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नशे की गिरफ्त में युवा:8 % स्मैक, 8.78% युवा एमडी ड्रग की गिरफ्त में, निशाने पर 25 से 40 साल वाले

 

प्रतिकात्मक फोटो
  • के-टू नाम का नया नशा भी सप्लाय कर रहे तस्कर
  • सांप के जहर से तैयार होता है यह

शहर में एक ओर ड्रग पैडलर्स एक के बाद एक पकड़े जा रहे हैं, वहीं प्रदेश में शराब बंदी की बातें भी उठ रही हैं। पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती जहां पूरी तरह शराबबंदी के पक्ष में हैं तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हर नशे को खत्म करना चाहते हैं। प्रदेश और इंदौर में नशे की पड़ताल की तो यह तथ्य सामने आया कि शहर में 60 प्रतिशत लोग शराब की गिरफ्त में हैं।

शहर के नशा मुक्ति केंद्रों की मानें तो शहर में सबसे ज्यादा नशा करने वाले 25 से 40 साल का आयु वर्ग है। इसमें भी 60 प्रतिशत लोग शराब, 8 प्रतिशत स्मैक, 32 प्रतिशत गांजा और 8.78 प्रतिशत एमडी ड्रग या अन्य सूंघने वाले नशों का उपयोग करते हैं। एमडी ड्रग का शहर में 2016 से चलन बढ़ा है। इतना ही नहीं, एक नया नशा जो हाई क्लास सोसायटी के युवाओं में अब चलन में आया है, वह है- के-टू।

सांप के जहर से (बाय-प्रोडक्ट) तैयार किया जाने वाला यह नशा, ठीक उसी तरह है, जैसे पहले के दौर में विष कन्याओं को तैयार किया जाता था। केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने भी इसे लेकर देशभर में सर्वे कराया था। 2020 में जारी इस रिपोर्ट के मुताबिक शराब, स्मैक, ड्रग से ज्यादा थिनर,कोकीन और अन्य इनहेलेंट (सूंघकर नशा करना) का उपयोग करने वाले ज्यादा पाए गए थे। मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, दिल्ली और हरियाणा में इस नशे के आदी ज्यादा पाए गए।

प्रदेश में 31 लाख से ज्यादा लोग शराब की लत से ग्रसित

प्रदेश में 17.7 % लोग शराब, बीयर या अन्य अल्कोहल उपयोग करते हैं। प्रदेश में भांग का उपयोग 0.5 % लोग करते हैं। 1.7 लाख लोग भांग के कारण अलग-अलग तरह की बीमारी या समस्या से ग्रस्त हैं। डोडा चूरा, अफीम, स्मैक, ब्राउन शुगर, हेरोइन के प्रदेश में 3.9 लाख लोग ग्रसित हैं। दवाओं को नशे के रूप में लेने वाले 1.2 लाख लोग इससे परेशानी में हैं। सूंघने वाला नशा करने वाले एमपी में 50 हजार बच्चे (10 से 17 साल की उम्र) हैं। प्रदेश में ड्रग का उपयोग करने वालों की संख्या दो साल पहले 9792 थी।

इंदौर में इतने तरह के नशे का फैलाव

इतने तरह का नशा :

भांग, अल्कोहल, गांजा, स्मैक, चरस, हेरोइन, अफीम, ब्राउन शुगर, एमडी (मल्टी ड्रग) या मेथेड्रान (एमडी मतलब दो, तीन चार तरह का कॉम्बिनेशन)

नई श्रेणी :

के-2 (स्नैक वेनम- सांप का जहर), इसे डायल्यूट करके तैयार किया जाता है। लोअर तबके में- व्हाइटनर, सॉल्यूशन, पेट्रोल।

ड्रग्स का नशा :

सिरप- कोडीन सल्फेट, एल्प्राजोलम, नाइट्रोवेट व अन्य

पैडलर्स बनाने से पहले नशे की लत लगाते हैं

साइकोलॉजिस्ट डॉ. सचिन द्विवेदी के मुताबिक इस नशे के दो-तीन डोज के बाद युवक खुद ही डिमांड करते हैं। पैसा न होने पर वे आसानी से नशा सप्लाय करने के लिए तैयार हो जाते हैं। उन्हें इस काम में 3 से 5 हजार रुपए तक मिल जाते हैं। इसमें कोई आईडी नहीं देना होती। पकड़े भी जाएं तो ड्रग डीलर का नाम नहीं आता।

एक्सपर्ट : ऐसे बढ़ाते ड्रग के लिए टारगेट एरिया

शहर में छह लाख बच्चों में से पांच लाख आसपास के जिलों, गांवों या अन्य प्रदेशों से आते हैं। इसलिए ये आसानी से ड्रग एडिक्ट हो जाते हैं। खजराना और भंवरकुआं क्षेत्र इनके लिए सबसे मुफीद हैं, जहां हाई क्लास और लो क्लास दोनों तबके आसानी से इनका शिकार हो जाते हैं।

- डीएस परिहार, रिहैब सेंटर संचालक

(शहर के कई थानों में टीआई, सीएसपी और लोकायुक्त डीएसपी रह चुके)


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