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विज्ञान के प्रयोग:रोशनी से होगा कैंसर का इलाज, कीमो थैरेपी की तरह ही दवा शरीर में डालेंगे; पर बाल झड़ने जैसे साइड इफेक्ट नहीं होंगे

आरआर कैट में साइंस डे, 73 स्कूलों के 1200 से ज्यादा बच्चों ने देखे विज्ञान के प्रयोग - Dainik Bhaskar

आरआर कैट में साइंस डे, 73 स्कूलों के 1200 से ज्यादा बच्चों ने देखे विज्ञान के प्रयोग

राजा रामन्ना प्रगत प्रौद्योगिकी केंद्र (आरआर कैट) में शनिवार काे राष्ट्रीय विज्ञान दिवस समारोह मनाया गया। इसमें 73 स्कूलों के 1200 से अधिक छात्र-छात्राएं शामिल हुए। रविवार को कॉलेज के छात्रों और कैट स्टाफ के परिवार वालों के लिए प्रदर्शनी रखी जाएगी।

इस वर्ष के राष्ट्रीय विज्ञान दिवस की थीम “वैश्विक भलाई के लिए वैश्विक विज्ञान ” थी। कार्यक्रम की शुरुआत केंद्र के निदेशक डॉ. शंकर नाखे के संबोधन से हुई। इंदौर डेफ एंड बाइलिंगुअल एकेडमी के 50 छात्रों ने भी विज्ञान के कई सिद्धांतों को समझा।

एंटी माइक्रोबियल फोटोडायनामिक थैरेपी से एंटी बायोटिक की जरूरत नहीं

आरआर कैट में ऐसी थैरेपी पर भी काम हो रहा है जिससे कैंसर के मरीज के शरीर में एक ऐसी दवा डाली जाएगी जो कि सिर्फ एक विशेष प्रकार की रोशनी के संपर्क में आने पर एक्टिव होगी और कैंसर कोशिकाओं को ख़त्म करेगी और अन्य समय वह निष्क्रिय होगी। इसमें इस्तेमाल होने वाली दवाई कीमोथैरेपी की ही तरह शरीर में डाली जाएगी पर बाल झड़ने जैसे साइड इफेक्ट नहीं होंगे। डॉ. शोवन मजुमदार ने बताया कि इस पर भी काम चल रहा है कि एंटी बायोटिक की जरुरत ही खत्म हो जाए। इस पद्धति को एंटी माइक्रोबियल फोटोडायनामिक थैरेपी कहा जाता है और इसकी मशीन निर्मित की जा रही हैं।

हर सेल को अलग करके उसकी जांच पर हो रहा काम

आरआर कैट में ऑप्टिकल ट्विज़र भी विकसित किया जा रहा है जिसमें लेज़र से एक निर्धारित सैंपल के एक-एक जीवंत सेल को अलग कर के उसकी जांच की जा सकती है। इसका उपयोग कई ऐसी बीमारियों को परखने में किया जा सकता हैं जिनकी साधारण जांच नहीं हो पाती, जैसे मैलेडिया। इस बीमारी की खून में जांच तभी हो पाती है जगब इंसान को तेज़ बुखार हो। अन्य समय इसका पता नहीं चल पाता। इस पद्धति का प्रारंभिक आविष्कार करने के लिए 2018 में सर आर्थर अस्किन को नोबेल पुरस्कार मिला था। तब उन्होंने भारत में इसपर हो रहे शोध का उल्लेख भी किया।

अंतरिक्ष भेजेंगे इंदौर में बनी लिक्विड ऑक्सीजन बॉटल

लेज़र एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग से ऐसी निकल अलॉय की लिक्विड ऑक्सीजन बॉटल बनाई जा रही है जो अंतरिक्ष में ऑक्सीजन रखने के काम आ सकेगी। इसे जांच के लिए इसरो भेजा गया है। इसरो की जरूरतों के अनुसार इसमें सुधार भी किया गया है। आरआर कैट के वैज्ञानिक डॉ सीपी पॉल ने बताया कि जब अंतरिक्ष में कोई भी यान भेजा जाएगा तो हम चाहते हैं कि भारत में हमारे द्वारा बनी यह लिक्विड ऑक्सीजन बॉटल उसमें हो। अभी इसे आयात किया जाता है। भारत में ही बनाने पर इसकी कीमत आधे से भी कम हो जाएगी।

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