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कमलनाथ ने भाजपा के दो विधायक तोड़ लिए


भोपाल। चार घंटे पहले मुख्यमंत्री कमलनाथ जब विधानसभा में विपक्ष को अविश्वास प्रस्ताव लाने की चुनौती दे रहे थे, तब किसी ने नहीं सोचा था कि भाजपा के दो विधायक टूटकर कांग्रेस केपक्ष में वोट डाल देंगे। बार-बार अल्पमत की सरकार के कटाक्ष से आहत कमलनाथ ने बड़ी चतुराई से भाजपा के न चाहते हुए सहयोगी दल बसपा के माध्यम से एक संशोधन विधेयक पर मतदान करवाकर एक बार फिर बहुमत साबित कर दिया।


भाजपा के जिन दो विधायकों ने कांग्रेस के पक्ष में जाकर विधेयक के लिए मतदान किया, वे हैं नारायण त्रिपाठी और शरद कौल। इस अप्रत्याशित घटनाक्रम से भाजपा भौचक्की रह गई। जिस समय यह घटनाक्रम हुआ उस समय सदन में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव, वरिष्ठ विधायक नरोत्तम मिश्रा मौजूद थे


विधि संशोधन विधेयक के बहाने कमलनाथ सरकार ने बुधवार को सदन में अपना बहुमत सिद्ध कर दिया। पिछले छह माह में यह चौथा मौका है, जब सरकार ने सदन में बहुमत साबित किया है। हैरत की बात तो यह है कि सतना के मैहर से भाजपा विधायक नारायण त्रिपाठी और शहडोल के ब्यौहारी से भाजपा विधायक शरद कोल सरकार के साथ आ गए और विपक्ष को पता तक नहीं चला।


जबकि उस समय सदन में पार्टी के वरिष्ठ नेता भी मौजूद थे। फ्लोर टेस्ट के तुरंत बाद सदन की कार्यवाही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी गई। नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव और विधायक शिवराज सिंह चौहान ने इस घटना को लोकतंत्र की हत्या बताया है। भार्गव ने कहा कि हम प्रस्ताव के समर्थन में थे। विरोध की कोई बात ही नहीं थी। हम राज्यपाल के पास जाएंगे और बताएंगे कि मतदान के दौरान आठ से दस विधायकों ने फर्जी हस्ताक्षर किए हैं


विधानसभा में शाम 4 बजकर 47 मिनट पर अचानक माहौल बदला। दंड विधि में प्रस्तावित संशोधन पर चर्चा के दौरान बसपा विधायक संजीव सिंह संजू ने मत विभाजन की मांग रख दी। अध्यक्ष एनपी प्रजापति ने मांग पर पुनर्विचार करने को कहा, लेकिन विधायक सिंह अड़े रहे। इस बीच नेता प्रतिपक्ष और विपक्ष के सभी विधायकों ने खड़े होकर कहा कि विपक्ष इस विधेयक के पक्ष में है और सर्वसम्मति से इसे पारित किया जा रहा है, तब मत विभाजन की क्या आवश्यकता।


इस पर लोक निर्माण मंत्री सज्जन सिंह वर्मा और पीसी शर्मा ने कहा कि एक भी विधायक यदि मत विभाजन की मांग कर रहा है तो इसे करना पड़ेगा। इस बीच अध्यक्ष ने एक बार फिर विधेयक पारित करने का प्रस्ताव पढ़ा और विधायक संजीव सिंह ने फिर से मत विभाजन की मांग रख दी। आखिर अध्यक्ष ने विधेयक पर मतदान का एलान कर दिया। दोनों पक्षों को मतदान करने को कहा गया


शाम 4:48 से 5:21 बजे तक मतदान और मतगणना की प्रक्रिया चली और 5:22 बजे अध्यक्ष ने परिणाम घोषित करते हुए कहा कि विधेयक के पक्ष में 122 मत पड़े हैं। जबकि विपक्ष में एक भी वोट नहीं डला। परिणाम आते ही संसदीय कार्यमंत्री डॉ. गोविंद सिंह ने सदन में कहा कि भाजपा के दो विधायकों ने हमारा बड़ा साथ दिया। सदन की इस कार्यवाही पर विरोध दर्ज कराते हुए नेता प्रतिपक्ष भार्गव ने कहा कि यह भारत के इतिहास की पहली घटना है। उन्होंने आरोप लगाए के मतदान के दौरान कुछ विधायकों ने दो-दो जगह हस्ताक्षर किए हैं।


इस तरह 12 सदस्यों के फर्जी हस्ताक्षर हुए हैं। इस पर मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा कि यदि ऐसे आरोप हैं तो अभी सत्यापन कराएं। विधायक नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि कर्नाटक का डर सता रहा है। विपक्ष ने हंगामा शुरू ही किया तो संसदीय कार्यमंत्री डॉ. गोविंद सिंह ने सत्र समापन का प्रस्ताव रख दिया और आसंदी से सत्र अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करने की घोषणा हो गई


हतप्रभ रह गया विपक्ष


सदन में अचानक फ्लोर टेस्ट की स्थिति बनने से विपक्ष हतप्रभ रह गया। विस अध्यक्ष ने वोटिंग की घोषणा करते हुए विधानसभा की लॉबी में एक ओर विधेयक के पक्ष और दूसरी ओर विधेयक के विपक्ष में मतदान करने वाले विधायकों को जाने को कहा। सत्तापक्ष और कांग्रेस के समर्थक दल बसपा के विधायक लॉबी में चले गए और मतदान किया। जबकि भाजपा के विधायक सदन में ही बैठे रहे। पार्टी के नेताओं को तो यह भी पता नहीं चला कि कांग्रेस का समर्थन करने वाले विधायक सदन से बाहर कब चले गए


विधानसभा में यह है स्थिति


वर्तमान में 229 सदस्यीय विधानसभा (एक रिक्त) में बहुमत के लिए आवश्यक 115 से सात ज्यादा यानी 122 वोट मिले। सदन में स्पीकर समेत कांग्रेस विधायकों की संख्या 114 है। चार निर्दलीय, दो बसपा और एक सपा विधायक के समर्थन से यह आंकड़ा 121 होता है। स्पीकर के वोट न डालने की स्थिति में यह आंकड़ा 120 का होता, जबकि सरकार ने आज अपने साथ 122 विधायकों के समर्थन का प्रमाण पेश कर दिया।


 


विधेयक के पक्ष में 122 मत रहे


विधायकों पर दलबदल कानून का मामला यदि संज्ञान में लाया जाएगा, तब विचार होगा। मतदान के दौरान विधेयक के पक्ष में 122 और विपक्ष में शून्य मत रहे। जहां तक बहुमत साबित करने की बात है तो विधानसभा अध्यक्ष के चुनाव से लेकर हर मांग संख्या, विधेयक, प्रस्ताव और समूचे बजट को पारित करने के लिए हर बार 'हां की जीत हुई" भी तो मतदान ही है


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