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नवरात्रि के प्रथम दिवस पर डॉ. रीना रवि मालपानी द्वारा लिखित लेख

माँ का प्रथम स्वरूप : शैलपुत्री

            नवरात्रि माँ की आराधना और उपासना का एक श्रेष्ठ अवसर है। जिसमें साधक शक्ति के समक्ष समर्पण के पाठ द्वारा मनोवांछित फल प्राप्त कर सकता है। माँ नारी शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है, वह नारी शक्ति जिसने स्वयं परब्रह्म राम और कृष्ण को भी जन्म दिया है। जो सृजन के लिए बनी है उन्हीं माँ की आराधना के क्रम में हम सर्वप्रथम जानते है माँ शैलपुत्री को।

            शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री है। नवरात्रि का प्रथम दिन शैलपुत्री की पूजा-अर्चना को समर्पित होता है। माँ शैलपुत्री हमें दृढ़ता और तटस्थता प्रदान करती है क्योंकि शैल का अर्थ होता है पर्वत अर्थात् जो पर्वत जैसी दृढ़ है। जीवन में कुछ भी अभीष्ट प्राप्ति के लिए दृढ़ता का होना जरूरी है। यदि आप सफलता के उच्चतम सोपान को छूना चाहते है तो भी आपको दृढ़ होना होगा। इसी स्वरूप में माँ ने शिवजी की आराधना की थी। अनेकों बार माँ की परीक्षा ली गई, पर माँ पर्वत की तरह अपने संकल्प पर अडिग रही। शिव प्राप्ति के संकल्प को माँ ने तटस्थ होकर पूरा किया। यही गुण भक्त को माँ से सीखना है, यदि जीवन में कोई संकल्प लिया हो तो उसके लिए दृढ़ प्रतिज्ञ रहें। भक्ति की उत्कृष्ठ पराकाष्ठा के लिए भी आपको दृढ़ होना होगा और पर्वत की तरह बाधाओं का सामना करना होगा। माँ शैलपुत्री के एक हाथ में त्रिशूल और एक हाथ में कमल का फूल दिखाई देता है। इनका वाहन वृषभ बताया गया है। नवरात्रि के प्रथम दिवस मन में माँ शैलपुत्री के स्वरूप का ध्यान करें। शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना करें और माँ शैलपुत्री का पूरे मन से आह्वान करें। माँ का यथा संभव पंचोपचार पूजन करें। धूप, दीप, नैवेद्य और वस्त्र अपनी श्रद्धा अनुरूप माँ को प्रेमपूर्वक अर्पित करें। नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती का पाठ भी साधकों के लिए लाभकारी होता है।  



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