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सफलता की कहानी

 

परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण सारिका का बचपन विकट परिस्थितियों में मेहनत मजदूरी करते हुए गुजरा।

सारिका की शादी पेटलावद ब्लॉक के घुघरी गाँव में गोवर्धनलाल से हुई, गोवर्धनलाल के पास स्थायी रोजगार नही होने की वजह से घर खर्च चलाने के लिये अस्थायी तौर पर जो भी काम मिलता करते थे और परिवार का पालन पोषण करते थे, उन्हें भी आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ रहा था। घर खर्च चलाने के लिए सारिका भी मजदूरी का कार्य करने लगी और परिवार का भरन पोषण में मदद करने लगी। पारिवारिक आर्थिक तंगी एवं जल्दी शादी होने की वजह से सारिका पढाई पूर्ण नहीं कर पाई थी। उन्हें ये बात हमेशा खटकती थी लेकिन वे अपने बच्चों की पढाई को लेकर चिंतित रहती थी एवं बच्चों को अच्छी शिक्षा देना चाहती थी और स्वयं भी आगे पढना चाहती थी।

आजीविका मिशन के तहत बनाए जा रहे स्वयं सहायता समूह के बारे में सारिका को एक दिन पंचायत के माध्यम से पता चला। तब सारिका ने समूह के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त की और समूह के लाभों के बारे में भी जाना। इसके पश्चात् सारिका ने अपने मोहल्ले की महिलाओं को एकत्रित कर समूह से जुड़ने और समूह के महत्व के बारे में बताया और 10 महिलाओ ने मिलकर जय श्री भोले स्वयं सहायता समूह का गठन किया एवं 25 रुपये साप्ताहिक बचत करने का निर्णय लिया और अपने समूह का खाता मध्यप्रदेश ग्रामीण बैंक शाखा करवड़ में खुलवाया व समूह की बचत को बैंक में जमा करना शुरू किया। समूह के बेहतर संचालन और नियमित दस्तावेजीकरण होने पर समूह को आजीविका मिशन द्वारा 10,000 रुपये का रिवॉल्टिंग फण्ड (अनुदान राशि) प्राप्त हुआ ।

सारिका ने समूह से जुड़ने के बाद अपना स्वयं का रोजगार शुरू करने की ठानी और समूह से 30 हजार रुपये लोन लेकर अपने गाँव में ही चूड़ी कंगन स्टोर की दुकान खोली और दुकान चलाना शुरू की। दुकान से अच्छी आय प्राप्त होने लगी फिर धीरे-धीरे सारिका ने अपनी दुकान में साड़ी, सलवार सूट रखना भी शुरू किया और दुकान को बढ़ाया। अब सारिका को मजूदरी करने नहीं जाना पड़ता है, दुकान चलाने में उनके पति ने भी सहयोग करना शुरू किया और अपनी दुकान से सारिका की मासिक आय 9000 रुपये प्रति माह होने लगी। सारिका एवं उनके पति ने अपनी पूरी मेहनत व लगन के साथ अपनी आजीविका के साधन को बढ़ाया और दुकान के साथ-साथ बकरी पालन का काम भी शुरू किया और धीरे-धीरे अपने कच्चे मकान को पक्के मकान में बदल दिया है, सारिका ने अपनी कमाई से समूह से लिया सारा ऋण समूह को चुकता कर दिया।

वर्तमान स्थिति में सारिका अपनी आजीविका गतिविधियों से अच्छी कमाई कर रही हैं और इस तरह से सारिका ने अपनी मेहनत एवं हिम्मत के साथ अपने परिवार को आर्थिक रूप से सक्षम बनाया है। सारिका के बच्चों को अब बेहतर शिक्षा मिल रही है। सारिका का समूह गाँव में बनने वाला पहला समूह था, इनके समूह की सफलता देखते देखते वर्तमान स्थिति में गाँव में 20 स्वयं सहायता समूह बन चुके है। समूह से जुड़कर सारिका ने अपने साथ-साथ गाँव की महिलाओं को भी जागरूक किया और गाँव में पीने के पानी की समस्या के बारे में पंचायत में जाकर ग्राम सभा में बात की और पंचायत के सहयोग से गाँव में पानी की टंकी बनवाई। समूह से जुड़ने के बाद सारिका ने अपनी पढाई को भी शुरू किया और B.A. करके स्नातक तक शिक्षा ग्रहण की। सारिका ने अपनी मेहनत से अपने परिवार को आत्मनिर्भर और आर्थिक रूप से सक्षम बनाया है ।


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