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कुछ नया सीखते रहेंगे तो बड़ा काम खुद बन जाएगा - सत्या नडेला

  • सत्या नडेला बता रहे हैं कि दिक्कत टैलेंट की नहीं है, उस टैलेंट को मौका मिलने की है। समझिये उन्हीं की जुबानी...

मेरे परदादा छोटे किसान थे, जो ज्यादा नहीं जिए। वो जब गए तो परदादी पर अपने दो बेटों की जिम्मेदारी आ गई। उनके पास कोई काम नहीं था। अपने बच्चों के भविष्य की खातिर वो पास के शहर में रहने चली गईं। जीवन आसान नहीं था। उन्होंने लोगों के घर में काम करना शुरू किया। इतना करके भी वो अपने एक बच्चे को ही पढ़ने के लिए स्कूल भेज पाती थीं। उनके दोनों बेटों की उम्र में ज्यादा फर्क नहीं था। एक जिम्मेदार था और एक मस्तीखोर था। दोनों में से किसी एक को काम पर लगना था क्योंकि घर चलाना भी जरूरी था, तो मेरी परदादी ने उसे चुना जो ज्यादा जिम्मेदार और काबिल था। वो बेटा एक कंस्ट्रक्शन साइट पर मजदूरी करने लगा। वो जीवनभर उसी काम में लगा रहा। उसने जीवन में कभी कुछ नया सीखने की कोशिश नहीं की और बड़ा काम करने की ललक नहीं दिखाई। नया सीखते रहें तो बड़ा काम अपने आप बनेगा। नया सीखने की ललक को शिक्षा की आंच तपाती है और आप कुछ कमाल कर गुजरते हैं। जिस मस्तीखोर बच्चे को लोकल स्कूल में पढ़ने के लिए भेजा गया था, वो मेरे दादाजी थे। कम जिम्मेदार होने के बावजूद उन्होंने स्कूल की पढ़ाई पूरी की और बड़े होकर पुलिस अफसर बने। अपने भाई के मुकाबले एक दशक देर से काम शुरू करने के बावजूद मेरे दादाजी की तनख्वाह कहीं ज्यादा थी। यह मेरे दादाजी की एजुकेशन और शानदार करियर ही था जिसने मेरे पिताजी को पढ़ने के लिए प्रेरित किया। फिर यही चीज मुझ तक पहुंची और मैं अपना पैशन फॉलो कर पाया। मेरे पिताजी बस यह चाहते थे कि मैं क्रिकेट खेलना बंद करूं और अपनी पढ़ाई पर ध्यान लगाऊं। मैं अच्छा क्रिकेट खेलता था, वो चाहते थे मुझे पढ़ाई के प्रति गंभीर हो जाना चाहिए। वैसे मुझे जल्द ही अहसास हो गया था कि क्रिकेट में मेरा भविष्य है ही नहीं। मुझे लगता था कि मैं भारत में अधिकतम फर्स्ट क्लास क्रिकेट खेल पाऊंगा, इससे ज्यादा गुंजाइश नहीं है। मेरी पढ़ाई भी औसत थी। मैं हैदराबाद में ही रहना चाहता था और इकोनॉमिक्स पढ़ना चाहता था। बैंक में नौकरी पाना मुझे मेरी रेंज नजर आती थी। यही मेरी महत्वाकांक्षा थी। पिताजी ने कहा- तुम कर क्या रहे हो...! तुम्हें इस जगह से निकलना ही होगा। उन्होंने मुझे वाकई धक्का देकर घर से निकाला और इंजीनियरिंग के लिए भेजा। मेरे पिता बेहद अलग इंसान रहे। वो पढ़ाई को लेकर गंभीर थे, लेकिन उनका लहजा मजाकिया हुआ करता था। जब भी मैं उन्हें अपना रिपोर्ट कार्ड दिखाता, वो कहते- आखिर कोई कैसे ऐसे मार्क्स हासिल कर सकता है। जाहिर है वो मेरे बुरे मार्क्स की बात किया करते थे लेकिन उनका कहने का तरीका इतना प्यारभरा होता था कि मुझे उनके कहे का कभी बुरा नहीं लगता था। मेरे दादाजी को जो मौका मिला, उससे उनकी पीढ़ियों पर असर हुआ। मेरी यह कहानी बताती है कि टैलेंट तो हर जगह है, लेकिन मौके नहीं हैं। अब माइक्रोसॉफ्ट में काम करते वक्त हमारी कोशिश होती है कि हर बच्चे के पास मौका हो। टेक्नोलॉजी ही यह मौका पैदा करेगी, कुछ के लिए नहीं, हर एक के लिए। लेकिन ऐसा कर पाना अकेले टेक्नोलॉजी के बस की बात नहीं है। समर्पित एडमिनिस्ट्रेटर्स, महान टीचर्स, प्रेरित स्टूडेंट्स और इन्वॉल्वड पैरेंट्स मिलकर एजुकेशन की दुनिया को बदल सकते हैं। टेक्नोलॉजी तो औजार भर है, जो उनकी क्रिएटिविटी, उनकी चतुरता को ताकत देगी। (विभिन्न मंचों पर माइक्रोसॉफ्ट सीईओ सत्या नडेला। अमेरिकी टी-20 लीग ‘एमएलसी’ में 44 मिलियन डॉलर निवेश करके चर्चा में हैं।)

आप रोज अपने आपको रिन्यू करते हैं

- आपके उपयोगी काम भी बेकार हैं, अगर आप उनसे सीख नहीं रहे हैं।
- क्या मैं बीते साल से बेहतर स्थिति में हूं... यही मेरा जिंदगी मापने का तरीका है।
- आप रोज खुद को रिन्यू करते हैं, किसी दिन सफल होते हैं और किसी दिन असफल भी होते हैं, मायने इसका औसत रखता है।
- इन दिनों हम सॉफ्टवेयर से चलने वाली दुनिया में रह रहे हैं।
- संवेदना ही मुझे जमीन पर रखती है और मुझमें समाहित महसूस होती है।

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