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प्रथम पूजनीय गणपति को विराजित करने के लिए पूरा शहर तैयार है। आज भी इंदौर में सौ साल पुरानी परंपरा जीवित है


प्रथम पूजनीय गणपति को विराजित करने के लिए पूरा शहर तैयार है। आज भी इंदौर में सौ साल पुरानी परंपरा जीवित है। होलकरकालीन साफे वाले राज गणेश को राजवाड़ा में स्थापित करने से शुरू हुई गणेशोत्सव की परंपरा मराठी भाषी मोहल्लों में अपना रंग जमाते हुए गली-गली तक चली गई। फर्क इतना है कि पहले महज 11 या 21 पैसे की दक्षिणा देकर गणेश दरबार सज जाते थे और आज वही गणेश मूर्ति 21 हजार से 51 हजार रुपए तक आती है। लोकमान्य तिलक के महाराष्ट्र में सार्वजनिक गणेशोत्सव की शुरुआत करने के कुछ समय बाद ही मध्य प्रदेश में इंदौर में सबसे पहले गणेशोत्सव शुरू हुआ।


1900 के दशक में मल्हारराव होलकर के राज में राजवाड़ा के दरबार में सार्वजनिक गणेश बैठाने की परंपरा शुरू हुई। यहां पांच दिवसीय उत्सव का प्रारंभ हुआ था, जिसमें महिला समूहों के भजन, गीत और कवि सम्मेलन होते थे। इसके बाद माना जाता है कि जेल रोड स्थित नॉवेल्टी मार्केट के श्रीराम मंदिर में कुछ युवकों ने गणेशजी स्थापित किए। यहां शास्त्रीय संगीत के आयोजन होने लगे। यहां होलकर राजा भी कार्यक्रम में शरीक होने आते थे। इसके बाद सिख मोहल्ला, रामबाग के वैदिक आश्रम, लोकमान्य नगर, राजेंद्र नगर, बंगाली चौराहा आदि क्षेत्रों में सार्वजनिक गणेशोत्सव शुरू हुए


प्रतिभा को मंच मिलने लगा


सार्वजनिक गणेशोत्सवों के दौरान 10 दिनों तक धार्मिक, सामाजिक, मनोरंजक कार्यक्रम होने लगे। इसमें बच्चों और युवाओं को अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिलता है। नाटक मंचन की परंपरा भी इसी दौरान शुरू हुई। समसामयिक विषयों पर हिंदी मराठी नाटकों की प्रस्तुति होती थी। काव्य सम्मेलनों में खूब रंग जमता था। नाट्यकर्मी सुनील मतकर बताते हैं कि वे दस दिनों तक अलग-अलग संगठनों के आयोजन में कार्यक्रम प्रस्तुत करने जाते थे। इंदौर में करीब 100 साल से गणेशोत्सव की परंपरा है। अजय मलमकर कहते हैं कि 50-60 वर्ष पहले शहर में चुनिंदा स्थानों पर उत्सव होते थे, जो आज हर गली में होने लगे हैं


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