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दिवाली से पहले समृद्धि देने वाला व्रत:21 अक्टूबर को रमा एकादशी, इस दिन भगवान विष्णु-लक्ष्मी की पूजा से बढ़ती है सुख-समृद्धि

दीपावली के चार दिन पहले आने वाली एकादशी को लक्ष्मी जी के नाम पर रमा एकादशी कहा जाता है। जो कि इस बार 21 अक्टूबर को रहेगी। ये कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी होती है। इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर तीर्थ स्नान करने के बाद भगवान विष्णु की पूजा और व्रत किया जाता है। पद्म पुराण में कहा गया है कि इस व्रत को करने से सौभाग्य और समृद्धि बढ़ती है। जाने-अनजाने में हुए पाप भी खत्म हो जाते हैं।

व्रत और पूजा की विधि
सुबह जल्दी उठकर तीर्थ स्नान करें। ऐसा न कर पाएं तो घर पर ही पानी में गंगाजल मिलाकर नहाएं। इसके बाद उगते हुए सूरज को अर्घ्य दें। फिर एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करने का संकल्प लें। फिर भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी का अभिषेक और पूजा करें या किसी ब्राह्मण से करवाएं। गीता पाठ भी करवा सकते हैं। भगवान को केले या किसी ओर मौसमी फल का भोग लगाएं और प्रसाद बांटे। इसके बाद ब्राह्मण भोजन करवाएं और जरुरतमंद लोगों को दान दें।

रमा एकादशी का महत्व
पुराणों के अनुसार रमा एकादशी व्रत कामधेनु और चिंतामणि के समान फल देती है। ये व्रत करने से समृद्धि और संपन्नता बढ़ती है। इस व्रत को करने से लक्ष्मीजी प्रसन्न होती हैं। पद्म पुराण के अनुसार रमा एकादशी का व्रत करने से भगवान विष्णु की कृपा भी प्राप्त होती है। जिसके प्रभाव से हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं। मृत्यु के बाद विष्णु लोक मिलता है।

पद्म पुराण के अनुसार व्रत कथा
मुचुकुंद नाम का धार्मिक और सत्य बोलने वाला राजा था। उसकी दोस्ती इंद्र, यम, वरुण, कुबेर और विभीषण से थी। उसके राज्य में सभी सुखी थे। उनकी चंद्रभागा नाम की बेटी थी। जिसकी शादी राजा चंद्रसेन के बेटे शोभन के साथ हुई। एक दिन शोभन अपने ससुराल आया तो उस दिन एकादशी थी। शोभन व्रत करने का मन बनाया। चंद्रभागा को चिंता हुई कि उसका पति भूखा कैसा रहेगा? उसके पिता के राज्य में सभी एकादशी का व्रत रखते। कोई अन्न नहीं खाता था।

शोभन ने पत्नी से ऐसा उपाय जानना चाहा, जिससे व्रत भी पूरा हो जाए और तकलीफ भी न हो, लेकिन उपाय नहीं मिला। शोभन किस्मत के भरोसे व्रत रख लिया। लेकिन वो भूखा-प्यासा नहीं रह सका और उसकी मृत्यु हो गई। इससे चंद्रभागा बहुत दु:खी हुई। पिता के विरोध की वजह से वो सती नहीं हुई।

मरने के बाद रमा एकादशी व्रत के प्रभाव से शोभन को मंदराचल पर्वत के शिखर पर बहुत अच्छे देवनगर मिला। वहां बहुत सुख था। एक दिन जब राजा मुचुकुंद मंदराचल पर्वत पर आए तो उन्होंने अपने दामाद का वैभव देखा। वापस अपनी नगरी आकर चंद्रभागा को बताया तो वो बहुत खुश हुई और अपने पति के पास चली गई। अपनी भक्ति और रमा एकादशी के प्रभाव से शोभन के साथ सुखपूर्वक रहने लगी।


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