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अपनी भूल अपने ही हाथों सुधरे तो ठीक

  • मुंशी प्रेमचंद हिन्दी और उर्दू के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार, कहानीकार एवं विचारक थे। आरंभ में वो उर्दू की पत्रिका ‘ज़माना’ में ‘नवाब राय’ के नाम से लिखते थे।

1. दौलतमंद आदमी को जो सम्मान मिलता है, वह उसका नहीं उसकी दौलत का सम्मान होता है। 2. जीवन का वास्तविक सुख दूसरों को सुख देने में है, उनका सुख लूटने में नहीं। 3. कार्यकुशलता की व्यक्ति को हर जगह जरूरत पड़ती है। 4. खाने और सोने का नाम जीवन नहीं है, आगे बढ़ते रहने की लगन का नाम ही जिंदगी है। 5. सफलता में दोषों को मिटाने की असाधारण शक्ति है। 6. अपनी भूल अपने ही हाथों सुधर जाए, तो यह उससे कहीं अच्छा है कि कोई दूसरा उसे सुधारे। 7. अतीत चाहे जैसा भी हो, उसकी स्मृतियां प्रायः सुखद होती हैं। 8. चोर केवल दंड से ही नहीं बचना चाहता, वह अपमान से भी बचना चाहता है। वह दंड से उतना नहीं डरता है, जितना कि अपमान से डरता है। 9. आत्मसम्मान की रक्षा हमारा सबसे पहला धर्म और अधिकार है। 10. क्रोध मौन सहन नहीं कर सकता। मौन के आगे क्रोध की शक्ति असफल हो जाती है। 11. अन्याय होने पर चुप रहना, अन्याय करने के ही समान है। 12. निराशा संभव को असंभव बना देती है।

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