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महापौर-पार्षद नहीं होने से समाधान अटका:सड़कें,स्ट्रीट लाइट और पार्क से जुड़ीं 4 हजार से ज्यादा शिकायतें नगर निगम के पास पेंडिंग

शहर में कॉलोनियों की सड़कें और छोटे पार्क के साथ स्ट्रीट लाइट आदि की कम से कम चार हजार शिकायतें लंबित हैं। इनमें से ज्यादातर के लिए 10 लाख से लेकर 50 लाख रुपए तक के बजट की जरूरत है। लेकिन दो साल से अधिक समय से महापौर और पार्षद नहीं होने से इन शिकायतों के निराकरण पर प्रशासन का ध्यान नहीं है। हर महीने निगम को सीएम हेल्पलाइन पर लगभग 4000 शिकायतें मिलती हैं इनमें से 800 ऐसी होती हैं जिनमें छोटे-छोटे निर्माण की मांग की जाती है। सीएम हेल्पलाइन के क्राइटेरिया से बाहर होने के कारण इन्हें क्लोज कर दिया जाता है। लेकिन यदि इन पर गौर किया जाए तो हर जोन में छोटे-बड़े 200 ऐसे काम पेंडिंग हो गए हैं, जिनका पूरा होना जरूरी है।

सड़कों की सबसे ज्यादा मांग कोलार से

1 काॅलोनियों की भीतरी सड़कें बनाने की सबसे ज्यादा मांग कोलार से हैं। यहां 2015 से लगातार किसी न किसी वजह से खुदाई चल रही है। 2 बावड़िया कला, गुलमोहर, मिसरोद, एम्स और अवधपुरी आदि क्षेत्र में पानी के इंडिविजुअल कनेक्शन और कॉलोनी मेंटेनेंस निगम को हैंडओवर करने की मांग ज्यादा है। 3 शहर की हर छोटी से बड़ी कालोनी मेंं छोटे-छोटे पार्क बनाने की डिमांड आ रही है।

4 तुलसी नगर, शिवाजी नगर, जवाहर चौक आदि क्षेत्रों में पेविंग ब्लॉक लगाने की डिमांड बहुत है 5 शहर के आउटर एरिया के साथ कालोनियों के भीतर भी स्ट्रीट लाइट लगाने की मांग आती है 6 सुभाष नगर, ऐशबाग और चौक, तलैया आदि क्षेत्रों में टूटी हुई सड़कें और नाली निर्माण की डिमांड है 7 भदभदा रोड पर कालोनियों में तो सभी तरह की मूलभूत सुविधाओं की जरूरत है

बेमानी हो जाती हैं बड़ी घोषणाएं

भोपाल सिटीजंस फोरम के पूर्व संयोजक हरीश भावनानी ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों का अनुभव बताता है कि बड़ी घोषणाएं बेमानी हो जाती हैं। निगम ने स्मार्ट सिटी के बजट से आर्च ब्रिज बनाया, 40 करोड़ खर्च हो गए। लेकिन ब्रिज का कोई फायदा नहीं। एक महापौर की घोषणा, दूसरे और तीसरे महापौर के कार्यकाल तक भी पूरी नहीं होतीं।

निगम अपने बेसिक काम पर ही फोकस करे

विधायक रामेश्वर शर्मा ने कहा कि निगम अपने बेसिक काम यानी सफाई, सड़कों का मैंटेनेंस, पानी सप्लाई और स्ट्रीट लाइट व छोटे पार्क पर ही फोकस करे तो बेहतर है। निगम के पास न तो बजट होता है और न संसाधन, इसीलिए बड़े काम पर फोकस ठीक नहीं है।

हर साल 200 करोड़ खर्च, फिर भी काम बाकी

पूर्व पार्षद संजय वर्मा ने कहा कि पार्षद निधि और मुख्यालय निधि से हर साल इन छोटे-छोटे कामों पर 200 करोड़ खर्च होते थे। पिछले तीन बजट से इसका कोई प्रावधान नहीं होने से यह स्थिति बनी है। अप्रत्यक्ष प्रणाली से महापौर का चुनाव होने से महापौर स्वयं भी पार्षदों की मांग को समझेंगे और इन छोटे कामों पर फोकस होगा।

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