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विवाह पंचमी को हुआ था श्रीराम-सीता का विवाह, जानिए इसकी कथा


 मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को सनातन संस्कृति के हर घर-परिवार में आराध्य देव मनाया जाता है। हिंदू धर्म में श्रीराम से जुडे़ कई व्रत त्यौहारों को मनाने की परंपरा है, जिसमें श्रीराम नवमी, दशहरा और दिवाली प्रमुख है। ऐसा ही एक और पर्व आराध्य देव श्रीराम से जुड़ा हुआ है जिसको मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। इस तिथि को विवाह पंचमी कहा जाता है। शास्त्रोक्त मान्यता है कि इस दिन भगवान श्रीराम का देवी सीता के साथ विवाह संपन्न हुआ था।


विवाह पंचमी की कथा


शास्त्रोक्त मान्यता है कि देवी सीता का जन्म धरती से हुआ था। कथा के अनुसार महाराजा जनक एक बार फसलों को बोने के लिए खेत में हल चला रहे थे। हल जोतते हुए हुए उनको खेत में से एक बालिका रोते हुए मिली। महाराज जनक ने धरती की गोद से उस बच्ची को अपनी गोद में लिया और उसको अपने महल में ले आए। महाराज ने उस बच्ची को अपनी पुत्री के सामन स्नेह दिया और उसका नाम रखा सीता


मिथिलावासी उसको जनक पुत्री सीता और जानकी कहकर पुकारते थे। मान्‍यता है कि एक बार देवी सीता ने मंदिर में रखे हुए भारी-भरकम शिव धनुष, जिसका नाम पिनाक था, को उठा लिया था। इस दिव्य धनुष को भगवान परशुराम के अलावा कोई नहीं उठा पाया था। महाराजा जनक ने उसी दिन इस बात का निर्णय ले लिया कि जो कोई भी इस धनुष को उठाकर उसके ऊपर प्रत्यंचा चढ़ा देगा उसी से मैं अपनी पुत्री सीता का विवाह करुंगा


सीता स्वंयवर और श्रीराम का वर चुनना


विवाह योग्य होने पर महाराजा जनक ने सीता स्वयंवर रचा। स्वयंवर के लिए दुनियाभर के राजा, राजकुमारों और महारथियों को आमंत्रित किया गया। महर्षि वशिष्‍ठ ने मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम और उनके छोटे भाई लक्ष्‍मण को लेकर स्वयंवर में हिस्सा लिया और दर्शक दीर्घा में बैठकर स्वयंवर देखने लगे। स्वयंवर में हिस्सा लेने के लिए कई महारथी और राजा-महाराजाओं पहुंचे थे, लेकिन कोई भी उस धनुष को हिला नहीं सका। यह देखकर महाराजा जनक बहुत निराश हुए और कहने लगे की क्‍या मेरी सुपुत्री के लिए कोई भी योग्‍य और वीर वर नहीं है? उसी समय महर्षि वशिष्ठ ने श्रीराम से स्वयंवर में हिस्सा लेकर उनसे धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने के लिए कहा


श्रीराम ने शिव धनुष को प्रणाम किया और उसको उठा लिया, लेकिन प्रत्यंचा चढ़ाने के दौरान वह टूट गया। इस तरह श्रीराम ने महाराजा की प्रतिज्ञा को पूरा किया। धनुष के टूटते ही देवी सीता ने भगवान श्रीराम का वरण कर लिया और भरे राजदरबार में श्रीराम के गलें में वरमाला डाल दी। श्रीराम और सीता का विवाह मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को हुआ था इसलिए इस दिन को विवाह पंचमी के रूप में मनाया जाता है


 


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