इंदौर। अंतरराष्ट्रीय फिल्मो के विख्यात समीक्षक ने कहा है कि मुंबई के सिनेमा का भारत के समाज से कोई रिश्ता नहीं है। समाज में कूड़ा करकट भरने का काम मुंबई के सिनेमा ने किया है।
स्टेट प्रेस क्लब मध्य प्रदेश के द्वारा आयोजित तीन दिवसीय पत्रकारिता महोत्सव के पहले दिन के दूसरे सत्र को संबोधित कर रहे थे। हमारा समाज हमारी फिल्में विषय पर आयोजित इस सत्र में विषय प्रवर्तन रचना जोहरी ने किया। अपने संबोधन में राय ने कहा कि कान फिल्म फेस्टिवल में भारत की आजादी के और इस फिल्म फेस्टिवल के 75 वर्ष होने पर भारत को गौरव देश का दर्जा दिया गया है। हमारे देश में मुंबई के सिनेमा ने समाज में कूडा परोसने का काम किया है। मुंबई का सिनेमा बहुत छोटी चीज है लेकिन मीडिया ने उसे बहुत बड़ा बना दिया। पूरी दुनिया के फिल्म के कारोबार का 0.5% कारोबार मुंबई का सिनेमा करता है। मुंबई के सिनेमा का कुल टर्नओवर 5000 करोड़ का है जबकि टीवी का टर्नओवर 80 हजार करोड़ का है। डिजनी और फॉक्स स्टार स्टूडियो के द्वारा बनाई गई दो फिल्मों का कारोबार 5000 करोड़ का होता है। हॉलीवुड और बॉलीवुड की फिल्मों में बड़ा अंतर यह है कि हॉलीवुड की फिल्मों में फिल्म के कुल बजट का 25% फिल्म की कहानी और डायलॉग पर खर्च किया जाता है जबकि बॉलीवुड याने मुंबई में यह खर्च बहुत ही ज्यादा कम होता है। मुंबई में मूलतः विचार हीनता की स्थिति है। यही कारण है कि भारतीय समाज से मुंबई के सिनेमा का कोई रिश्ता नहीं है। इस सिनेमा के लिए तो पैसा ही भगवान है।
उन्होंने कहा कि जिस भाषा में कलाकार फिल्मों में काम करते हैं उसी भाषा में वे लोग व फिल्म के निर्देशक अपनी बात रखते हैं लेकिन दुर्भाग्य से मुंबई के फिल्म के कलाकार और निर्देशकों को हिंदी बोलने में शर्म आती है और वह अंग्रेजी में बात करते हैं। ऐसा दुनिया में किसी भी अन्य देश में नहीं होता है। मुंबई असलियत में एक अलग टापू है जो कि देश के लोगों को धोखा देने का काम करता रहा है। इस समय पूरे विश्व में मराठी सिनेमा, बांग्ला सिनेमा, मलयालम सिनेमा और कन्नड़ सिनेमा भारत की इज्जत बनाने का काम कर रहे हैं। देश की सभ्यता के प्रश्न को विश्व के फिल्मकार उठाते हैं। सिनेमा को मनुष्य की आजादी का घोषणा पत्र कहा जाता है।
फिल्मकार हरिवंश चतुर्वेदी ने कहा कि भारत के फिल्मों में गाने के बिना फिल्म की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। हमारे यहां गाने सालों तक जिंदा रहते हैं, सुने जाते हैं और गुनगुनाए जाते हैं।
प्रसिद्ध फिल्म समीक्षक पराग चापेकर ने कहा कि आज से 15 वर्ष पूर्व तक देश में यह कहा जाता था कि यदि बच्चा बिगड़ गया है तो यह फिल्मों के कारण बिगड़ा है। कभी भी कोई यह नहीं कहता था कि बच्चा सुधरा है तो फिल्मों के कारण सुधरा है। डिजिटल क्रांति ने हमारी स्वीकारोक्ति को बढ़ा दिया है। सिनेमा हमेशा जीवन में बदलाव लाता है। मुन्ना भाई एमबीबीएस से देश में गांधीवाद की एक नई परिभाषा मिली। हिंदी सिनेमा को रजत पथ की पत्रकारिता कहा जाता है। कई फिल्मों ने हमारे जीवन पर गहरा असर किया है। हाल ही में आई फिल्म कश्मीर फाइल मात्र 15 करोड़ की फिल्म है लेकिन वह 300 करोड़ का कारोबार कर गई। उसके सामने अक्षय कुमार की फिल्म भी गायब हो गई। इस फिल्म के माध्यम से कश्मीरी पंडितों की समस्या को देश के सामने रखा गया कि किस तरह वे ठोकर खाने के लिए मजबूर है। फिल्मों के माध्यम से हमारे देश की जनता को फैशन सेंस मिलता है , पर्यटन का नया अवसर नजर आता है। दूसरे शब्दों में कहें तो फिल्मे हमारे दिल और दिमाग पर छा जाती है। फिल्म और समाज एक दूसरे के आइना है। फिल्मों का असर समाज पर कल भी था, आज भी है और कल भी रहेगा।
इस अवसर पर अतिथियों का परिचय वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश हिंदुस्तानी ने दिया। अतिथियों का स्वागत शीतल रॉय, सोनाली यादव,प्रमोद राघवन, संजय रोकड़े, विजय गुंजाल ने किया जबकि अतिथियों को स्मृति चिन्ह राकेश द्विवेदी जितेंद्र जाखेटिया व आकाश चौकसे ने भेट किए।
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