Header Ads Widget

Responsive Advertisement

गृहस्थ जीवन अपनाया है तो सबसे पहले अपनी जिम्मेदारियां पूरी करनी चाहिए

कहानी:स्वामी रामानंद से जुड़ी घटना है। वे जहां जाते थे, लोग उनका बहुत स्वागत करते थे। उनकी तप शक्ति के बारे में सभी जानते थे। जब वे एक गांव में ठहरे थे तो उस समय एक महिला उनके दर्शन करने पहुंची और प्रणाम किया। उस महिला का नाम रुक्मिणी था। स्वामी रामानंद ने उस महिला को आशीर्वाद देते हुए कहा, 'सौभाग्यवती भव। तुम्हारी संतानें योग्य हों।'

ये बातें सुनकर रुक्मिणी की आंखों में आंसू आ गए। उसने कहा, 'आप जैसे महान संत का आशीर्वाद भी मुझे नहीं फलेगा।'

रामानंद ने इसकी वजह से पूछी तो वह बोली, 'मेरे पति विट्ठल पंथ आपसे दीक्षा पाकर संन्यासी हो गए हैं। वे मुझे सुहागिन छोड़कर चले गए।'

महिला के जाने के बाद स्वामी रामानंद ने पता लगाया तो उन्हें मालूम हुआ कि उनके शिष्य विट्ठल पंथ चैतन्याश्रम बनकर संन्यासी जीवन जी रहे हैं।

स्वामी रामानंद जी ने अपने शिष्य चैतन्याश्रम से कहा, 'तुम्हारी पत्नी आलंदी गांव में तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही है। मैंने तुम्हें दीक्षा दी है, मैं तुम्हारा गुरु हूं तो तुम मेरी बात मानो। तुमने गृहस्थ जीवन अपनाया है, तो पहले उसे ठीक से जियो। गृहस्थ जीवन एक दायित्व होता है। तुम्हें अगर संन्यासी बनना है, तो तुम गृहस्थ जीवन में भी आचरण संन्यास ले सकते हो। तुमने अभी जो लिया है, वह आवरण संन्यास है। अपने दायित्व से मुंह नहीं मोड़ना चाहिए। जाओ अपनी धर्म पत्नी के साथ जीवन बिताओ। संन्यासी बनकर सेवा ही करना चाहते हो तो ऐसी संतान इस संसार को दो कि संसार तुम्हारी सेवा को याद रखे।'

गुरु के कहने पर चैतन्याश्रम यानी विट्ठल पंथ पत्नी रुक्मिणी के पास पहुंचे और गृहस्थ जीवन बिताने लगे। इनके यहां संत ज्ञानेश्वर का जन्म हुआ था।

सीख

गृहस्थ जीवन में भी संन्यास धर्म और सेवा भाव निभाया जा सकता है। जीवन में सबसे पहले अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाना चाहिए। इसके बाद ही व्यक्तिगत लक्ष्यों पर ध्यान देना चाहिए। संतान को संस्कारी बनाना भी समाज सेवा ही है।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ