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बचपन मासूमियत भरा होना चाहिए, अपने बच्चों को ऐसी बातों से दूर रखें, जिन से वासना जागती है

 

कहानी - ब्रह्मा जी की मानस पुत्री संध्या घोर तप कर रही थीं। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी प्रकट हुए। शिव जी ने संध्या से कहा, 'देवी आपने बड़ा अद्भुत तप किया है। अब जब मैं प्रकट हुआ हूं तो मुझे आपको वरदान देना है। मैं चाहता हूं कि आप वर मांग लो और मुझे जाने दो।'

संध्या ने कहा, 'आपके दर्शन हो गए हैं। आप वर देना चाहते हैं तो मैं अपने लिए कुछ नहीं मांगती, लेकिन मेरा आपसे एक निवेदन है कि इंसान का जब जन्म हो तो काम, क्रोध, लोभ और मोह, ये चार दुर्गुण उसे घेर लेते हैं। आप ऐसा कुछ आशीर्वाद दीजिए कि इंसान को बाल्यावस्था में काम नाम का दुर्गुण न सताए।'

शिव जी ये बात सुनकर बहुत प्रसन्न हुए और कहते हैं, 'संध्या, आपने बहुत बड़ी बात मांग ली है और मैं तुम्हें वरदान देता हूं कि मनुष्य को बचपन में काम नहीं सताएगा। कुछ परिस्थितियों में बचपन जाते समय और किशोरावस्था आते समय कामवासना जाग सकती है, लेकिन बचपन काम से मुक्त रहेगा।'

ये वर देकर शिव जी चले गए। उस समय संध्या ने जो वरदान मांगा, मानवता आज भी उसके लिए अनुग्रहित है, क्योंकि एक बच्चे में चार अवगुणों में से तीन अवगुण क्रोध, लोभ और मोह तो होते ही हैं, लेकिन काम नहीं होता। अगर संध्या ने वरदान न मांगा होता तो बचपन से ही कामवासना जाग जाती तो पता नहीं मनुष्य का जीवन कैसा होता।

सीख - बचपन की सरलता इसी में है कि वह काम मुक्त रहे और उसे वासना से बचाया जाए। आज ऐसी परिस्थितियां बन गई हैं कि बहुत कम उम्र में ही बच्चे में कामवासना जाग रही है। माता-पिता को प्रयास करना चाहिए कि बच्चे गलत बातों से दूर रहें। उन्हें सुख-सुविधाओं के साथ ही अच्छे संस्कार भी जरूर दें।




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