सुप्रीम कोर्ट के समक्ष COVID-19 स्वत: संज्ञान मामले में एक हस्तक्षेप आवेदन दायर किया गया, जिसमें महामारी के दौरान पत्रकारों और मीडिया कर्मियों की स्थिति पर प्रकाश डाला गया है और पत्रकारों और उनके परिवारों को उचित और पर्याप्त COVID-19 उपचार सुनिश्चित करने के निर्देश देने की मांग की गई है। डॉ कोटा नीलिमा की ओर से एडवोकेट लुबना नाज़ द्वारा याचिका दायर की गई और सीनियर एडवोकेट सलमान खुर्शीद द्वारा निपटाया गया। डॉ कोटा नीलिमा इंस्टीट्यूट ऑफ परसेप्शन स्टडीज और इसकी मीडिया पहल 'रेट द डिबेट' की निदेशक हैं। आवेदन में कहा गया है कि जो डेटा एकत्र किया गया है उसके मुताबिक अप्रैल 2020 से अब तक 346 पत्रकारों की मौत हुई हैं। इसके अलावा, उन पत्रकारों के लिए चिकित्सा सुविधाओं और संस्थागत समर्थन की कमी है, जो महामारी के दौरान बिना किसी मान्यता के काम कर रहे हैं।
याचिका में कहा गया कि, "COVID-19 के कारण 253 पत्रकारों की मौत हुई है, जिनकी पुष्टि हो चुकी है और 93 मौतें जो 1 अप्रैल 2020 से 19 मई 2021 के बीच हुई हैं। उक्त सूची संपूर्ण नहीं है। 1 अप्रैल 2020 से 19 मई 2021 के बीच औसतन 4 पत्रकारों की मौत हुई है। डेटा बताता है कि 34% मौतें मेट्रो शहरों में हुई हैं जबकि 66% मौतें छोटे शहरों में हुई हैं। इसके अलावा डेटा से यह भी पता चलता है कि 54% मौतें प्रिंट मीडिया में हुई हैं और सबसे ज्यादा मौतें 41-50 साल के आयु वर्ग में हुई हैं।"
याचिका में कहा गया कि, "COVID-19 के कारण 253 पत्रकारों की मौत हुई है, जिनकी पुष्टि हो चुकी है और 93 मौतें जो 1 अप्रैल 2020 से 19 मई 2021 के बीच हुई हैं। उक्त सूची संपूर्ण नहीं है। 1 अप्रैल 2020 से 19 मई 2021 के बीच औसतन 4 पत्रकारों की मौत हुई है। डेटा बताता है कि 34% मौतें मेट्रो शहरों में हुई हैं जबकि 66% मौतें छोटे शहरों में हुई हैं। इसके अलावा डेटा से यह भी पता चलता है कि 54% मौतें प्रिंट मीडिया में हुई हैं और सबसे ज्यादा मौतें 41-50 साल के आयु वर्ग में हुई हैं।"
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