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ईद पर 50 सालों से हिंदू परिवार निभा रहा परंपरा:पहली बार बदला शहरकाजी को ईदगाह ले जाने का रास्ता, जाने वजह

 

इंदौर में एक हिंदू परिवार ईद पर पिछले 50 सालों से ज्यादा वक्त से एक परंपरा निभाता आ रहा है। आज भी ये परंपरा निभाई गई। मगर पहली बार इस परंपरा में कुछ बदलाव हुआ।

चलिए जानते है इस परंपरा और पहली बार हुए बदलाव के बारे में…

पहले तो आपको इस परंपरा के बारे में बता दे। दरअसल, ये परंपरा पिछले 50 सालों से सलवाड़िया परिवार निभा रहा है। ईद के मौके पर हर साल बग्घी में शहर काजी को सदर बाजार ईदगाह ले जाने की परंपरा है। सत्यनारायण सलवाड़िया शनिवार को भी दो बग्गियां लेकर सुबह शहर काजी डॉ. इशरत अली के घर पहुंचे।

हर बार की तरह इस बार भी बग्गी को फूलों से सजाया गया। सुबह के वक्त शहर काजी के घर के बाहर समाज के लोग खड़े दिखे। घर के अंदर सत्यनारायण सलवाड़िया सहित बोहरा समाज के जोहर मानपुरवाला और अन्य लोग बैठे दिखे। जैसे ही घड़ी में 9 बजे का वक्त हुआ। सभी उठकर बाहर आ गए। परंपरानुसार शहर काजी को सदर बाजार ईदगाह ले जाने की तैयारी शुरू हो गई। घर के बाहर आते ही शहर काजी को सत्यनारायण सलवाड़िया और उनके साथ आए लोगों ने हार पहनाए, शॉल पहनाकर उन्हें ईद की मुबारकबाद दी। इसके बाद शहर काजी बग्गी में सवार हुए। उनके साथ सलवाड़िया भी बैठे। दूसरी बग्गी में समाज के ही दूसरे लोग सवार हो गए। धीरे-धीरे बग्गियां ईदगाह की ओर बढ़ने लगी।

50 साल में पहली बार बदला रूट

इस परंपरा के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि सदर बाजार ईदगाह ले जाने के लिए रूट को बदलना पड़ा। सत्यनारायण सलवाड़िया ने बताया कि सदर बाजार रोड को बनाने का काम चल रहा है। ऐसे में वहां से बग्गियां ले जाना संभव नहीं था। इसलिए 50 साल में पहली बार रूट बदला गया। इस बार शहर काजी को राजमोहल्ला से जिंसी, जिंसी से किला मैदान रोड, वहां से मरीमाता चौराहे होते हुए सदर बाजार ईदगाह ले जाया गया। इसके पहले उन्हें राजमोहल्ला से मल्हारगंज, वहां से छिपा बाखल होते हुए इमली बाजार से सदर बाजार ले जाया जाता था। मगर सड़क निर्माण के कारण पहली बार रूट को बदला गया है।

ये मिसाल शायद कहीं ओर नहीं है - शहर काजी

शहर काजी ने कहा कि यकीनन ईश्वर यहीं चाहता है कि हम मोहब्बत से रहे। एक-दूसरे पर भरोसा करें, विश्वास करें। पूरे भारत में साढ़े चार हजार के करीब शहर और 8 लाख गांव है। उनके मुकाबले में इंदौर ही वाहिद शहर है, जहां के शहर काजी को एक हिंदू परिवार मान-सम्मान से घर से ले जाता है और ईद की नमाज अदा कर वापस छोड़ता है। ये मिसाल तो मुझे लगता है पूरे इंडिया या पूरी दुनिया में कहीं नहीं होगी। नौजवानों को सोचना होगा कि सियासत अपनी जगह है, मज़हब अपनी जगह है, लेकिन भाईचारे से ही हम अपनी जिंदगी को अच्छी तरह से खुशहाली से बसर कर सकते है और सबको करना भी चाहिए।

पिता ने शुरू की थी परंपरा

सत्यनारायण सलवाड़िया बताते है कि ये परंपरा उनके पिता आरसी सलवाड़िया ने शुरू की थी। उस परंपरा को 50 साल से ज्यादा हो चुके है। भाईचारे और कौमी एकता के लिए ये परंपरा है। हम चाहते है कि हर व्यक्ति इस ओर सोचे, भाईचारे कायम है तो देश खुशहाल होगा और हर व्यक्ति की तरक्की होगी। नेकी हर बुराई को खत्म कर देती है। उन्होंने बताया कि सड़क निर्माण के कारण 50 साल बाद पहली बार रास्ता बदला गया है, परेशानी कई आती है, लेकिन हमें ये परंपरा निभाना है ये जरूरी है।

समाजजनों ने अदा की नमाज दी मुबारकबाद

सदर बाजार ईदगाह पर शहर काजी डॉ. इशरत अली ने ईद के मुख्य नमाज अदा कराई। इस दौरान बड़ी संख्या में समाज जन यहां मौजूद रहे। इसके साथ ही यहां पर पुलिस-प्रशासन की व्यवस्था भी दिखी। ईद की नमाज अदा करने के बाद समाज जनों ने एक-दूसरे को गले मिलकर ईद की मुबारकबाद दी।


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