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महाराष्ट्र से सटे पांढुरना में प्रतिवर्ष गोटमार मेले का आयोजन होता है, जिसमें लोग एक दूसरे पर पत्थर बरसाते हैं

पांढुरना। गोटमार मेले की शुरुआत 17वीं ई. के लगभग मानी जाती है। महाराष्ट्र की सीमा से लगे पांढुरना हर वर्ष भादो मास के कृष्ण पक्ष में अमावस्या पोला त्योहार के दूसरे दिन पांढुरना और सावरगांव के बीच बहने वाली जाम मे वृक्ष की स्थापना कर पूजा अर्चना कर ने नदी के दोनों ओर बड़ी संख्या में लोग एकत्र होते हैं और सूर्योदय से सूर्यास्त तक पत्थर मारकर एक-दूसरे का लहू बहाते हैं। इस घटना में कई लोग घायल हो जाते हैं। इस पथराव में लगभत 13 लोगों की मौत भी हुई है इतनाही नही कई लोगो ने अपने शरीर के महत्वपूर्ण अग भी खोये है जो अपने जीवन मे मेले को गलत मानते है अफसोस जताते है


हुई ध्वज स्थापना


पलाश के वृक्ष के झंडे की स्थापना हो चुकी है लोगो की पूजा अर्चना कर मनतो का दौर चल रहा है लगभग एक घण्टे बाद गोटमार शुरू हो सकती है। याने दो पक्ष के लोग एक दूसरे पर पत्थर मारने का सिलसिला शुरू होकर दिन भर चलेगा और लगभग शाम 6 बजे प्लास के वृक्ष के झंडे को पांढुर्ना पक्ष के लोग काटकर मंदिर माँ चण्डिका के चरणों मे अर्पण कर गोटमार मेले का समपन्न करेगे।इस बीच सैकड़ो लोगो घायल और गभीर घायल होंगेनगर के बीच में नदी के उस पार सावरगांव व पांढुर्ना इस पार को पांढुरना कहा जाता है। कृष्ण पक्ष के दिन यहां बैलों का त्यौहार पोला धूमधाम से मनाया जाता है। इसी के दूसरे दिन साबरगांव के सुरेश कावले परिवार की पुस्तैनी परम्परा स्वरूप जंगल से पलाश के वृक्ष को काटकर घर पर लाने के बाद उस प्लास के वृक्ष की साज सजा कर वृक्ष पर लाल कपड़ा, तोरण, नारियल, हार और झाड़ियां चढ़ाकर उसका पूजन किया जाता है। दूसरे दिन सुबह होते ही लोग उस वृक्ष को जाम नदी के बीच गाड़ते है फिर पांढुर्ना पक्ष के लोग अपनो मनतो के अनुरूप झंडे की पूजा करते है और फिर प्रात: 8 बजे से शुरु हो जाता है एक दूसरे को पत्थर मारने का सिलसिला यह शाम करीब 6से 7बजे के बीच प्रशासन हस्क्षपे के बाद मेले का समपन्न किया जाता है


दिन भर चलती है पत्थरो की वर्षा


ढोल ढमाकों के बीच लगाओ-लगाओ के नारों के साथ कभी पांढुरना के खिलाड़ी आगे बढ़ते हैं तो कभी सावरगांव के खिलाड़ी। दोनों एक-दूसरे पर पत्थर मारकर पीछे ढ़केलने का प्रयास करते है और यह क्रम लगातार चलता रहता है। दर्शकों का मजा दोपहर बाद 3 से 4 के बीच बढ़ जाता है। खिलाड़ी चमचमाती तेज धार वाली कुल्हाड़ी लेकर झंडे को तोड़ने के लिए उसके पास पहुंचने की कोशिश करते हैं। ये लोग जैसे ही झडे के पास पहुंचते हैं साबरगांव के खिलाड़ी उन पर पत्थरों की भारी मात्रा में वर्षा करते है और पाढुर्णा वालों को पीछे हटा देते हैं


शाम को पांढुरना पक्ष के खिलाड़ी पूरी ताकत के साथ चंडी माता का जयघोष एवं भगाओ-भगाओ के साथ सावरगांव के पक्ष के व्यक्तियों को पीछे ढकेल देते है और झंडा तोड़ने वाले खिलाड़ी झंडे को कुल्हाडी से काट लेते हैं। जैसे ही झंडा टूट जाता है, दोनों पक्ष पत्थर मारना बंद करके मेल-मिलाप करते हैं और गाजे बाजे के साथ चंडी माता के मंदिर में झंडे को ले जाते है।


झंडा न तोड़ पाने की स्थिति में शाम साढ़े छह बजे प्रशासन द्वारा आपस में समझौता कराकर गोटमार बंद कराया जाता है। पत्थरबाजी की इस परंपरा के दौरान जो लोग घायल होते है, उनका शिविरों में उपचार किया जाता है और गंभीर मरीजों को नागपुर भेजा जाता है


किवदंती


 


इस मेले के आयोजन के संबंध में कई प्रकार की किवंदतियां हैं। इन किवंदतियों में सबसे प्रचलित और आम किवंदती यह है कि सावरगांव की एक आदिवासी कन्या का पांढुरना के किसी लड़के से प्रेम हो गया था। दोनों ने चोरी छिपे प्रेम विवाह कर लिया। पांढुरना का लड़का साथियों के साथ सावरगांव जाकर लड़की को भगाकर अपने साथ ले जा रहा था। उस समय जाम नदी पर पुल नहीं था।


नदी में गर्दन भर पानी रहता था, जिसे तैरकर या किसी की पीठ पर बैठकर पार किया जा सकता था और जब लड़का लड़की को लेकर नदी से जा रहा था तब सावरगांव के लोगों को पता चला और उन्होंने लड़के व उसके साथियों पर पत्थरों से हमला शुरू किया। जानकारी मिलने पर पहुंचे पांढुरना पक्ष के लोगों ने भी जवाब में पथराव शुरू कर दी। पांढुरना पक्ष एवं सावरगाँव पक्ष के बीच इस पत्थरों की बौछारों से इन दोनों प्रेमियों की मृत्यु जाम नदी के बीच ही हो गई।


 


दोनों प्रेमियों की मृत्यु के पश्चात दोनों पक्षों के लोगों को अपनी शर्मिंदगी का एहसास हुआ और दोनों प्रेमियों के शवों को उठाकर किले पर माँ चंडिका के दरबार में ले जाकर रखा और पूजा-अर्चना करने के बाद दोनों का अंतिम संस्कार कर दिया गया। संभवतः इसी घटना की याद में माँ चंडिका की पूजा-अर्चना कर गोटमार मेले का आयोजन किया जाता है।


प्रशासनिक तैयारियों के तहत धारा144लागू


वर्ष 2009 में मानवाधिकार आयोग के दखल के बाद जिला प्रशासन ने पांढुरना- सावरगांव के बीच होने वाले गोटमार मेले में पत्थर फेंकने पर रोक लगाने अनेको प्रयास कीये परन्तु आज तक मेले का स्वरूप नही बदल सके क्षेत्र में इस बार जिला प्रशासन ने गुरुवार की दोपहर से धारा 144 लागू कर दी।आस्था से जुड़ा होने के कारण इसे रोक पाने में असमर्थ प्रशासन व पुलिस एक दूसरे का खून बहाते लोगों को असहाय देखते रहने के अलावा और कुछ नहीं कर पाते।


निर्धारित समय अवधि में पत्थरबाजी समाप्त कराने के लिए प्रशासन और पुलिस के अधिकारियों को बल प्रयोग भी करना पड़ता है। कई बार प्रशासन ने पत्थरों की जगह तीस हजार रबर की छोटे साइज की गेंद उपलब्ध कराई थी,परंतु दोनों गांवों के लोगों ने गेंद का उपयोग नहीं करते हुए पत्थरों का उपयोग ही किया था।


पिछले वर्ष खिलाड़ीयो को हेलमेट भी दिए थे प्रशासन अपने स्तर पर प्रति वर्ष नये अनोखे प्रयास करता है परन्तु आस्था के सामने प्रशासन ने दोनों गांवों के लोगों को नदी के दोनों किनारों पर पत्थर उपलब्ध कराना शुरू कर दिया है।इस बार मेला स्थल लगभग सौ से अधिक ट्रैक्टर ट्राली से पत्थर दोनो पक्ष पांढुर्ना-सावरगाव जाम नदी की पुलिया पर डालते है।


बुराइयां शराब,जुआ,गोफन से फेकते पत्थर


गोटमार मेले में समय के साथ कई बुराइयां भी शामिल हो गई हैं। गोटमार के दिन शहर मे खुले आम शराब का सेवन करते हैं तथा प्रतिबंधों के बावजूद गोफन के माध्यम से तीव्र गति और अधिक दूरी तक पत्थर फेंकते हैं जिससे मेला स्थल के लोग घायल होने का खतरा बढ़ जाता है।


इसके अलावा जुआ की फड शहर मे जगह-जगह सजती है।जिला प्रशासन द्वारा सुरक्षा व्यवस्था के उपाय किए जाते हैं। शराब विक्रय पर पाबंदी लगाई जाती है तथा गोफन से पत्थर फेंकने वालों की वीडियोग्राफी भी कराई जाती है। प्रतिबंध के बावजूद भी पत्थर फेंकने वाले खिलाड़ी एवं अन्य कई लोग शराब के नशे में घूमते हुड़क करते दिखाई पड़ते हैं


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