Header Ads Widget

Responsive Advertisement

वाल्मीकि ने राम कथा के माध्यम से आसुरी वृत्तियों और अनाचार के दमन व उन पर विजय का शाश्वत संदेश दिया है।


इंदौर,राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वेब संगोष्ठी आयोजित की गई। इसमें देश-दुनिया के विभिन्न् क्षेत्रों के वक्ताओं ने भाग लिया। 'आदि कवि वाल्मीकि : इतिहास और मूल्यों के परिप्रेक्ष्य में" विषय पर हुई इस संगोष्ठी में नार्वे में रह रहे साहित्यकार एवं अनुवादक सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक ने कहा कि वाल्मीकि सही अर्थों में विश्व कवि हैं। उनकी रामायण के माध्यम से विश्व में संस्कृत को गौरव मिला। उनकी रामायण का अनुवाद दुनिया की विभिन्न् भाषाओं में होना चाहिए।


संगोष्ठी के मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार थे। उन्होंने कहा कि वाल्मीकि की रामायण में जातीय स्मृतियों, इतिहास, संस्कृति और मानवीय मूल्यों का जीवंत रूपांकन हुआ है। वाल्मीकि ने रामकथा के माध्यम से सत्य और धर्म की प्रतिष्ठा पर बल दिया है। उनकी दृष्टि में सत्य ही संसार में ईश्वर है और धर्म भी उस सत्य के ही आश्रित है। उन्होंने एक ऐसे उदात्त चरित्र को महाकाव्य के केंद्र में रखा है, जो लोगों को परस्पर प्रेम, बन्धुत्व और समरसता में बांध सके। उनकी मूल्य दृष्टि बहुत गहरी है। वे परिवार, मित्र, समाज और राज धर्म सभी का प्रादर्श रचते हैं। उनका संदेश है कि समस्त देश और कालों के लोग सुखी हों। विशिष्ट अतिथि डॉ. हरिसिंह पाल ने कहा कि वाल्मीकि ने राम कथा के माध्यम से आसुरी वृत्तियों और अनाचार के दमन व उन पर विजय का शाश्वत संदेश दिया है। डॉ. राजेंद्र साहिल ने कहा कि वाल्मीकि का पंजाब के साथ गहरा संबंध रहा है। अमृतसर के समीप स्थित रामतीर्थ में वाल्मीकि का आश्रम था। वहीं रहकर लव और कुश का पालन पोषण हुआ और वहीं उन्होंने विद्यार्जन किया था। अध्यक्षता करते हुए साहित्यकार हरेराम वाजपेयी ने कहा कि वाल्मीकि का व्यक्तित्व सार्वभौमिक है। गोस्वामी तुलसीदास ने वाल्मीकि के जीवन के अनेक प्रसंगों का विस्तार से वर्णन किया है। उन्होंने श्री राम और वाल्मीकि की भेंट का मार्मिक चित्रण अपने मानस में किया है। संगोष्ठी में डॉ.प्रभु चौधरी, डॉ.शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, डॉ.भरत शेणकर, डॉ.आशीष नायक, डॉ.प्रवीण बाला, डॉ.मुक्ता कौशिक, डॉ.राधा दुबे, डॉ.प्रियंका द्विवेदी आदि उपस्थित थे। संचालन डॉ.रागिनी शर्मा ने किया। आभार डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख ने माना।


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ