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अब शहीद समरसता मिशन झाबुआ के शहीद के परिजनों को पक्का मकान बनाकर देगा


बेटमा के पीरपिपल्या गांव में शहीद के परिवार को नया घर देने वाला संगठन शहीद समरसता मिशन अब एक नए मिशन पर है। मिशन के सदस्य अब मालवा-निमाड़ इलाके के कुछ अन्य शहीदों के लिए भी कुछ अधूरे वादे पूरे करने जा रहे हैं। इसमें किसी शहीद की बूढ़ी मां को सहारा देना है तो किसी शहीद की प्रतिमा लगाकर उन्हें उनके अधिकार का सम्मान दिलाना है और अब वे इसके लिए अलग-अलग शहर में जाकर काम करने जा रहे हैं।


बेटमा के शहीद मोहन सिंह सुनेर के परिवार को तो ससम्मान पक्का घर मिल गया, लेकि न अभी और भी शहीदों की शहादत का मोल चुकाना बाकी है। यह कहना है शहीद समरसता मिशन चलाने वाले मोहन नारायण का, जो मालवा -निमाड़ क्षेत्र में शहीदों की जानकारी निकालकर अब उनके परिवारों की खैर-खबर ले रहे हैंमोहन नारायण के मुताबिक कई शहीदों के परिवार जहां भयंकर आर्थिक तंगी का शिकार हैं, तो बहुत ऐसे भी हैं जिन्हें आर्थिक सहायता तो मिल गई, लेकि न वो सम्मान हासिल नहीं हुआ, जो एक शहीद के परिवार को होना चाहिए था। ऐसे में अब इस तरह के परिवारों की सहायता की जानी है। यह संगठन अब तक करीब 22 शहीदों के परिवारों के लिए आर्थिक सहायता और सम्मान कार्यक्रम आयोजित कर चुका है, लेकिन किसी शहीद के परिवार के लिए पक्का घर देने का यह पहला मामला है


बेटमा के मोहन सिंह सुनेर 27 साल पहले शहीद हुए थे तब से उनका परिवार भयंकर आर्थिक तंगी में जी रहा था। घर कच्चा था जहां की छत टपकती थी, लेकि न अब शहीद समरसता मिशन ने उन्हें पक्का घर दिया है।


झाबुआ के शहीदमोहन नारायण के मुताबिक अब तारखेड़ी गांव में शहीद भगवान सिंह भिड़किया के मां-बाप को भी आर्थिक सहायता की आवश्यकता है। त्रिपुरा स्टेट राइफल में पदस्थ सिपाही भगवान सिंह भिड़किया 2003 में शहीद हो गए थे। इसके बाद उनके परिवार को केवल 1723 रुपए ही पेंशन मिलती है। उनके पिता मंदिर में नारियल बेचते हैं। परिवार के पास कच्चा मकान है। अब शहीद समरसता मिशन उन्हें एक पक्का मकान देने के लिए प्रयास शुरू कर रहा है। इसके लिए ग्यारह लाख रुपए जोड़े जाएंगे। इनमें से दस लाख रुपए का घर बनाकर दिया जाएगा और एक लाख रु. की आर्थिक सहायता दी जाएगी


स्मारक का उद्घाटन करने कोई नहीं पहुंचा


वहीं बड़नगर के दुनालजा गांव में रहने वाले शहीद धर्मेंद्र बारिया साल 2012 में शहीद हुए थे। शहीद समरसता मिशन के मोहन नारायण के मुताबिक भारतीय सेना के इस जवान के लिए सहायता तो मिली, लेकिन सम्मान बाकी रहा। मां-बाप चाहते थे कि उनके वीर बेटे की प्रतिमा लगाई जाए। इसके लिए परिवार ने जितनी भी आर्थिक सहायता मिली थी, उसे इसी काम में लगा दिया और एक स्मारक बनवाया, लेकिन उसका उद्घाटन करने कोई नेता या अधिकारी नहीं पहुंचा। अब समरसता मिशन द्वारा प्रतिमा का अनावरण एक भव्य कार्यक्रम के साथ करने और परिवार को आर्थिक सहायता देने की योजना है, जिसके लिए प्रयास शुरू कर दिए गए हैं


बूढ़ी मां की हसरत


ऐसा ही मामला इंदौर की सांवेर तहसील के सिमरोल गांव का है, जहां भारतीय सेना में सिपाही रहे शहीद गोपाल सिंह जादौन का परिवार रहता है। वे 90 के दशक में शहीद हुए थे। उन्हें कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया था, जिसके बाद परिवार को पूरी आर्थिक सहायता तो मिली है, लेकिन उनकी बूढ़ी मां की हसरत है कि उनके बेटे की प्रतिमा गांव के चौक पर लगाई जाए। मिशन के मोहन नारायण बताते हैं कि बूढ़ी मां चाहती हैं कि वे अपने जीते-जी एक बार बेटे का ऐसा सम्मान देख लें और अब समरसता मिशन इसके लिए सरकार और समाज से अपील कर रहा है


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