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मायथोलॉजी:हड़प्पा के काल में क्या हिंदू धर्म अस्तित्व में था?

 

नई दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखी विश्व प्रसिद्ध प्रतिमा ‘डांसिंग गर्ल’।

मोहनजोदड़ो के खंडहर में मिली हड़प्पन लड़की की मूर्ति की तस्वीरें विश्वविख्यात हैं। इन्हें मैं बचपन से देखते आया हूं। यह लड़की बड़ी ठाठ से खड़ी है, अपना मुंह ऊपर की ओर किए, एक हाथ अपनी कमर पर और दूसरा हाथ अपने मुड़े हुए घुटने पर रखे हुए। उसका एक हाथ चूड़ियों से पूरी तरह से ढंका हुआ है। उसकी गर्दन में कौड़ी जैसे तीन झुमके भी हैं।

ब्रिटिश पुरातत्वविदों ने इसे ‘डांसिंग गर्ल’ नाम दिया और तबसे लोग उसे यही बुलाते आए हैं। लेकिन इस तस्वीर में ऐसा कुछ भी नहीं है जो सुझाता है कि यह लड़की नाच रही है या नृत्य में निपुण है। क्या उन पुरातत्वविदों ने यह माना कि यह लड़की हिंदू मंदिरों और राज दरबारों की ‘नृत्य कन्या’ जैसी थी? वह चूड़ी वाले की बेटी भी तो हो सकती थी। या वहां की राजकुमारी! या फिर कोई बच्ची जिसे परोसा हुआ खाना पसंद नहीं आया हो और इस वजह से उसे ग़ुस्सा आ गया हो। इस बारे में हम पक्के तौर पर कुछ भी नहीं कह सकते।

जब नई दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में मैंने पहली बार मूर्ति देखी, तब मैं उदास हो गया। यह इसलिए कि वह मूर्ति सिर्फ़ लगभग 11 सेंटीमीटर ऊंची थी। मुझे याद आया कि कैसे कुछ साल पहले किसी राजनीतिज्ञ की पत्नी को वह तस्वीर अश्लील लगी थी और इस वजह से उसने उसे डायरी में छापने का विरोध किया था। कुछ अरसा पहले पाकिस्तान ने भी उस पर अपना दावा किया था। और अब, कुछ लोगों ने उसे पार्वती भी कह दिया है।

पार्वती का अर्थ है ‘पर्वत की लड़की’। बौद्ध धर्म का उद्गम 2500 साल पहले हुआ। पार्वती की कहानी हमें पौराणिक काल के सबसे पुराने ग्रंथों - रामायण और महाभारत - से मिलती है। यह पौराणिक काल बौद्ध धर्म के उद्गम के बाद उभरा। वैदिक हिंदू धर्म को स्पष्ट रूप से गृहस्थों के धर्म का रूप देने से इस काल में त्याग की बौद्ध विचारधारा का विरोध किया गया। यह लगभग 2000 साल पहले हुआ। हड़प्पा की ‘डांसिंग गर्ल’ उससे कई साल ज़्यादा पुरानी है, शायद 5000 साल पुरानी। इसलिए वह पार्वती नहीं हो सकती।

यह जानकारी इतिहासकारों के अनुसार है, जो पुरातात्विक और शाब्दिक सबूतों को महत्व देते हैं। लेकिन धार्मिक या राजनीतिक नेता ऐसे सबूत को नहीं मानते। उनमें से कई मानते हैं कि हड़प्पा की सभ्यता वैदिक थी। ऐसा मानने का तात्पर्य यह हुआ कि पुराणों में लिखी जाने के पहले पार्वती की कहानी कई सदियों से मौखिक रूप से लोगों को बताई जा रही थी। लेकिन याद रहें, वेद जिनका अंतिम रूप 3000 साल पुराना है, पार्वती या शिव की बात नहीं करते।

लेकिन हड़प्पा की सभ्यता को हिंदू साबित करने का एक और तर्क भी दिया जाता है। कुछ लोग मानते हैं कि तंत्र, हड़प्पा के शहरों से हम तक पहुंचा है और वेदों के साथ-साथ हिंदू धर्म की दो मुख्यधाराओं में से यह एक मुख्यधारा है। और इसलिए हड़प्पा के शहरों में मिले मिट्टी के मुहरों पर तांत्रिक परंपराओं की तस्वीरें मिलती हैं। चूंकि एक मुहर पर तस्वीर आदिम शिव जैसी दिखती है, इसलिए ‘डांसिंग गर्ल’ की तस्वीर आदिम पार्वती की होगी। उसे पुराने काल में पार्वती नहीं बुलाया जाता होगा। लेकिन एक वैरागी से विवाह कर उसे गृहस्थ बनाने वाली राजकुमारी की कहानी यहीं से उभरी होगी।

‘डांसिंग गर्ल’ और पार्वती दोनों ही स्पष्टतया अनुमान हैं। कई लोग मानते हैं कि इस्लाम और यूरोपीय शासन द्वारा विध्वंस किए जाने के पहले एक ‘परिपूर्ण, पूर्ण रूप से संगठित’ हिंदू धर्म भारत में अस्तित्व में था। इस हिंदू धर्म में पार्वती हमेशा से अस्तित्व में रही हैं। लेकिन ऐसे लोग भी हैं जो पुरातात्विक और शाब्दिक सबूतों को महत्व देते हैं। वे जानते हैं कि हिंदू धर्म सदियों से सदैव दूसरी सभ्यताओं के प्रभाव के कारण बदलता रहा है। कुछ सभ्यताएं भारतीय रही हैं और कुछ विदेशी, जैसे एक नदी और उसकी विभिन्न उपनदियां। इस हिंदू धर्म में पार्वती ‘डांसिंग गर्ल’ के कई सदियों बाद आईं। आख़िरकार हम वो स्वीकार करते हैं जो हमारे अहम् को शांत करता है और शिक्षकों व पाठ्यपुस्तकों के ज़रिए उसे अपने बच्चों तक पहुंचाते हैं।

- देवदत्त पटनायक प्राचीन भारतीय धर्मशास्त्रों के आख्यानकर्ता और लेखक हैं।


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