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आने वाले व्रत-पर्व:अपरा एकादशी 26 को, अगले दिन द्वादशी व्रत; 30 मई को सोमवती अमावस्या पर वट सावित्री और शनि जयंती पर्व

ज्येष्ठ महीने के पहले 15 दिनों में खास व्रत और पर्व आने वाले हैं। इनमें 26 मई, गुरुवार को अपरा एकादशी रहेगी। इसके अगले दिन शुक्रवार को द्वादशी व्रत पर तीर्थ-स्नान और दान के साथ ही भगवान विष्णु के वामन अवतार की विशेष पूजा की जाएगी। वहीं, कृष्ण पक्ष का आखिरी दिन 30 मई को रहेगा। इस दिन सोमवार और अमावस्या होने से साल का आखिरी सोमवती अमावस्या योग बनेगा। इसी दिन अखंड सौभाग्य और समृद्धि के लिए महिलाएं वट सावित्री व्रत करेंगी और शनि जयंती भी इसी दिन मनेगी।

अपरा एकादशी (26 मई, गुरुवार)
पद्म पुराण और महाभारत में बताया गया है कि ज्येष्ठ महीने के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी का व्रत करने से हर तरह के कष्ट दूर हो जाते हैं। इसे अपरा एकादशी कहा गया है। इसकी कथा के मुताबिक धौम्य ऋषि के कहे अनुसार एक राजा ने इस व्रत को कर के प्रेत योनि से मुक्ति पाई थी। वहीं, पांडवों का भी बुरा समय इस व्रत के प्रभाव से दूर हुआ था।

ज्येष्ठ द्वादशी (27 मई, शुक्रवार)
विष्णु पुराण के मुताबिक ज्येष्ठ मास की द्वादशी तिथि को दिन-रात उपवास करके भगवान विष्णु के त्रिविक्रम रूप की पूजा करने का विधान है। ऐसा करने से गोमेध यज्ञ का फल मिलता है। इस दिन वामन अवतार की भी पूजा की जाती है। साथ ही इस दिन यमुना स्नान कर के भगवान विष्णु की पूजा करने से अश्वमेध यज्ञ करने का पुण्य फल मिलता है।

सोमवती अमावस्या (30 मई, सोमवार)
सोमवार को अमावस्या होने से सोमवती अमावस्या का शुभ योग बनता है। इस संयोग में तीर्थ स्नान और दान करने की परंपरा है। जिससे अक्षय पुण्य मिलता है। मन शांत होता है और नकारात्मक विचार दूर होते हैं। इस पर्व पर जरूरतमंद लोगों को अन्न और जलदान किया जाता है। गोशाला में हरी घास और पैसे दान करने चाहिए। अमावस्या पर श्राद्ध करने से पितर संतुष्ट होते हैं।

वट सावित्री व्रत और शनि जयंती (30 मई सोमवार)
ज्येष्ठ महीने की अमावस्या पर वट सावित्री व्रत किया जाता है। इस व्रत में बरगद के पेड़ की पूजा और परिक्रमा की जाती है। पूजा के बाद सत्यवान और सावित्री की कथा सुनाई जाती है। जिससे महिलाओं को अखंड सौभाग्य और समृद्धि का वरदान मिलता है।

ज्येष्ठ महीने की ही अमावस्या को शनि जयंती भी होती है। ग्रंथों के अनुसार इस दिन शनि देव का जन्म हुआ था। शनि जयंती पर व्रत और शनि पूजा करने से कुंडली में शनि दोष खत्म हो जाते हैं। परेशानियां इस व्रत से दूर होती हैं। साढ़ेसाती और ढय्या से गुजर रही राशियों के लोगों को भी शनि के अशुभ प्रभावों से राहत मिलने लगती है।

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