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चातुर्मास शुरू, 15 नवंबर तक:दिन में एक बार भोजन करते हैं साधू-संत; मौन व्रत भी किए जाते हैं इस दौरान

 

  • चातुर्मास के दौरान ही आते हैं नवरात्र, दशहरा और दीपावली जैसे बड़े तीज- त्योहार

चातुर्मास आषाढ़ शुक्लपक्ष की एकादशी यानी देवशयनी एकादशी से शुरू होकर चार महीने तक चलते हैं। हिंदू धर्म में मान्यता है कि इन 4 महीनों में भगवान विष्णु योगनिद्रा में रहते हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि इस वक्त भगवान क्षीर सागर अनंत शैय्या पर शयन करते हैं। इसलिए इन चार महीनों में शुभ काम नहीं होते। उसके बाद कार्तिक महीने में शुक्लपक्ष की एकादशी पर भगवान योगनिद्रा से जागते हैं। इस एकादशी को देवउठानी एकादशी और प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है।

हिन्दू धर्म में चातुर्मास का महत्व
चातुर्मास यानी चार महीनों का समय। हिंदू कैलेंडर में आषाढ़ महीने के आखिरी दिनों में चातुर्मास शुरू हो जाता है। जो कि सावन, भादौ, अश्विन और कार्तिक महीने के आखिरी दिनों तक रहता है। धर्मग्रंथों के जानकार पुरी के डॉ. गणेश मिश्र बताते हैं कि इन दिनों में ही हिंदू धर्म के सभी खास तीज-त्योहार मनाए जाते हैं। चातुर्मास के दौरान आषाढ़ के आखिरी दिनों में भगवान वामन और गुरु पूजा, सावन में शिव आराधना, भाद्रपद में भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव, आश्विन में शारदीय नवरात्रि, कार्तिक महीने में दीपावली और भगवान विष्णु के जागरण के साथ ही तुलसी विवाह महापर्व मनाया जाता है।

बैक्टीरिया, कीड़े-मकोड़े, जीव जंतु की बढ़ जाती है संख्या
धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी चातुर्मास में परहेज करने और संयम अपनाने का महत्व है। इस समय बारिश होने से हवा में नमी बढ़ जाती है। इस कारण बैक्टीरिया, कीड़े-मकोड़े, जीव जंतु आदि की संख्या बढ़ जाती है।
इनसे बचने के लिए खाने-पीने में परहेज किया जाता है।

मान्यता: जैन धर्म में चातुर्मास
जैन और बौद्ध धर्म में चातुर्मास का बड़ा ही महत्व होता है। साधु संत इस दौरान एक ही स्थान पर रहकर साधना और पूजा पाठ करते हैं। जैन धर्म को अहिंसा के मार्ग पर चलने वाला धर्म माना गया है। इनके सिद्धांतों के अनुसार, बारिश के मौसम में कई प्रकार के कीड़े, सूक्ष्म जीव सक्रिय हो जाते हैं। ऐसे में मनुष्य के अधिक चलने-फिरने से जीव हत्या का पाप लग सकता है। यही वजह है साधु-संत एक ही स्थान पर रूकते हैं।

चातुर्मास के नियम: क्या करें-क्या नहीं
चातुर्मास के दौरान फर्श पर सोना और सूर्योदय से पहले उठना चाहिए। इन 4 महीनों में अधिकतर समय तक मौन रहना चाहिए। हो सके तो दिन में केवल एक बार ही खाना खाना चाहिए। इन दिनों मांसाहार और शराब से भी दूर रहना चाहिए। गद्दीदार पलंग पर नहीं सोना चाहिए। शहद या किसी भी तरह के रस का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। बैगन, मूली और परवल खाने से भी बचना चाहिए।


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