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ये है स्वाद इंदौर का...:रात 2 बजे तक खाते रहे, डर था बीमार हो जाएंगे, कुछ नहीं हुआ

 

  • अमेरिका की फेडरेशन ऑफ इंडियन एसोसिएशन के साथ नाश्ते पर मुलाकात में एक घंटे सिर्फ इंदौर के खाने पर बात

प्रवासी भारतीय सम्मेलन खत्म हो गया, लेकिन एक सवाल अभी भी है कि आयोजन के अलावा प्रवासी भारतीयों ने इंदौर में क्या किया। ये तीन दिन कैसे बिताए। कहां-कहां पहुंचे। फेडरेशन ऑफ इंडियन एसोसिएशन (FIA) अमेरिका के चेयरमैन अंकुर वैद्य के साथ एक पूरी टीम आई थी।

उनके साथ सुबह के नाश्ते पर मिले तो बातों में सिर्फ और सिर्फ इंदौरी खाना और खान-पान के ठीये ही थे। बात शुरू हुई कॉकटेल से। अंकुर बोले, मैं सुबह के समय एक छोटे कैफे में पहुंचा। उसी समय एक व्यक्ति ने आकर कॉकटेल मांगा।

मुझे आश्चर्य हुआ कि इतनी सुबह कोई कॉकटेल क्यों मांग रहा है। दुकान मालिक बोला, कॉकटेल का मतलब चाय और कॉफी मिक्स है। यह सुनते ही सभी ठहाके लगाने लगे। इसी बीच 50 साल से अमेरिका में रह रहे मूलत: दिल्ली के अनिल बंसल ने उसे ट्राय करके भी देख लिया।

इसी से शुरू हुआ इंदौरी खाने पर चर्चा का सिलसिला। उन्हें सबसे ज्यादा चौंकाया शिकंजी ने, बोले- अब तक हम नीबू की शिकंजी समझते थे। यहां तो वह मीठी है और लाजवाब भी। फिर स्मिता मिकी पटेल को सराफा का पोटेटो स्पायरल याद आया। कहने लगीं, वह मिलता तो कई जगह, लेकिन यहां जैसा स्वाद कहीं नहीं।

बात निकली पान की तो फिया के न्यू जर्सी व न्यूयॉर्क प्रेसीडेंट केनी देसाई बोले, इतनी वैरायटी के पान पहली बार देखे। एक-एक आदमी ने कम से कम चार-पांच पान खाए। स्मोक पान, फायर पान कितनी तो वैरायटी थी। अंकुर ने इसमें वैल्यू एड किया कि उसमें लिक्विड नाइट्रोजन जैसा कुछ था, इसलिए वह बार-बार मुंह खुला रखने की हिदायत दे रहा था।

निराली कोराट ने गोल्ड कुल्फी का जिक्र किया तो उस पर लगे वर्क और दुकानदार का सोने के गहनों के प्रति लगाव पर देर तक बात होती रही। सीताफल रबड़ी ने जैसे सबको दीवाना बनाया हुआ था। प्रफुल्ल पटेल बोले, बाहुबली सैंडविच भी कमाल का था, लेकिन उसको एक आदमी तो पूरा खा ही नहीं सकता।

महेश दुबल ने कहा, अच्छी बात यह है कि यहां नॉनवेज का कल्चर देखने में नहीं आया। तंदूरी सोया चाप देखकर पहले तो मैं चौंका कि ये क्या है। दुकानदार ने बताया कि पूरी तरह वेज है। चाट और राज कचौड़ी भी मजेदार थी। इसी बीच स्मिता को गराडू की याद आई, लेकिन नाम को लेकर वे उलझन में थी, वे कुछ गायरू जैसा बोल रही थीं। अनिल बंसल ने कहा पोहा-जलेबी का भी जवाब नहीं है। इस पर अंकुर ने कहा अमेरिका में मेरे घर हफ्ते में एक बार नाश्ते में पोहा बनता ही है।

सवाल बड़ा था कि इतना सब खाया या चखा कैसे तो जवाब मिला हम रात 2 बजे तक खाते रहे। खाते वक्त डर था कि तबीयत खराब न हो जाए, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। उल्टा जो थोड़ा-बहुत सर्दी-जुकाम था वह भी चला गया।

इस पर महेश दुबल बोले, चूंकि सेल अच्छी है और सारा खाना ताजा बनता है तो बैक्टीरिया पनपने का मौका नहीं मिलता। बीमारी होने का कोई चांस नहीं है। बाकी क्या किया के सवाल पर स्मिता और निराली ने महेश्वरी व चंदेरी साड़ी खरीदने की बात कही। पुरुष पूछते रहे, यहां हमारे लिए क्या हो सकता है।

अब कुछ सीखें और सुझाव

56 और सराफा का मॉडल पूरी दुनिया को समझना चाहिए। यहां समझ आता है कि लोगों को घरों से बाहर निकालने के लिए मार्केट को मनोरंजन से जोड़ना जरूरी है। गार्डन और मार्केट को जोड़ें, उसमें स्टेज से लाइव परफार्मेंस कनेक्ट कर दें तो लोगों को एंटरटेनमेंट का पूरा पैकेज मिल जाता है।

इंदौर बहुत ही साफ और सुंदर शहर है। यहां आकर समझ आता है कि भारत सरकार जो कह रही है, उसका मॉडल क्या है। इतना अच्छा नमकीन, मिठाई होने के बाद भी हमने यहां आने से पहले यहां के किसी ब्रांड के बारे में कुछ नहीं सुना था, जबकि सारे बड़े और अच्छे ब्रांड हैं, वहां सिर्फ रतलामी सेंव मिलती है, उस पर भी पटेल फूड्स का लोगो होता है। अमेरिका में 40 लाख और कनाडा में 80 लाख भारतीय हैं, इंदौर के आइटम वहां देखने में नहीं आते। इस पर काम करने की जरूरत है। इंदौर के स्वाद की अच्छे ढंग से ब्रांडिंग की जाना चाहिए।

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