ईसा मसीह से किस्सों से जीवन को सुखी और सफल बनाने के सूत्र सीख सकते हैं। जानिए ईसा मसीह के तीन ऐसे प्रसंग, जिनमें बताए गए सूत्रों को जीवन में उतारने से हमारी कई समस्याएं खत्म हो सकती हैं...
पहला प्रसंग
प्रभु यीशु अपने कुछ शिष्यों के साथ एक गांव से दूसरे गांव यात्रा करते रहते थे। यात्रा में वे अलग-अलग जगह रुकते और लोगों को उपदेश देते थे। एक दिन यात्रा के समय सभी शिष्य बहुत थक चुके थे, उन्हें भूख भी लग रही थी।
शिष्यों ने प्रभु यीशु से कहा कि हमें भूख लग रही है। हमें रुककर खाना खा लेना चाहिए। शिष्यों के कहने पर एक जगह पर ईसा मसीह रुके और खाना खाने के लिए कहा। शिष्यों ने देखा कि खाना बहुत कम है। जब ये बात उन्होंने प्रभु यीशु को बताई तो उन्होंने कहा कि जो कुछ भी है, वह सब मिल-बांटकर खा लो।
सभी शिष्यों ने एक साथ बैठकर खाना शुरू करने ही वाले थे, तभी वहां एक और भूखा व्यक्ति पहुंच गया। उसने भी प्रभु यीशु से खाना मांगा। यीशु ने उसे भी शिष्यों के साथ बैठकर खाने के लिए बोल दिया।
यीशु के कहने पर शिष्यों ने उस भूखे व्यक्ति को भी खाना दिया। सभी ने कुछ ही देर में खाना खा लिया। कम खाने के बाद भी सभी शिष्यों को संतुष्टि मिल गई, सभी की भूख शांत हो गई। शिष्य हैरान थे कि इतने कम खाने में सभी का पेट कैसे भर गया।
जब ये बात उन्होंने प्रभु यीशु को बताई तो उन्होंने कहा कि जो लोग खुद से पहले दूसरों के बारे में सोचते हैं, वे अभावों में भी संतुष्ट रहते हैं। तुम सभी ने खुद से ज्यादा दूसरों की भूख के बारे में सोचा, इसी वजह से थोड़ा सा खाना भी तुम लोगों के लिए पर्याप्त हो गया। इस प्रसंग की सीख यही है कि हमें हर परिस्थितिय में मिल-जुलकर ही रहना चाहिए।
दूसरी कथा
एक दिन प्रभु यीशु बुरे लोगों के साथ बैठकर खाना खा रहे थे। कुछ लोगों ने यीशु के शिष्यों से कहा कि तुम्हारा गुरु कैसा है? बुरे लोगों साथ खाना खा रहा है।
शिष्यों ने प्रभु यीशु से पूछा, 'आप गलत लोगों के साथ भोजन क्यों कर रहे हैं?
प्रभु यीशु बोले, 'एक बात बताओ स्वस्थ और बीमार व्यक्ति में से सबसे ज्यादा वैद्य की जरूरत किसे है?
सभी शिष्यों ने कहा, 'बीमार व्यक्ति को वैद्य की सबसे ज्यादा जरूरत है।
ईसा मसीह ने कहा, 'मैं भी एक वैद्य ही हूं। बुरे लोग रोगी की तरह हैं। उन लोगों की बीमारी दूर करने के लिए मैं उनके साथ बैठकर खाना खाता हूं, उनके साथ रहता हूं। जिससे वे लोग भी गलत काम छोड़कर अच्छे रास्ते पर चल सके।'
तीसरी कथा
एक गडरिया अपनी सबसे छोटी भेड़ को कंधे पर उठाकर जा रहा था। थोड़ी देर बाद गडरिए ने भेड़ को कंधे से उतारा, उसे नहलाया, उसके बालों को सुखाया। हरी खास खिलाई। ईसा मसीह ने देखा कि वह गडरिया बहुत खुश है। वे गडरिए के पास गए और पूछा, 'तुम इस भेड़ की देखभाल करके बहुत खुश हो, ऐसा क्यों?'
गडरिया बोला, 'ये भेड़ बार-बार रास्ता भटक जाती है। इसीलिए मैं हमेशा इसे अपने पास रखता हूं। इसका बहुत अच्छी तरह ध्यान रखता हूं, ताकि ये मुझसे दूर न जाए और रास्ता न भटके।
ये बात सुनकर ईसा मसीह ने अपने शिष्यों से कहा, 'इनकी बात में एक महत्वपूर्ण सूत्र छिपा है। एक बात हमें भी हमेशा ध्यान रखनी चाहिए कि भटके हुए लोगों पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। जैसा कि इस भेड़ के साथ व्यवहार किया जा रहा है, वैसा ही व्यवहार भटके हुए लोगों के साथ भी करना चाहिए। इस बात का ध्यान रखने पर ही गलत रास्ते पर चल रहे लोग सुधर सकते हैं।
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