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भारत जोड़ो यात्रा:सभा में आगे के बजाय पीछे के रास्ते से ले गए, वहां सीढ़ी नहीं थी, नेताओं का सहारा लेकर मंच पर चढ़े राहुल

एबी रोड पर गमले वाली पुलिया के पास जब यात्रा पहुंची तो हजारों लोग इसमें शामिल हो गए - Dainik Bhaskar

एबी रोड पर गमले वाली पुलिया के पास जब यात्रा पहुंची तो हजारों लोग इसमें शामिल हो गए

भारत जोड़ो यात्रा के दौरान रविवार शाम को राहुल गांधी सभा के लिए राजबाड़ा पहुंचे। यहां उन्हें कृष्णपुरा-राजबाड़ा वाले हिस्से से आना था, लेकिन गाड़ियां गुरुद्वारा चौराहा से सीधे यशवंत रोड और राजबाड़ा की तरफ आ गईं। ऐसे में राहुल जब गाड़ी से उतरकर मंच के पिछले हिस्से में पहुंचे तो वहां सीढ़ियां ही नहीं थीं। राहुल थोड़ा उछले और ऊपर मौजूद कांग्रेस नेताओं ने उन्हें हाथ का सहारा देकर खींच लिया। राहुल के पीछे उनके सुरक्षाकर्मी भी इसी तरह मंच पर पहुंचे। राहुल राजबाड़ा की सभा के बाद कृष्णपुरा से आगे बढ़े तो कुछ लोगों ने हाथ देकर अभिवादन किया। इस पर राहुल ने काफिला रुकवाया और वहां खड़े लोगों से हाथ मिलाया।

सभा के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ, दिग्विजयसिंह, जयराम रमेश, जेपी अग्रवाल, पूर्व मंत्री सज्जनसिंह वर्मा, विधायक जीतू पटवारी, अजय सिंह, विनय बाकलीवाल, विधायक संजय शुक्ला, विशाल पटेल, सीपी शेखर, शोभा ओझा, अर्चना जायसवाल, अरविंद बागड़ी, प्रेमचंद गुड्‌डू, राजेश चौकसे, दीपक जोशी पिंटू, अखिलेश जैन आदि मौजूद थे।

राजबाड़ा पर सभा के दौरान भारी भीड़ उमड़ पड़ी। कुछ लोग बच्चों को साथ लेकर आ गए थे। भीड़ बढ़ी तो बच्चे रोने लगे। पुलिसकर्मियों ने तत्परता से बच्चों को संभाला। फोटो- ओपी सोनी
राजबाड़ा पर सभा के दौरान भारी भीड़ उमड़ पड़ी। कुछ लोग बच्चों को साथ लेकर आ गए थे। भीड़ बढ़ी तो बच्चे रोने लगे। पुलिसकर्मियों ने तत्परता से बच्चों को संभाला। फोटो- ओपी सोनी

सत्ता पक्ष के भय-एकाकीपन की चुप्पी इस यात्रा ने तोड़ी है

कन्याकुमारी से जब शुरुआत हुई तो यह यात्रा नहीं थी, बस एक संभावना थी, एक विचार था। इस संभावना ने दक्षिण के राज्यों से गुजरते हुए एक धारा का रूप और फिर महाराष्ट्र में पहुंचते-पहुंचते नदी का स्वरूप ले लिया। यात्रा पूरी होने में अभी दो महीने बाकी हैं। सबसे ज्यादा नफरत की राजनीति जिन प्रदेशाें में फैली है, उनका अभी सामना होना बाकी है। इसलिए बहुत बड़बोलेपन से बचना चाहिए। यात्रा से देश में जो एकाकीपन, भय का माहौल था कि छापा पड़ जाएगा, जेल भेज दिए जाओगे, उसमें एक दरार पड़ी है। जिस देश में भय के कारण कोई बोल नहीं रहा था, उस चुप्पी को तोड़ना जरूरी था। जिस एक चीज में परिवर्तन हुआ है वह है राहुल गांधी की छवि।

बुलेट की सवारी
बुलेट की सवारी

राहुल बुनियादी रूप से नहीं बदले। जब मैंने कांग्रेस की घोर आलोचना की, तब भी कहा था राहुल ईमानदार हैं। राहुल के व्यक्तित्व के बारे में कहा गया- ये धूल नहीं खा सकते। अपने आप सड़क पर चलने से वह छवि टूटी है। दूसरी छवि थी कि इन्हें देश के बारे में कुछ पता ही नहीं। अब वे पूरा देश घूम रहे हैं। आगे डर यह है कि कांग्रेसी ऐसा न मान लें कि हमारा काम अब हो गया। अभी तो आप समझिये दीवार खड़ी थी, उसमें दरवाजा खुला है। दस्तक दी है। खुलना बाकी है। काम तो बाकी है।

यात्रा की कहानी, शामिल नेताओं की जुबानी - लोगों के चेहरे पढ़कर देखिए सारी कहानी समझ आ जाएगी

कमलनाथ, पूर्व मुख्यमंत्री
कमलनाथ, पूर्व मुख्यमंत्री

मैं 42 साल से सक्रिय राजनीति में हूं। चेहरे के भाव पढ़ना जानता हूं। कई चुनाव लड़े-लड़वाए भी, लेकिन किसी राजनीतिक यात्रा को लेकर ऐसा उत्साह आज तक नहीं देखा। छोटी दुकानों के लोग एक लड्‌डू हाथ में लेकर राहुल जी को खिलाने के लिए दौड़ रहे हैं। बच्चियां आ रही हैं, बुजुर्ग आ रहे हैं। यह बिल्कुल अलग तरह का अनुभव है।

इससे समझ आता है कि लोग क्या चाहते हैं, उनके मन में क्या है। मप्र के शुरुआत में बुरहानपुर में थोड़ा कम लगा था, लेकिन उसके आगे लगातार लोग बढ़ते जा रहे हैं। हर कोई यात्रा के साथ चलना चाहता है। वास्तव में लोग महंगाई, बेरोजगारी और नफरत की राजनीति से तंग आ चुके हैं। भाजपा इस यात्रा से बौखलाई हुई है। हालांकि हमारा मुकाबला अकेले भाजपा से नहीं है। उनके सभी संगठनों से है। हम उस पर भी काम कर रहे हैं। यह यात्रा देश में बड़ा बदलाव लेकर आएगी।

यह बड़े बदलाव की शुरुआत है, पर अभी लड़ाई बहुत लंबी है

विवेक तन्खा, राज्यसभा सदस्य
विवेक तन्खा, राज्यसभा सदस्य

भारत जोड़ो यात्रा को हम बड़े बदलाव की शुरुआत कह सकते हैं। इसके माध्यम से कांग्रेस फिर जनता के बीच पहुंची है। हर क्षेत्र के लोग आ रहे हैं, अपने मुद्दे रख रहे हैं, अपनी पीड़ाएं साझा कर रहे हैं। वैसे भी कांग्रेस इस देश की संस्कृति से जुड़ी हुई है। कांग्रेस के मायने भी यही है कि वह जानती है कि किसी एक क्षेत्र को, किसी एक समुदाय को साथ लेकर देश आगे नहीं बढ़ पाएगा। लोग क्षेत्रीय नेतृत्व चाहते हैं, अपने राज्य की सत्ता में अपने लोगों को देखना चाहते हैं।

अटलजी ने क्षेत्रीय नेतृत्व को साथ लेकर शुरुआत की थी, लेकिन बाद में उन्हें लगा कि इंडिया शाइनिंग है, सहयोगी दल साथ नहीं रहे तो भी सत्ता बरकरार रहेगी, लेकिन वैसा नहीं हो पाया। मौजूदा सत्ता तो इसे खत्म ही करना चाहती है। पूरी दुनिया में बदलाव तब आए हैं, जब जनता सड़क पर आई है। इस बार भारत जोड़ो यात्रा के साथ यह सिलसिला बन रहा है। हालांकि इतने से ही काम पूरा नहीं होगा। अभी इस तरह के कई कार्यक्रम लेकर कांग्रेस को जनता के बीच लगातार जाना होगा।

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