बा खोलकर जैसे-तैसे चेहरे की मरहम-पट्टी की। फिर वे चुपके से जाकर बिस्तर पर सो गए। अगली सुबह उनकी पत्नी ने उनके चेहरे पर एक बाल्टी ठंडा पानी फेंक दिया। वे चौंककर जागे और ख़ुद को तरबतर पाकर कहा, ‘क्यों-क्यों? आज तो रविवार है!’ पत्नी ने कहा, ‘अरे बेवकूफ़! तुम फिर से पीने लगे?’ ‘नहीं प्रिये, मैंने तुमसे छह महीने पहले वादा किया था। तब से एक बूंद तक नहीं छुई है।’ उसने उन्हें कमीज़ से पकड़ा, घसीटते हुए बाथरूम में ले गई, और शीशा दिखाया। सारी बैंड-एड शीशे पर चिपकी हुई थी!

किसे ठीक करने की ज़रूरत है?
जब आप पीड़ा, क्लेश या ग़ुस्से में होते हैं तो वह समय अपने भीतर झांकने का होता है, न कि अपने आसपास देखने का। ख़ुशहाली पाने के लिए जिसको ठीक करने की ज़रूरत है, वह सिर्फ़ आप हैं। आप यह भूल जाते हैं कि जब आप बीमार होते हैं, तब आपको दवाइयों की ज़रूरत होती है। भूखे होते हैं तो भोजन की ज़रूरत होती है। तो यह सिर्फ़ आप ही हैं जिसे ठीक करने की ज़रूरत है, लेकिन इस साधारण-सी बात को समझने में लोग कई जीवन लगा देते हैं!
अपना भाग्य ख़ुद लिखने का यह मतलब नहीं कि आपको दुनिया में हर स्थिति पर क़ाबू पाना होगा। अपना भाग्य ख़ुद रचने का मतलब है कि आप अपनी ख़ुशहाली और अपनी चरम प्रकृति की ओर लगातार बढ़ रहे हैं, और इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि आपके इर्द-गिर्द जीवन की स्थितियां कैसी हैं। इसका सीधा मतलब यह है– ख़ुद को इस तरह बनाना कि आपके इर्द-गिर्द चाहे जो भी घटनाएं या परिस्थितियां हों, आपको उनके नीचे दब नहीं जाना, बल्कि उन पर सवार होना है।

हर पल होते हैं लाखों चमत्कार
आध्यात्मिक प्रक्रिया का मतलब अस्तित्व पर अपनी कोई धारणा थोपना नहीं है, बल्कि ख़ुद को इस तरह बनाना है कि सृष्टि व सृष्टिकर्ता और इस अस्तित्व का हर परमाणु आपके सामने झुकने से स्वयं को न रोक सके। जब आप अपनी पसंद और नापसंद के पीछे भागते हैं, तो आप इस विशाल अस्तित्व में अकेला महसूस करते हैं, ख़ुद को लगातार असुरक्षित, अस्थिर और मनोवैज्ञानिक रूप से चुनौती भरा पाते हैं। लेकिन एक बार जब अस्तित्व आपके सामने झुक जाता है, तो यह आपको कृपा की अलग जगह पर पहुंचा देता है जहां हर कंकड़, हर चट्टान, हर पेड़, हर परमाणु आपसे ऐसी भाषा में बात करता है, जो आप समझते हैं।
हर पल आपके आसपास लाखों चमत्कार होते हैं। फूल का खिलना, चिड़ियों का चहचहाना, भौंरे का गुंजन करना, बारिश की बूंदों का गिरना और ताज़ा हवा के साथ हिम-कणों का उड़ना– हर जगह चमत्कार होता है। अगर आप इसे जीना सीख जाते हैं, तो जीवन हर रोज़ चमत्कार से कुछ कम नहीं है।

सही काम से होंगी सही चीज़ें
इससे फ़र्क नहीं पड़ता कि आप कौन हैं; आपकी ज़िंदगी तब तक सही नहीं हो सकती, जब तक कि आप सही काम नहीं करेंगे। हो सकता है कि आप ख़ुद को अच्छा इंसान मानते हों, लेकिन बाग़ीचे में पानी नहीं देंगे, तो फूल कैसे आएंगे? नतीजे चाहते हैं, तो सही काम करने होंगे। दरअसल, अच्छे-बुरे के फ़ैसले मानवीय और सामाजिक स्थितियों से तय होते हैं। सामाजिक मानदंड के रूप में ये ठीक हैं, लेकिन अस्तित्व इन निष्कर्षों की परवाह नहीं करता। अस्तित्व राय नहीं बनाता। यह सबके साथ एक सा बर्ताव करता है। जब तक आप सही चीज़ें नहीं करते, तब तक आपके लिए सही चीज़ें नहीं होंगी। सिद्धांत और दर्शन का सिर्फ़ सामाजिक महत्व है। यही समय है अपने आपको जाग्रत, जीवंत इंसान के रूप में जगाने का, न कि अपने आपको मनोवैज्ञानिक पहेली बनाने का। तभी आपका भाग्य आपका अपना होगा, सौ फ़ीसदी आपका अपना।
यह महज़ वादा नहीं, बल्कि गारंटी है।

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