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इंदौर का सीना चौड़ा करने वाली खबर:मेलों में बेचे बर्तन, सिक्के बनाने वाली विश्व की दूसरी बड़ी कंपनी, सेना के मेडल भी यहीं बन रहे

देश और दुनिया में सिक्के व आर्मी मेडल बनाकर धाक जमाने वाली कंपनी ने इंदौर में 115 साल पूरे कर लिए हैं। मेलों में पैदल बर्तन बेचने से इस कंपनी का सफर शुरू हुआ था। यह कंपनी दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी कंपनी है जो भारत और दूसरे देशों के लिए कोरे सिक्के बना रही है। कंपनी अब तक 800 करोड़ सिक्के बना चुकी है। सैनिकों के सीने पर दिखाई देने वाले मेडल भी यहीं बन रहे हैं। इतना ही नहीं ओमान, सऊदी अरब, अमेरिका की बंदूक की गोलियों के कवर भी यहीं बन रहे हैं।

800 करोड़ सिक्के बना चुकी है कंपनी
ग्रुप द्वारा देश व दुनिया में अभी तक 800 करोड सिक्के बनाकर सप्लाय किए जा चुके हैं। इसका वजन करीब 1 लाख टन है। कंपनी आरबीआई के लिए 5, 10 और 20 रुपए के सिक्के बनाती है। कंपनी हर साल करीब 500 करोड़ रु. मूल्य के साढ़े 5 टन वजनी कोरे सिक्के बनाती है। इन पर कीमत व अन्य सील आरबीआई बाद में लगाता है।

इस तरह कोरे सिक्के बनते हैं फैक्ट्री में आरबीआई इन पर लगाता है रुपए की सील।

सेना के लिए बनाए 23 लाख मेडल
कंपनी सेना के मेडल भी बनाती है। कंपनी के एक्जीक्यूटिव मार्केटिंग डायरेक्टर अंकित डी मित्तल बताते हैं कि ग्रुप ने 23 लाख आर्मी मेडल भी देश की सेवा में बनाकर दिए है जो हमारे वीर जवानों के सीने पर चमक रहे हैं। हम यह काम मेक-इन इंडिया को फोकस में रखकर पूरा कर रहे हैं, जिससे देश को बाहर से सिक्के जैसी सामग्री नहीं मंगानी पड़े।

इस फैक्ट्री में तैयार होते हैं सिक्के और सेना के लिए मेडल।

अब EV के लिए बना रहे कंपोनेंट
मित्तल कंपनी अब सिक्कों और मैडल के साथ ही देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए इलेक्ट्रिक व्हीकल में इस्तेमाल होने वाले 100 से ज्यादा प्रकार के कंपोनेंट तैयार कर रही है। कंपनी ने यह काम 2021 में शुरू किया। दिनेश मित्तल ने बताया कि एक कंपनी ने चाइना की निर्भरता खत्म करने के लिए हमसे कंपोनेंट का करार किया है। अब वह कंपनी चाइना से कंपोनेंट नहीं लेती है उसकी मांग की जरूरत हम पूरी करती हैं।


कंपनी अब सिक्कों के साथ बंदूक की गोली के खोल बनाकर अमेरिका, ओमान, सऊदी अरब सहित अन्य देशों को एक्सपोर्ट कर रही है।
गोली के कैप और खोल भी बना रही
चैयरमेन व एमडी दिनेश मित्तल ने बताया कि कंपनी सिक्कों के साथ ही अब रक्षा के क्षेत्र में भी काम कर रही है। कंपनी ओमान, सऊदी अरब, अमेरिका और दुनिया के अन्य कई विकसित देशों के लिए बंदूक की गोलियों के कवर (खोल) बनाने के सप्लाई कर रही है। कंपनी ने गोली के खोल व कैप बनाने का काम लॉकडाउन में शुरू किया है।
मित्तल परिवार ने इंदौर के कसेरा बाजार में सबसे पहली दुकान खोली थी।

राजस्थान के डींडवाना से 1897 में इंदौर आया मित्तल परिवार
साल 1897 में राजस्थान के डींडवाना में रहने वाले गंगाराम मित्तल पत्नी, बेटी और दो बेटों के साथ इंदौर आकर बस गए थे। यहां उन्होंने पैदल व साइकल पर मेलों में घूमकर तांबे, पीतल के बर्तन बेचना शुरू किए। जिसके बाद उन्होंने 1907 में कसेरा बाज़ार में बर्तन की दुकान खोली जो आज भी मौजूद है। वहीं गंगाराम के पोते बाबूलाल मित्तल ने आगे चलकर अपने व्यापार का औद्योगीकरण किया और 1935 में सेंट्रल इंडिया की पहली ब्रास (पीतल) रोलिंग मिल मल्हारगंज में श्री कृष्ण ब्रास रोलिंग मिल के नाम से शुरू की।

बर्तन बनाने के साथ कंपनी कई तरह के प्रॉडक्शन में उतर गई।

30 हजार रुपए से शुरू किया काम आज 800 करोड़ रुपए का टर्नओवर
बाबूलाल मित्तल ने 1935 में 30 हजार रुपए की पूंजी से पहली फैक्ट्री शुरू की थी। आज मित्तल ग्रुप का टर्नओवर 800 करोड़ रुपए का है। कंपनी भारत के साथ ही थाईलैंड, मलेशिया, पेरू, डॉमिनिक रिपब्लिक, कनाडा और फ्रांस सहित अन्य देशों के लिए सिक्के बना रही है।

ऐसे बढ़ता चला गया कारवां
1935 में रोलिंग मिल शुरू होने के बाद कंपनी ने 1955 में प्रदेश की पहली पीतल के बर्तन की फैक्टरी शुरू की, इसके बाद 1974 में प्रदेश की पहली एल्यूमीनियम बर्तन की फैक्ट्री खोली। इसके बाद 1980 में प्रदेश की पहली स्टेनलेस स्टील शीट की फैक्ट्री और 1987 मे मित्तल एप्लाइंसेस लिमिटेड शुरू किया। कंपनी ने 1989 से कॉइन बनाने के लिए काइन बनाने की फैक्ट्री शुरू की।












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