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द्वापर युग से शुरू हुई है गोवर्धन पर्वत की पूजा

 गाय के गोबर से गिरिराज जी बनाकर की जाती है पूजा, श्रीकृष्ण का अभिषेक करें और कृं कृष्णाय नम: मंत्र का जप करें

बुधवार, 26 अक्टूबर को गोवर्धन पूजा है। दिवाली के बाद कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा पर श्रीकृष्ण और गोवर्धन पर्वत यानी गिरिराज जी की पूजा की जाती है। ये पर्व खासतौर पर कृषि, खेती और दूध से संबंधित व्यापार करने वाले लोगों के लिए महत्वपूर्ण है।

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक गोवर्धन पूजा के दिन मथुरा के पास गिरिराज जी पर्वत की पूजा और परिक्रमा की जाती है। जो लोग गिरिराज नहीं जा पाते हैं, उन्हें अपने घर-आंगन में ही गाय के गोबर से गिरिराज जी बनाकर पूजा करनी चाहिए।

गोबर से बने पर्वत पर गोवर्धन जी स्थापित करें, फूलों से सजाएं। दूध से बने मीठे पकवान का भोग लगाएं। धूप-दीप जलाकर आरती करें। पूजा के अंत में भगवान से जानी-अनजानी गलतियों के लिए क्षमा मांगे, फिर प्रसाद बांटें और खुद भी लें।

इस पर्व पर किसान अपने पशु धन की पूजा भी करते हैं। पशुओं का सजाया जाता है। गोवर्धन पूजा का त्योहार हमें प्रकृति के लिए आभार मानने की प्रेरणा देता है।

गोवर्धन पूजा की संक्षिप्त कथा

द्वापर युग में श्रीकृष्ण माता यशोदा और नंद बाबा के साथ ब्रज में रह रहे थे। उन दिनों अच्छी बारिश के लिए गांव के लोग भगवान इंद्र का पूजन करते थे। इंद्र देव खुद को सबसे शक्तिशाली समझने लगे थे, उन्हें खुद की शक्तियों पर घमंड हो गया था।

श्रीकृष्ण ने तय किया कि वे इंद्र का अहंकार तोड़ेंगे। कान्हा ने गांव के लोगों को समझाया कि वे इंद्र देव की नहीं, बल्कि गोवर्धन पर्वत की पूजा करें। सभी ने कान्हा की बात मान ली। जब इंद्र देव की पूजा बंद हो गई तो इंद्र को गुस्सा आ गया। उन्होंने ब्रज क्षेत्र में तेज बारिश शुरू कर दी।

बारिश की वजह से ब्रज क्षेत्र में पानी-पानी हो गया था। तब सभी लोगों की रक्षा के लिए श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठा लिया था। गांव के लोग पर्वत के नीचे खड़े हो गए। सात दिनों के बाद जब इंद्र को अपनी गलती का अहसास हुआ तो उन्होंने बारिश बंद की और श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी।

इस घटना के बाद से ही गोवर्धन पर्वत की पूजा करने की परंपरा शुरू हुई है।

ऐसे कर सकते हैं श्रीकृष्ण की पूजा

गोवर्धन पूजा के दिन भगवान श्रीकृष्ण की भी विशेष पूजा जरूर करें। बाल गोपाल का दूध, दही, घी, जल से अभिषेक करें। अभिषेक के बाद पीले चमकीले कपड़े पहनाएं। भगवान का फूलों से श्रृंगार करें। चंदन से तिलक लगाएं। मोर पंख अर्पित करें।

तुलसी के साथ माखन-मिश्री का भोग लगाएं। धूप-दीप जलाकर आरती करें। कृं कृष्णाय नम: मंत्र का जप करें। पूजा के बाद भगवान से क्षमा याचना करें और फिर प्रसाद वितरित करें।

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