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वृंदा ने दिया था श्रीहरी को श्राप, विष्णु ने दिया था तुलसी को वरदान


 शास्त्रोक्त मान्यता है भगवान विष्णु और उनके अवतार श्रीकृष्ण को तुलसी समर्पित करने से वे अति प्रसन्न होते हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण कर देते हैं। मान्यता है कि रोजाना तुलसी को एक लोटा जल चढ़ाने से सभी कष्टों का नाश होता है और जीवन में समृद्धि आती है।


तुलसी विवाह की व्रत कथा


पौराणिक कथा के अनुसार एक समय राक्षस कुल में एक अत्यंत सुदंर कन्या ने जन्म लिया था। इस कन्या का नामकरण कर इसका नाम वृंदा रखा गया। बालिका वृंदा बचपन से भगवान विष्णु की अनन्य भक्त थी और नियमित रूप से वह श्रीहरी की पूजा करती थी। विवाह योग्य होने पर वृंदा का विवाह जलंधर नाम के असुर से हो गया। अर्द्धांगिनी वृंदा के परम विष्णु भक्त होने के कारण असुर जलंधर को और भी ज्यादा शक्तियां प्राप्त हो गई। असीमित शक्तियां मिलने पर जलंधर इतना शक्तिशाली हो गया कि वह मनुष्य और देवताओं के साथ राक्षसों पर भी अत्याचार करने लगा। उसके बल में वृद्धि होने के वजह से उसको किसी भी तरह से हरा पाना असंभव हो गया था। ऐसे में सभी देवता जलंधर के अत्याचारों से मुक्ति पाने के लिए भगवान विष्णु की शरण मे गए और मदद की गुहार लगाई।


देवताओं की गुहार सुनकर और उनको अत्याचारों से मुक्त करने के लिए श्रीहरी ने असुर जलंधर का रूप धारण कर लिया और वृंदा का पतिव्रता धर्म नष्ट कर दिया। वृंदा का पतिव्रता धर्म नष्ट होते ही असुर जलंधर की शक्तियां कम हो गई और वह युद्ध में मारा गया और उसका कटा हुआ सिर वृंदा के आंगन में गिरा। वृंदा को जैसे ही भगवान विष्णु के इस छल का पता चला उन्होंने श्रीहरी से कहा कि तुमने छल से मेरा सतीत्व भंग किया है इसलिए मैं तुम्हे पत्थर बन जाने का श्राप देती हूं। भगवान विष्णु का यह स्वरूप शालिग्राम कहलाया। इसके बाद सभी देवी-देवता वृंदा के पास गए और उनसे श्राप को वापस लेने की विनती की। देवी-देवताओं के आग्रह पर वृंदा ने अपना श्राप तो वापस ले लिया, लेकिन स्वयं को अग्नि में जलाकर भस्म कर लिया। भगवान विष्णु ने वृंदा की राख से एक पौधा लगाया और उस पौधे को नाम दिया तुलसी। इसके साथ ही श्रीहरी ने यह भी कहा कि जबतक सृष्टि रहेगी मेरे साथ तुलसी की भी पूजा होगी।


यह भी मान्यता है कि भगवान विष्णु ने वृंदा के श्राप देने पर उससे कहा कि हे वृंदा मैं तुम्हारे सतीत्व का बहुत आदर करता हूं और तुम तुलसी बनकर हमेशा मेरे साथ रहोगी। देवउठनी एकादशी के दिन जो भक्त मेरे साथ तुम्हारा विवाह करेगा उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होगी। साथ ही श्रीहरी ने यह भी कहा कि शालिग्राम और मेरी पूजा बगैर तुलसी के अधूरी मानी जाएगी।


तुलसी विवाह से मिलता है ऐसा फल


मान्यता है कि कार्तिक मास की देवउठनी एकादशी के दिन जो भक्त तुलसी और भगवान विष्णु के स्वरूप शालिग्राम का परिणय संस्कार संपन्न करवाता है और कन्यादान करता है उसको कन्यादान के बराबर पुण्यफल की प्राप्ति होती है। दांपत्य जीवन का सुख पाने के लिए तुलसी विवाह का आयोजन करता है उसकी दांपत्य जीवन की बाधाओं का अंत होता है और संतान सुख की प्राप्ति होती है।


 


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