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मध्य प्रदेश के अधिकारियों और कर्मचारियों को पदोन्नति के लिए अभी और कितना इंतजार करना पड़ेगा


 मध्य प्रदेश के अधिकारियों और कर्मचारियों को पदोन्नति के लिए अभी और कितना इंतजार करना पड़ेगा, कहा नहीं जा सकता है। पिछले साढ़े चार साल में राज्य सरकार पदोन्नति के रास्ते तक नहीं तलाश पाई है। इस अवधि में 65 हजार से ज्यादा अधिकारी- कर्मचारी सेवानिवृत्त हुए हैं। उनमें से करीब 35 हजार को पदोन्नति ही नहीं मिली। पदोन्नति पर रोक होने और लगातार सेवानिवृत्ति के कारण मंत्रालय सहित प्रदेश के शीर्ष सरकारी कार्यालयों में कर्मचारियों की कमी होने लगी है। जिसका असर कामकाज पर पड़ रहा है।


दो साल में दो चुनाव (विधानसभा और उपचुनाव) होने के बावजूद भी राज्य सरकार कर्मचारियों की पदोन्नति की समस्या को लेकर न वादा कर पाई और न ही समाधान। विधानसभा चुनाव के ठीक पहले शिवराज सरकार (पिछला कार्यकाल) ने कर्मचारियों से सशर्त पदोन्नति दिलाने का वादा किया था।


सामान्य प्रशासन विभाग ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अर्जी दाखिल करने की तैयारी भी की, पर अर्जी दाखिल ही नहीं हुई। कमल नाथ सरकार में भी इस दिशा में पहल हुई, पर अर्जी कोर्ट तक पहुंची ही नहीं। इस कारण कर्मचारियों की पदोन्नति के रास्ते नहीं खुल सके।







कोरोना काल के कारण उपचुनाव से पहले तो इसकी बात भी नहीं हुई। फिर पांच हजार कर्मचारी होंगे सेवानिवृत्त अगले दो महीने (नवंबर और दिसंबर) में मंत्रालय, सतपुड़ा और विंध्याचल भवन सहित तमाम सरकारी कार्यालयों से करीब पांच हजार कर्मचारी सेवानिवृत्त हो जाएंगे।


इनमें करीब एक हजार कर्मचारी ऐसे हैं, जिन्हें अब तक पदोन्नति मिल जानी थी। हालात यह हैं कि सामान्य और अनुसूचित जाति एवं जनजाति के कर्मचारी भी इस लड़ाई को दरकिनार कर पदोन्नति की प्रक्रिया शुरू करने की मांग कर रहे हैं।







इसे लेकर सपाक्स और अजाक्स दोनों संगठन सरकार को कई ज्ञापन सौंप चुके हैं। हाई कोर्ट ने किया था कानून रद मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने 30 अप्रैल 2016 को 'मप्र लोक सेवा (पदोन्नति) अधिनियम 2002' खारिज कर दिया था। इसके बाद से प्रदेश में पदोन्नति पर रोक लगी है। इसमें पदोन्नति में भी आरक्षण का प्रविधान था।


दरअसल, कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई और सुप्रीम कोर्ट ने मामले में यथास्थिति रखने के निर्देश दिए। इसके बाद अजाक्स के वकीलों ने वर्ष 2006 में एम. नागराज मामले में आए फैसले को गलत ठहराया।



इसमें भी पांच जजों की संविधान पीठ फैसला सुना चुकी है। अब फिर से मूल याचिका पर सुनवाई होना है, पर कोरोना काल के चलते सुनवाई नहीं हो पा रही है। वहीं सरकार ने भी चुप्पी साध रखी है।


इनका कहना है


राज्य सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में मामले की जल्द सुनवाई के लिए आवेदन लगाया गया है। जिस पर अभी सुनवाई होना बाकी है।


विनोद कुमार, अपर मुख्य सचिव, मप्र शासन


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