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तमिलनाडु चुनाव:ये पहला चुनाव जिसमें सितारे नदारद, किसानों पर फोकस

 

चेन्नई में लगे कटआउट में पीएम भी दिखे।
  • 38 जिले हैं तमिलनाडु में, 82.9% राज्य की साक्षरता दर
  • 7.78 करोड़ आबादी दक्षिण के इस राज्य की, 8.59% देश की जीडीपी में योगदान

तमिलनाडु 55 सालों में यहां के सियासी दंगल के नियम-कायदे फिल्मी सितारे तय करते रहे हैं। 40 साल से एक बार एमजी रामचंद्रन की विरासत संभालने वाली जयललिता की अन्नाद्रमुक सत्ता में रही तो एक बार अन्नादुरई की द्रविड़ राजनीति की विरासत संभाल रहे करुणानिधि की द्रमुक पार्टी।

भाजपा-कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय दल, इन दोनों दलों के छोटे भाई की भूमिका में हैं। मिथक तोड़ लगातार दूसरी बार सत्ता में आई अन्नाद्रमुक के पास इस बार न करिश्माई चेहरा जयललिता है, न द्रमुक के पास करुणानिधि। रजनीकांत पीछे हट चुके हैं। वहीं, राजनीतिक पहचान बना रहे कमल हासन ने अभी तक अपना ‘रंग’ तय नहीं किया है।

सभी पार्टियां किसानों के साथ-साथ जातीय गोलबंदी बनाने मेें जुटी हैं। तीसरी बार सत्ता में आने के लिए अन्नाद्रमुक ने तरकश के सारे तीर चल दिए हैं। चुनाव की घोषणा से ठीक पहले तक मुख्यमंत्री ई. के. पलानीसामी ने सौगातों का सिलसिला जारी रखा।

सरकार ने विधानसभा में बिल पारित कर अति पिछड़े वर्ग के कोटा (20%) में वानियार समुदाय को 10.5% आरक्षण दे दिया। यह मुद्दा अन्नाद्रमुक और उसकी सहयोगी पीएमके के बीच तनाव का कारण बना हुआ था। पीएमके के प्रभाव क्षेत्र वाले उत्तरी तमिलनाडु में 30 सीटों पर यह कम्युनिटी निर्णायक है।

इससे पहले किसानों के गोल्ड लोन को माफ कर दिया, जो उन्होंने राज्य की सहकारी बैंकों से लिया था। इन योजनाओं के तहत 25 हजार से 1 लाख तक लोन दिया जाता है। यहीं नहीं, हाल ही में मुख्यमंत्री ने 12 हजार करोड़ का कृषि कर्ज माफ कर दिया था। इसका फायदा 16 लाख किसानों को मिलेगा।

हालांकि अन्नाद्रमुक से बेदखल जयललिता की करीबी और पार्टी की परंपरागत वोटर थेवार कम्युनिटी से आने वाली शशिकला की सक्रियता ने मुख्यमंत्री पलानीसामी की दिक्कतें बढ़ा दीं। शशिकला ने कोई पार्टी तो नहीं बनाई लेकिन उनके भतीजे दिनाकरण एएमएमके पार्टी से मैदान में है। बीते लोकसभा चुनाव में 5.25% और उपचुनाव में 7.2% वोट लेकर अन्नाद्रमुक के लिए चुनौती बने हुए हैं।

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