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क्या सरकार चाहती है कि कचोरी-समोसे का व्यापार भी सिर्फ बड़े उद्योग घराने ही करें


क्या सरकार चाहती है कि कचोरी-समोसे का व्यापार भी सिर्फ बड़े उद्योग घराने ही करें? शहर के कारोबारी जगत ने यह सवाल दागा है। खाने-पीने का व्यापार कर रहे छोटे कारोबारियों के समर्थन में फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एफएसएसएआइ) के नए नियम के विरोध में प्रदेश का सबसे बड़ा कारोबारी संगठन अहिल्या चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री खड़ा हो गया है। एफएसएसएआइ के नियम को वापस लेने की मांग करते हुए चेंबर ने प्रधानमंत्री को पत्र भेजा है।


एफएसएसआई ने बीते दिनों नया नियम जारी किया है। इसके अनुसार ऐसे कारोबारी जो वार्षिक दो हजार किलो से कम कचोरी, भुजिया, मिठाई या नमकीन जैसे खाने-पीने की चीजें बनाते और बिक्री करते हैं उन्हें एफएसएसएआइ से लायसेंस लेना होगा। सालाना साढ़े सात हजार रुपए की लायसेंस फीस देकर दिल्ली से इस लायसेंस को हासिल करने के लिए तमाम अनिवार्य पैमानों पर खरा उतरना होगा। इस नियम के मुताबिक ऐसे कारोबारियों को बीएससी केमेस्ट्री की डिग्री रखने वाले एक व्यक्ति को अपने यहां तकनीकी इंजार्च रखना होगा। पानी की जांच करवाना होगा। 6 फीट तक ग्लेज्ड टाइल्स लगाने के साथ ही उत्पादन एरिया और तैयार माल का क्षेत्र अलग-अलग रखना होगा। अहिल्या चेंबर के अध्यक्ष रमेश खंडेलवाल और सुशील सुरेका के मुताबिक चेंबर के सदस्य इंदौर और प्रदेश के 100 से ज्यादा व्यापारी एसोसिएशनों ने इस नए नियम के विरोध के लिए एकमत होकर सहमति दी है। नियम हास्यास्पद है। क्या छोटी सी गुमटी या कचोरी-समोसे और पोहे की दुकान चलाने वाले के लिए दिल्ली से लायसेंस लाना संभव होगा। पहले ही सब्जी-किराना का कारोबार पड़े पैमाने पर मल्टीनेशनल कंपनियों के हवाले कर दिया गया है। इस नए नियम के बाद खान-पान का छोटा सा धंधा कर रहे लोगों की दुकानें भी बंद हो जाएगी। एक ओर सरकार रेहड़ी-पटरी वालों को 10 हजार का लोन देकर व्यापार में मदद का दावा कर रही है दूसरी ओर ऐसे नियम बना रही है। नौकरशाह मनमर्जी से ऐसे नियम जारी कर रहे हैं। चेंबर ने प्रधानमंत्री को पत्र लिख इस नियम को वापस लिए जाने की मांग रखी है।


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