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जीएसटी के आईटीसी की विसंगति:बड़ी कंपनी की भूल के कारण भरना पड़ रहा डीलर्स को एक माह में लाखों का कर

 

व्यापारिक संगठन व कर सलाहकारों ने कई बार बताई समस्या, लेकिन नहीं मिला समाधान। - Dainik Bhaskar
व्यापारिक संगठन व कर सलाहकारों ने कई बार बताई समस्या, लेकिन नहीं मिला समाधान।

जीएसटी में बड़े सप्लायर द्वारा इनपुट टैक्स क्रेडिट न भरने के कारण छोटे डीलर्स को लाखों का टैक्स चुकाना पड़ रहा है। आईटीसी न मिलने से कैश फ्लो भी गड़बड़ा रहा है। इस तरह की समस्या अहिल्या चैंबर ऑफ कॉमर्स व अन्य व्यापारिक संगठन और कर सलाहकारों ने कई बार उठाई गई। इस पर विभाग से कोई समाधान नहीं मिला।

हाल ही में ऐसा ही एक मामला सामने आया, जब एक बड़ी लुब्रीकेटिंग ऑयल कंपनी ने सिर्फ एक महीने समय पर अपना जीएसटी आर-1 नहीं भरा तो कंपनी के डीलर्स के लिए टैक्स भरना पड़ गया। दरअसल बड़ी कंपनी हर माह करोड़ों का टैक्स भरकर, इनपुट टैक्स क्रेडिट अपने डीलर्स को पास ऑन करती है। एक साधारण डीलर के लिए यह राशि 10-15 लाख रुपए होती है, लेकिन देरी होने के कारण डीलर्स को मिलने वाला यह टैक्स अटक गया।

इस विसंगति को ऐसे समझें

इंदौर के अहिल्या चैंबर ऑफ कॉमर्स के महामंत्री सुशील सुरेका ने बताया की मान लीजिए उक्त कंपनी के डीलर्स के लिए मार्जिन 10% का होता है, मतलब, जो 10-15 लाख का इनपुट टैक्स उन्हें कंपनी से मिलता है, उसके ऊपर वे अपनी तरफ से 1 से 1.5 लाख रुपए प्रति माह भरते हैं।

ऐसे में अगले महीने मिले अतिरिक्त कर को यदि यह टैक्स भरने के लिए इस्तेमाल करते हैं तो भी उन्हें यह राशि पूर्णतः इस्तेमाल करने ले लिए कम से कम 10 महीने का वक्त लग सकता है। वहीं, जिन व्यवसायों में मार्जिन कम होता है, उनके लिए तो यह समय काल और लंबा हो सकता है।

तर्क : देरी पर पेनल्टी या इंटरेस्ट देना होगा

विभाग का मानना है की एक महीने रुकी हुई आईटीसी, जब भर दी जाएगी तो वो प्राप्तकर्ता के पास अगले महीने से दिखने लगेगी। लेकिन देरी से आई इस आईटीसी का उपयोग करने के लिए या तो व्यापारियों को अपनी तरफ से पेनल्टी और इंटरेस्ट देना होगा या फिर एक मुश्त रुकी हुई आईटीसी का भुगतान कर भविष्य में जो कर राशि देय होगी, उससे एडजस्ट किया जा सकता है।

छोटे डीलर्स ऐसे बच सकते हैं पेनल्टी से

टैक्स प्रैक्टिशनर एसोसिएशन के मानद सचिव सीए अभय शर्मा का कहना है की ऐसी परिस्थिति में छोटे डीलर्स के लिए आईटीसी कुछ लिमिट तक क्लेम बेसिस पर दी जानी चाहिए। छोटे व्यापारी जिनके पास कैश फ्लो की समस्या ज्यादा रहती है, उनके लिए उदाहरण के लिए 1 लाख तक की लिमिट फिक्स की जा सकती है, ताकि वे आईटीसी का क्लेम ले सकें भले ही सप्लायर ने जीएसटीआर 1 नहीं भरा हो।

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