राजा बनने के लिए किसी पुरुष को यह सिद्ध करना आवश्यक है कि वह राज परिवार का सदस्य है। लेकिन संस्थापक बनने के लिए क्या करना अपेक्षित है? कोई व्यक्ति दूसरे लोगों पर राज करने के लिए अपने आप को उनसे विशिष्ट कैसे निर्धारित करता है?
प्राचीन भारत में दूसरों पर राज करने के इच्छुक महत्वाकांक्षी क्षत्रप ब्राह्मणों द्वारा अनुष्ठान करवाते थे। इस अनुष्ठान के सफलतापूर्वक पूरा होने का तात्पर्य यह था कि देवता उस क्षत्रप के पक्ष में हैं। अग्निस्तोम, अग्निचयन, अश्वमेध अर्थात वाजपेयी और हिरण्यगर्भ यजुर्वेद और ब्राह्मण साहित्य में वर्णित कुछ अनुष्ठान हैं।
लेकिन यह पर्याप्त नहीं था। ब्राह्मण कथाकार बन गए और उन्होंने राजाओं के राजत्व की पुष्टि करने हेतु कथाएं बताईं, जिनके अनुसार राजाओं का उद्गम अलौकिक हो गया। ये कथाएं साधारणतः राजवंश के स्थापित होने के एक या दो पीढ़ियों बाद उभरती थीं।
उदाहरणार्थ, कुछ राजा मनु के पुत्र और मानवता के पहले राजा पौराणिक इक्ष्वाकु से जुड़े थे। मनु स्वयं सूर्य-देव के पुत्र थे। अन्य राजा चंद्र-देव से जुड़े थे, जिन्होंने मनु की पुत्री ईला से विवाह किया था। इस प्रकार दिखाया गया कि राजवंश देवताओं से उभरा था। शालिवाहन की कहानी में यह दिखाया गया कि उनके पिता नागों के राजा थे। बालपन में शालिवाहन शेर पर सवार होते थे और इस प्रकार उन्होंने सातवाहन सिंहासन पर दावा किया, बावजूद इसके कि उनका पोषण कुम्हारों ने किया था।
बंगाल के मल्ल राजाओं के अनुसार एक राजपूत राजा और उनकी गर्भवती पत्नी पुरुषोत्तम क्षेत्र अर्थात पुरी जगन्नाथ मंदिर की ओर चलकर आ रहे थे। रानी थक गईं तो राजा ने उन्हें जंगल में त्याग दिया। कुछ समय बाद जंगल में संतान को जन्म देने के पश्चात रानी का निधन हो गया। एक आदिवासी पुरुष ने उनके शिशु को बड़ा किया। फिर एक ब्राह्मण उस बालक से मिला। बालक को अत्यंत बुद्धिमान पाकर ब्राह्मण ने उसे शिक्षा प्रदान की। जब वहां के राजा का निधन हुआ, तब राजसी गज ने उस बालक को चुनकर उसे सिंहासन पर बिठाया और वह बालक राजा बन गया। इस कहानी से राजा का राजसी दर्जा स्थापित किया जाता है।
दक्खन के क्षेत्र में शहर और मंदिर उन जगहों पर स्थापित किए गए, जहां शक्तिहीन जीवों ने शक्तिशाली जीवों का सामना किया। ऐसी कहानियां मिली हैं जिनमें एक शिकारी ने एक खरगोश को शिकारी कुकुर से बचाया या एक नाग को अपना फण उठाकर गर्भवती मेंढक की रक्षा करते हुए देखा गया। यहां शिकारी को एक देवी मिली। देवी ने उसे हथियार और खजाना देने का वचन दिया, इस शर्त पर कि वह उनके सम्मान में मंदिर बनाकर मेले आयोजित करेगा। यही कारण है जो भारत में राजाओं का देवियों के मंदिरों के साथ निकट का संबंध है। मराठा राजा तुलजापुर भवानी से, कोल्हापुर के राजा अंबाबाई से, मैसूर के वोडेयार राजा चामुण्डा से और विजयनगर के राजा पंपादेवी से जुड़े थे।
पश्चिम भारत की कहानियों के अनुसार ऋषियों की मुलाकात ऐसे पुरुषों से होती थी, जो नाग के फण के नीचे सोए रहकर धूप से बचते थे। गुजरात के चावड़ा राजवंश की कहानी के अनुसार एक राजकुमार झूले में पड़ा रहता था। पेड़ की छाया के स्थिर रहने के कारण राजकुमार हमेशा छाया में रहता था। इस कारण वह अलौकिक प्रतीत हुआ। राजपूत कहानियों में दैवीय नीले अश्व का उल्लेख पाया जाता है। यह अश्व वास्तव में अप्सरा है, जिसने अपने पुत्र की सेवा कर उसे उसके अभियानों में मदद की।
ऐसी कहानियां भारत के बाहर भी पाई जाती हैं। उदाहरणार्थ, एक किंवदंती के अनुसार रोम के संस्थापक, रोम्युलस और उनके जुड़वां भाई रेमस को एक मादा भेड़िए ने बड़ा किया था। किंग ऑर्थर से जुड़ीं किंवदंतियों के अनुसार उन्होंने एक पत्थर में जड़ी तलवार बाहर निकाली। इस प्रकार, आर्थर को वैधता दी गई।
ये कहानियां राजनीति में प्रचार करने का महत्व दर्शाती हैं। इस विश्व में सत्ता न केवल बल या कानून से, बल्कि कहानियों के माध्यम से भी स्थापित की जाती है। लोगों को बलपूर्वक अवश्य ही वश में किया जा सकता है। लेकिन अलौकिक कहानियों में विश्वास करने पर वे अपने आप सत्ता के सामने झुकते हैं और आसानी से वश में आते हैं। हालांकि कोई अपने बराबर के व्यक्ति के सामने नहीं, अपने से ताकतवर उस व्यक्ति के सामने ही झुकेगा, जिसे देवताओं ने आशीर्वाद दिया है। और देवताओं के आशीर्वाद वास्तव में राजाओं द्वारा समर्थित इतिहासकारों से स्थापित किए जाते हैं।
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