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भक्ति मार्ग में आराधना तो नाथ संप्रदाय में सिद्धियों पर बल!

महाराष्ट्र के चाकूर स्थित संत ज्ञानेश्वर की प्रतिमा। संत ज्ञानेश्वर को भक्ति मार्ग का एक महत्वपूर्ण संत माना जाता है। - Dainik Bhaskar

महाराष्ट्र के चाकूर स्थित संत ज्ञानेश्वर की प्रतिमा। संत ज्ञानेश्वर को भक्ति मार्ग का एक महत्वपूर्ण संत माना जाता है।तेरहवीं सदी में महाराष्ट्र में ज्ञानेश्वर ने भगवद गीता का मराठी में अनुवाद किया। सांस्कृतिक दृष्टिकोण से यह एक क्रांतिकारी घटना थी। उन्होंने लोगों को देवत्व के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित किया। यह हिंदू धर्म का भक्ति मार्ग था। यहां ज्ञानेश्वर या ज्ञान-देव को संत कहकर संबोधित किया जाता है।

किंवदंतियों के अनुसार, एक बार ज्ञानेश्वर को चंगा नाथ नामक तांत्रिक योगी ने ललकारा था। चंगा नाथ इस नौजवान कवि-संत को डराने के लिए बाघ पर सवार होकर उनके गांव आए। उस समय ज्ञानेश्वर और उनके भाई-बहन एक दीवार पर बैठे थे। चंगा नाथ को देखकर ज्ञानेश्वर ने अपनी शक्ति से उस दीवार को आकाश में उड़ाया। ज्ञानेश्वर और उनके भाई-बहनों को आकाश में उड़ते देखकर चंगा नाथ दंग रह गए और उनका अभिमान टूट गया। भारत के धार्मिक साहित्य में तांत्रिक नाथ-जोगी और भक्ति मार्ग के संतों के बीच प्रतिद्वंद्व की ऐसी कहानियां कई जगह दोहराई गई हैं।

पिछले 500 वर्षों में और खासकर मुगल काल से भक्ति मार्ग उभरने लगा और उसने तांत्रिक अनुष्ठानों और गुरुओं पर आधारित उससे पूर्व के संप्रदाय को पीछे छोड़ दिया। नाथ-जोगियों की ख्याति 10वीं सदी से और भी बढ़ती गई थी। यह हमें इस संप्रदाय के संस्थापक मत्स्येंद्रनाथ और गोरखनाथ की कहानियों से पता चलता है।

तांत्रिक मार्ग और भक्ति मार्ग के बीच एक मूल अंतर है। तांत्रिक मार्ग का उद्देश्य अनेक धार्मिक अनुष्ठानों के माध्यम से शरीर के भीतर शक्ति (सिद्धि) का निर्माण करना है। इस मार्ग में मान्यता है कि शक्तिशाली तांत्रिक जोगी सभी देवी-देवताओं से भी महत्वपूर्ण होता है। उसमें उड़ने, पानी पर चलने और अपना आकार बदलने जैसी शक्तियां होती हैं और वह जीवन और मृत्यु को भी वश में कर सकता है। इसके विपरीत भक्ति मार्ग में परमात्मा शरीर के बाहर वास करते हैं। राम और कृष्ण जैसे विष्णु के अवतारों की आराधना की जाती है। इस भक्ति के माध्यम से संत शक्तिशाली बनकर ख्याति अर्जित करते हैं।

लोग अपनी भक्ति साधारणतः संगीत और नृत्य के माध्यम से व्यक्त करते हैं। वे समूहों में भजन और कीर्तन गाते हैं और अपनी भक्ति में तल्लीन होकर नृत्य करते हैं। पुरी के चैतन्य महाप्रभु, तिरुपति के अन्नामाचार्य, कर्नाटक के हरिदास और ओडिशा के पंच सखा कवि ये कुछ महत्वपूर्ण भक्ति मार्गी थे।

लेकिन तांत्रिक अनुष्ठानों का संगीत और भावनाओं के साथ बहुत कम लेना-देना है। तंत्र में तरह-तरह के धार्मिक अनुष्ठानों, वास्तु-कला से जुड़ी प्रथाओं, ज्योतिष शास्त्र और यहां तक कि रहस्यमय यौन अनुष्ठानों की तकनीक तथा उनकी रहस्यमय जानकारी अधिक महत्वपूर्ण है। इन अनुष्ठानों का उद्देश्य अधिक शक्तिशाली बनना है। इसके विपरीत भक्ति मार्ग का उद्देश्य हमें यह बोध कराना है कि मोह माया का विश्व हमें शक्ति के लिए आसक्त बनाता है। यह समझने के बाद हम परमात्मा के चरणों में मोक्ष प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।

तांत्रिक साहित्य से हमें पता चलता है कि कैसे देवी-देवताओं को वश में किया गया। उदाहरणार्थ, दत्तात्रेय की कहानी में उनकी मां अनसूया ने अपने पतिव्रत्य से ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों को वश में कर लिया। ऐसे योगियों की भी कहानियां हैं जिन्होंने हनुमान और भैरव की शक्ति का भी प्रतिरोध किया। इस प्रकार, यह मान्यता है कि वे हिंदू देव गण से भी लगभग अधिक शक्तिशाली हैं।

भक्ति मार्ग में इसके बिलकुल विपरीत देखा जाता है। उसमें देव गण अपने भक्तों को बाघों पर सवार तांत्रिक योगियों से लड़ने के लिए समर्थ करते हैं। राजस्थान में पाई जाने वाली एक कहानी के अनुसार तारानाथ नामक योगी ने बाघ का रूप लेकर पयहारी नामक भक्त पर वार करने का प्रयास किया। जब पयहारी ने भगवान से प्रार्थना की तब भगवान ने योगी को बाघ से गधे में बदल दिया। अंत में योगी को अपने अभिमान के लिए क्षमा मांगनी पड़ी।

कबीर के दोहों में भी नाथ और संतों के बीच संघर्ष का उल्लेख है। लेकिन लोग शायद ही इस प्रतिद्वंद्व की चर्चा करते हैं। यह इसलिए कि वे साधारणतः हिंदू धर्म के लंबे इतिहास और विविधता को दरकिनार करना चाहते हैं, ताकि यह दिखाया जा सके कि हिंदू धर्म एकपक्षीय और समरूप है।

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