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बंधन समृद्धि का:रक्षाबंधन पर 22 करोड़ के कारोबार की उम्मीद, पिछली बार से 37.5% ज्यादा

15 हजार से ज्यादा डिजाइन की राखियां बाजार में - Dainik Bhaskar

15 हजार से ज्यादा डिजाइन की राखियां बाजार में
  • कोरोना के कारण 2020 में कारोबार 2 से 3 करोड़ रुपए पर सिमट गया था
  • इस साल 15 हजार से अधिक डिजाइन की राखियां बाजार में हैं। यह 5 रुपए से 1500 रुपए दर्जन तक थोक भाव में बिक रही

रक्षाबंधन का पर्व इस बार बाजार में समृद्धि लेकर आया है। राखी का कारोबार पिछले साल से 37.5 फीसदी ज्यादा है। पिछली बार 16 करोड़ का कारोबार हुआ था। इस बार 20 से 22 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है। 1947 से राखियों का व्यापार कर रहे व्यापारी मोहनलाल गेरा कहते हैं रानीपुरा, सियागंज और मारोठिया बाजार में होलसेल की करीब 105 दुकानें हैं, जहां से शहर के 300 किमी के एरिया में राखी बिकने जाती हैं। 2019 में लगभग 12 करोड़ का कारोबार हुआ था।

कोरोना के कारण 2020 में कारोबार 2 से 3 करोड़ रुपए पर सिमट गया था। पिछले साल यानी 2021 में 16 करोड़ रुपए का करोबार हुआ था। इस साल आंकड़ा 22 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है। मारोठिया में 43 साल से व्यापार कर रहे आयुष नीमा बताते हैं जुलाई से ही राखी का व्यापार शुरू हो जाता है। 80 प्रतिशत रिटेल कारोबारियों ने जुलाई के पहले सप्ताह से ही राखियों की बुकिंग और खरीदी शुरू कर दी थी। 11 अगस्त तक 20 से 22 करोड़ रुपए का व्यापार होने का अनुमान है।

15 हजार से ज्यादा डिजाइन की राखियां बाजार में

इस साल 15 हजार से अधिक डिजाइन की राखियां बाजार में हैं। यह 5 रुपए से 1500 रुपए दर्जन तक थोक भाव में बिक रही हैं। लाइट, म्यूजिक, बुटिक, चंदन, लकड़ी, रुद्राक्ष, मोती, रूबी और रंगबिरंगे पत्थरों को रेशमी धागे में पिरोकर बनाई गई राखियों के साथ ही चांदी और सोने जैसी दिखने वाली राखियां भी हैं। यह राखियां खेरची में 10 रुपए से लेकर 650 रुपए तक में उपलब्ध हैं।

इस बार 10 प्रतिशत महंगी हुईं

राखी के कारोबार से जुड़े बलराम अडयानी कहते हैं इस साल महंगाई का असर राखी पर भी दिख रहा है। कच्चे माल के दाम में बढ़ोतरी होने से राखियों के दामों में 10 से 15 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। चलन की बात करें तो बड़े फुंदे वाली राखियां केवल 5 फीसदी ही बिकने आती हैं।

चाइना की राखी दरकिनार, पहले 70 फीसदी बिकती थीं

व्यापारी रवि गेरा कहते हैं इस साल इंदौर में राजकोट, अलवर, मुंबई, दिल्ली, कोलकाता और अहमदाबाद से राखियां तैयार होकर आई हैं। तीन साल पहले तक शहर में 70 प्रतिशत राखी चाइन की बिकती थीं। अब कोई भी व्यापारी चीन से राखी नहीं मंगवाता है। चीन से लाइट, म्यूजिक, स्टोन और पर्ल की राखियां आती थीं, लेकिन अब यह सब राखी देश में ही बन रही हैं।

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