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गारली गांव में यूरोपीय शैली के प्रभाव से निर्मित एक हेरिटेज बिल्डिंग।

गारली गांव में यूरोपीय शैली के प्रभाव से निर्मित एक हेरिटेज बिल्डिंग। - Dainik Bhaskar

अगर आप किसी मशहूर हिल स्टेशन, तीर्थस्थल या किसी वन्य अभयारण्य के बजाय ऐसी जगह जाना चाहते हैं, जो बिल्कुल अलग हटके हैं, तो इन दो गांवों की यात्रा आपको कुछ अलग अनुभव दे सकती है। ये गांव हैं प्रागपुर और गारली। दोनों हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित हैं और ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक विरासत के लिए जाने जाते हैं। उनके इसी महत्व को देखते हुए हिमाचल प्रदेश सरकार ने इन दोनों गांवों को ‘विरासत गांव’ घोषित किया है। इन दोनों गांवों में सूद समुदाय द्वारा बनाए गए घर हैं, जो 19वीं शताब्दी में दूर-दूर तक यात्राएं करते थे। जब वे वापस आते तो दुनियाभर से सीखी हुईं कई अच्छी बातें और निर्माण कला के प्रभाव को अपने साथ लाते। इसे उन्होंने अपने गांव की निर्माण एवं वास्तुकला में समाहित किया। दोनों गांवों के घर यूरोपीय शैली से प्रभावित हैं, जो इन्हंे आकर्षक पर्यटन स्थल बनाते हैं। इन दोनों गांवों के आसपास भी कई दर्शनीय स्थल हैं। प्रागपुर गांव इस गांव के बाजार के बीच में एक कुंड स्थित है, जिसके चारों ओर हेरिटेज बिल्डिंग्स बनी हैं। यह बाजार वैसे तो छोटा है, लेकिन काफी आकर्षक है और पैदल घूमने के लिए उपयुक्त है। इसकी तंग गलियां पत्थरों से बनी हैं, जो मानो किसी पुराने समय में पहुंचा देती हैं। यहां की सबसे प्रसिद्ध इमारतों में से एक ‘जजेज कोर्ट’ है, जो अब एक हेरिटेज होटल में बदल चुकी है। इसका रेस्टॉरेंट आम पर्यटकों के लिए खुला रहता है।

गारली गांव यह प्रागपुर से लगभग 4 किमी की दूरी पर स्थित है। इस गांव में भी एक जलाशय है। यह गांव प्रागपुर की तुलना में थोड़ा अधिक विस्तारित है। यहां भी ठहरने की अच्छी सुविधाएं उपलब्ध हैं। यहां के अधिकांश होटल और लॉज पुराने घरों को रूपांतरित करके बनाए गए हैं। गारली का माहौल भी ऐसा है, जैसे लगता है समय यहां आकर थम-सा गया हो। प्रागपुर और गारली दोनों में कई इमारतें बंद पड़ी हैं या केयरटेकर ही उनकी देखरेख कर रहे हैं। लेकिन अब कई लोग फिर से इन गांवों की ओर लौटने लगे हैं। भले ही वे यहां पूरे समय न रहें, लेकिन वे इन इमारतों का पुनरुद्धार करवा रहे हैं।

दादा सीबा मंदिर प्रागपुर में स्थित यह मंदिर बाहर से देखने पर एक साधारण-सा ग्रामीण मंदिर प्रतीत होता है। लेकिन अंदर प्रवेश करने पर इसकी दीवारों पर कांगड़ा शैली की आश्चर्यजनक पेंटिंग्स दिखाई देती हैं। यह सादी दिखने वाली इमारत तब तक अंदर छिपे खजाने का आभास नहीं देती, जब तक कि आप उसमें प्रवेश नहीं करते हैं। अब यह मंदिर केंद्र सरकार के अधीन है। इसी तरह प्रागपुर से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर प्रसिद्ध ज्वाला देवी मंदिर स्थित है। ज्वाला देवी एक शक्तिपीठ है, जो हिंदुओं के लिए अत्यंत पूजनीय तीर्थस्थल है।

चंबा पट्टन में नौका विहार दोनों गांव ब्यास नदी के पास स्थित हैं। यहां नदी के किनारे बैठकर शांति का अनुभव किया जा सकता है। चंबा पट्टन वह क्षेत्र है, जहां नौका विहार की सुविधा भी उपलब्ध है। चंबा पट्टन में एक विशाल और प्राचीन पीपल का पेड़ है, जो गर्मियों की दोपहर में ठंडक और सुकून देता है। प्रागपुर और गारली प्रकृति की गोद में समय बिताने और इन स्थानों की समृद्ध विरासत का आनंद लेने के लिए बेहतरीन जगहें हैं। यहां हर गली में सुंदर वास्तुकला के अद्भुत नमूने देखने को मिलते हैं।

यहां तक कैसे पहुंचें? वायुमार्ग: निकटतम हवाई अड्डा गग्गल एयरपोर्ट (कांगड़ा-धर्मशाला) में है, जहां से प्रागपुर लगभग 55-60 किमी दूर है। एयरपोर्ट से टैक्सी या कैब लेकर प्रागपुर और गारली पहुंचा जा सकता है।

रेलमार्ग: निकटतम रेलवे स्टेशन ऊना है, जहां से प्रागपुर की दूरी करीब 60 किमी है। अब तो वंदे भारत एक्सप्रेस भी ऊना में रुकती है, जिससे पहुंचना और भी आसान हो गया है। ऊना से टैक्सी, कैब या लोकल बस द्वारा प्रागपुर पहुंच सकते हैं।

सड़क मार्ग: प्रागपुर और गारली दोनों राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों से अच्छी तरह जुड़े हुए हैं। आप चाहें तो चंडीगढ़ से भी पहुंच सकते हैं, जहां से ये लगभग 180 किमी दूर हैं। दिल्ली से करीब 420 किमी की दूरी पर स्थित हैं।

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