Header Ads Widget

Responsive Advertisement

लेप्रोसी के प्रति समभाव का अनूठा प्रदर्शन:भेदभाव मिटाने के लिए लेप्रोसी कॉलोनियों के बच्चों के साथ एक मंच पर आए कई राज्यों के युवा

समाज में लेप्रोसी (कुष्ठ रोग) पेशेंट्स को ही नहीं बल्कि उनके बच्चों को भी घृणा की दृष्टि से देखा जाता है जो कि काफी निंदनीय है। लेप्रोसी को लेकर लोगों में धारणा है कि यह इन्फेक्शन वाली बीमारी है। एक बार किसी को अगर यह बीमारी हो जाती है तो उसे दूसरे तो ठीक परिवार के लोग भी अलग कर उसे अस्पताल या उनके लिए बसाई गई कॉलोनियों में उन्हें शिफ्ट कर देते हैं। इन सभी मिथकों को तोड़ते हुए मप्र सहित दिल्ली, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों के युवाओं ने लेप्रोसी पेशेंट्स के बच्चों के साथ भेदभाव मिटाने तथा खुशियां साझा करने के लिए उन्हें एक मंच पर लाए। खास बात यह कि तीन दिन तक इन युवाओं ने लेप्रोसी कॉलोनियों के बच्चों के साथ समय बिताया। उनके साथ मंच पर सांस्कृतिक कार्यक्रम किए और भोजन भी किया। इस दौरान फेस्टिवल में लेप्रोसी से ग्रस्त माता-पिता भी ऑडिटोरियम में आए और अपने बच्चों के साथ समभाव का अनूठा प्रदर्शन देखा तो गदगद भी हुए और आंखें भी नम हो गई।

दरअसल लेप्रोसी के प्रति जागरूकता और एकजुटता का संदेश देने के लिए सासाकावा-इंडिया लेप्रोसी फाउंडेशन और ओरिएंटल यूनिवर्सिटी द्वारा तीन दिनी यूथ फेस्टिवल का आयोजन यूनिवर्सिटी ऑडिटोरियम किया गया। इस यूथ फेस्टिवल में विभिन्न पृष्ठभूमि के युवाओं ने भागीदारी की। इस तरह के आयोजन से विभिन्न लेप्रोसी कॉलोनियों के बच्चों-युवाओं तथा महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश राज्यों के विभिन्न कॉलेजों के युवाओं को एक मंच पर साथ गया जिनमें एकजुटता भावना थी। इस तीन दिनी फेस्टिवल के दौरान, प्रतिभागियों द्वारा कई रचनात्मक गतिविधियों के ज़रिये ये एक-दूसरे के करीब हुए और बातें साझा की।

भेदभाव मिटाने के लिए ऐसा खूबसूरत मंचन।
भेदभाव मिटाने के लिए ऐसा खूबसूरत मंचन।

युवा पीढ़ी की खास भूमिका
दरअसल एस-आईएलएफ का यूथ फेस्टिवल गैर-कुष्ठ पृष्ठभूमि (विभिन्न कॉलेजों/विश्वविद्यालयों के छात्र) के युवाओं को लेप्रेोसी कॉलोनियों के युवाओं के साथ घुलने-मिलने और बातचीत करने के लिए एक मंच प्रदान करता है। इन संवादों का उद्देश्य लेप्रोसी के बारे में बने हुए मिथकों को तोड़ना और कॉलेज के युवाओं के बीच सामाजिक सेतु का निर्माण करना है। यूथ फेस्टिवल "हम बनाम वे" के विभाजन को समाप्त करने में मदद करता है। डॉ. विवेक लाल (सीईओ. सासाकावा-इंडिया लेप्रोसी फाउंडेशन) ने बताया कि लेप्रोसी के बारे में जागरूकता बढ़ाने के अभियानों के बावजूद समुदाय में कई मिथक और गलत धारणाएं हैं जो कलंक और भेदभाव का कारण बनती हैं।

ऐसी मनमोहक प्रस्तुति।
ऐसी मनमोहक प्रस्तुति।

सकारात्मक आयोजन से ही मिलेगी सही दिशा

बकौल डॉ. लाल ऐसे सकारात्मक आयोजन से कलंक समाप्त होगा और एक अधिक समावेशी समाज बनाने में मदद मिलेगी। दुनिया में लेप्रोस के सबसे ज्यादा नए मामले भारत में पाए गए हैं। अब जरूरत है लेप्रोसी ग्रस्त व्यक्तियों के सामाजिक पुनर्वास के लिए काम करें और महात्मा गांधी के 'कुष्ठ मुक्त भारत' के सपने को पूरा करने के लिए कलंक और भेदभाव से निपटने में मदद करें। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रोफेसर (डॉ.) सुनील सोमानी (वाइस चांसलर, ओरिएंटल यूनिवर्सिटी) ने विभिन्न प्रतियोगिताओं विजेताओं को सम्मानित किया। इसके साथ ही सभी लोगों से इस उद्देश्य का समर्थन करने का आग्रह किया।

खुशियां साझा करने का एक अंदाज यह भी।
खुशियां साझा करने का एक अंदाज यह भी।
कलाकारों ने बनाया ऐसा पिरामिड।
कलाकारों ने बनाया ऐसा पिरामिड।

लेप्रोसी : विश्व से लेकर इंदौर से जुड़े फैक्ट्स

- पूरे वर्ल्ड में (कोरोना से पहले) हर साल लेप्रोसी के करीब 2 लाख नए पेशेंट्स आते हैं।

- इनमें से सबसे ज्यादा 55% से 60% से ज्यादा भारत में होते हैं। यह काफी पुरानी बैक्टीरिया वाली बीमारी है। इस बीमारी के मामले में भारत एक तरह से न्यूक्लियस है।

- मप्र में हर साल 8500 हजार लेप्रोसी के नए केस होते हैं जबकि इंदौर में 350 नए केस सामने आते हैं।

- इस बीमारी का इलाज किसी भी सरकारी अस्पताल मे सौ फीसदी (मुफ्त में) किया जाता है। इसके लिए पेशेंट्स को मल्टी ड्रग थैरेपी दी जाती है।

- विडम्बना यह कि लेप्रोसी ग्रस्त पेशेंट्स को एक तरह से परिवार ही नहीं समाज भी दूर कर देता है।

- इंदौर में लेप्रोसी ग्रस्त लोगों के लिए बाणगंगा, अलवाला, जम्बूर्डी हप्सी आदि स्थानों पर कुल नौ कॉलोनियां हैं।

- सरकार की उदासीनता के कारण इन्हें हर माह सिर्फ 600 रु. भरण पोषण मिलता है जिसमें इनका गुजारा नहीं होता। दूसरे राज्यों में ऐसे पेशेंट्स को ढाई हजार रु. से ज्यादा भरण पोषण दिया जाता है।

- मप्र में बड़वानी सहित कुछेक स्थानों पर इनकी कॉलोनियों में बिजली, पानी की समस्याएं हैं।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ