कहानी - एक बार नारद मुनि ने कामदेव को पराजित किया तो उन्हें अहंकार हो गया। वे हर जगह ये बोल रहे थे कि मैंने काम को पराजित कर दिया है। अपनी प्रशंसा करते-करते वे कैलाश पर्वत पहुंच गए।
शिव जी ने भी कामदेव को भस्म कर दिया था, लेकिन उन्होंने क्रोध किया था। नारद मुनि शिव जी से कहते हैं, 'मैंने न क्रोध किया, न मुझमें लोभ था, फिर भी मैंने काम को पराजित कर दिया।'
शिव जी समझ गए कि नारद मुनि भक्त हैं और इन्हें अहंकार हो गया। शिव जी बोले, 'आप मुझसे ये बात कह रहे हैं, लेकिन विष्णु जी से मत कहना।'
किसी को कोई काम न करने के लिए कहा जाए तो वह सबसे पहले वही काम करता है। ठीक ऐसा ही नारद ने भी किया। नारद को लगा कि शिव जी को मेरी प्रशंसा अच्छी नहीं लग रही है तो वे उन्हें टाल कर विष्णु जी के पास पहुंच गए।
विष्णु जी ने नारद मुनि का घमंड तोड़ दिया था, लेकिन शिव जी ने नारद मुनि से जो बातें कही थीं, वह हमारे बहुत काम की हैं।
शिव जी ने नारद से कहा था, 'आप बार-बार कह रहे हैं कि आपने कामदेव को पराजित कर दिया है, लेकिन आपके मुंह से लोग राम कथा सुनना चाहते हैं, और आप कामकथा सुना रहे हैं। मनुष्य का जो मूल काम है, जो काम उसकी पहचान है, जो जिम्मेदारी है, उसे वही काम करना चाहिए।'
सीख - शिव जी की ये बातें नारद समझ नहीं सके। यहां नारद मुनि ने दो गलतियां कीं, जो हमें नहीं करनी चाहिए। पहली, जब कोई सलाह दे तो सबसे पहले ये देखें कि सलाह देने वाला कौन है? बहुत से लोग नि:स्वार्थ भाव से सलाह देते हैं, लेकिन हमें लगता है कि ये हमारा अहित सोच रहे हैं, इनका अपना कुछ स्वार्थ होगा। बस यहीं गलती हो जाती है। दूसरी गलती ये है कि हम अपना मूल काम छोड़कर दूसरा काम करने लग जाते हैं, ये भी नुकसानदायक है। जैसा नारद को हुआ। जो हमारा मूल काम है, उसे ईमानदारी से करें और अच्छी सलाह को जीवन में अपनाएं।
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